अग्रसेन की बावली दिल्ली का इतिहास | Agrasen ki Baoli History in Hindi

Agrasen ki Baoli / अग्रसेन की बावली भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित एक सीढ़ीनुमा कुवां हैं। इस बावली को महाराजा अग्रसेन ने 14वीं शताब्दी में बनवाया था। यह नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित है। कहते हैं एक बार इस बावली में काला पानी भर गया था और यह पानी जादुई था। इसे पीने के बाद लोग आत्महत्याएं करने को मजबूर हो जाते थे। रात को यहां अजीब-अजीब आवाजें आती हैं, इसलिए यहां आनेवालों को अंधेरा होने के बाद कभी रुकने नहीं दिया जाता।

अग्रसेन की बावली दिल्ली का इतिहास | Agrasen ki Baoli History in Hindi

अग्रसेन की बावली, दिल्ली – Agrasen ki Baoli, Delhi in Hindi 

अग्रसेन की बावली में करीब 105 सीढ़ीयां हैं। आमिर खान के मशहूर फिल्म पीके के कुछ सिन यही फिल्माये गये हैं। इस फिल्म ने वास्तव में अग्रसेन की बावली जैसी सदियों पुरानी संरचना के लिए भारतीयों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के मन में भी रुचि पैदा कर दी है। फिल्म द्वारा किया गया प्रचार न केवल अग्रसेन की बावली के लिए बल्कि दिल्ली की सभी बावलियों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है।

इस बावली में पानी तो अब नहीं रहा, लेकिन कहा जाता है कुछ आत्माओं ने यहां अपना वास बना लिया है। आप नीचे तक पहुंचेंगे तो अंधेरे के साथ-साथ आपको अपने कदमों की आवाज तक सुनाई देगी। यहाँ आने वाले ज्यादातर लोगों में दिल्ली के कॉलेजों के छात्र-छात्राएँ और गर्मी के दिनों में आने वाले स्थानीय लोग शामिल हैं, जिन्हें यहाँ आकर अक्सर आराम मिलता है क्योंकि यह बावली शहर की तेज गर्मी से राहत प्रदान कराती है।

यह बावली अभी भी बेहतर स्थिति में है। इस बावली का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है। अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली की बेहतरीन बावलियों में से एक है। यह भारत सरकार द्वारा ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के अतंर्गत संरक्षित है।

अग्रसेन की बावली का इतिहास – Agrasen ki Baoli History in Hindi

इस बावली का निर्माण सूर्यवंशी सम्राट महाराजा अग्रसेन ने करवाया था, इसलिए इसे ‘अग्रसेन की बावली’ कहते हैं। क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का जीर्णोद्धार कराया।

हालाँकि, पिछले कई वर्षों से ‘अग्रसेन की बावली’ को इस नाम के अलावा कई अन्य नामों से भी जाना जाता रहा है। भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के नक्शे के अनुसार -1868 में, इस स्मारक का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया था – इस स्मारक को ‘ओजर सेन की बोवली’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इस बावली का नक्शा इसके ढाँचे के उत्तर-पश्चिमी दिशा की ओर एक और इसी के समान संरचना दिखाता है। यह संरचना 1911 में दिल्ली में शुरू हुए शहरी विस्तार के बाद धीरे-धीरे गायब हो गई।

बावली के पश्चिमी कोने में एक छोटी मस्जिद भी बनी है। असल में इस मस्जिद की छत नहीं है – कुछ पुरानी तस्वीरों और अभिलेखों में भी इस मस्जिद की संरचना को उसी तरह दिखाया गया है। इस मस्जिद के स्तंभों में कुछ ऐसे विशेष लक्षण और रंग रूप उभरे हुए हैं, जो कि बौद्ध काल की कुछ असाधारण संरचनाओं जैसे चैत्य में प्रयुक्त विभिन्न वास्तुकलाओं से मेल खाते हैं।

बावली की संरचना – Agrasen ki Baoli Architecture in Hindi

अग्रसेन की बावली में 60 मीटर लम्बी और 15 मीटर चौड़ी है। इसमें 105 सीढ़ियाँ है। लाल बलुए पत्थर से बनी इस बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएँ तुग़लक़ और लोदी काल की तरफ़ संकेत कर रहे हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार इसे अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने बनवाया था।

इमारत की मुख्य विशेषता है कि यह उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लम्बी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है। पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद है। यह एक ठोस ऊँचे चबूतरे पर किनारों की भूमिगत दालानों से युक्त है। इसके स्थापत्य में ‘व्हेल मछली की पीठ के समान’ छत, ‘चैत्य आकृति’ की नक़्क़ाशी युक्त चार खम्बों का संयुक्त स्तम्भ, चाप स्कन्ध में प्रयुक्त पदक अलंकरण इसको विशिष्टता प्रदान करता है।

बावली से जुड़े कहानियां – Agrasen ki Baoli Story in Hindi

इस बावली के बारे में ऐसा कहा जाता है कि कई सालो पहले एक बार इस बावडी में काला पानी भर गया और उस जादुई काले पानी ने कई लोगो को इस पानी में आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। ऐसा माना जाता था कि उस काले पानी में सम्मोहन की शक्ति थी जिससे कई लोगो की जाने चली गयी। तब से अब तक ये बावड़ी हमेशा सुखी ही रहती है केवल बरसात के समय पानी भरा रहता है।

लेकिन ऐसी बातों की सच्चाई का पता लगाना बहुत मुश्किल है। हालाँकि, 2007 में मीडिया द्वारा मिली एक सूचना के अनुसार इस बावली में आत्महत्या की एक घटना हुई थी। उस समय पानी की गहराई 4 से 5 फीट रही होगी। एक जमाने में इस सीढीनुमा कुएँ के सबसे छोटे हिस्से से सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों की तादात में चमगादड़ों के घर थे। अगर आप आज भी ‘अग्रसेन की बावली’ में जाते हैं और सीढीयों से नीचे उतरते हुए सीढीनुमा कुएँ के भीतर प्रवेश करते हैं, तो आप बावली में रहने वाले चमगादड़ों द्वारा किया जाने वाला शोर सुन सकेगें।

इन सभी कहानियों ने ‘अग्रसेन की बावली’ को अत्यन्त लोकप्रिय बना दिया है और इस बावली ने स्थानीय लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। यहा पर चौकीदार यहा रात को लोगो को रुकने से मना करते है क्यूंकि यहा रात को अजीबोगरीब आवाज़े और कुछ गिरने की आवाज़े सुनाई देती है।

कैसे जाएँ – Agrasen ki Baoli in Hindi

यह बावली दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस के समीप हेली रोड के हेली लेन में स्थित यह बावली चारो तरफ़ से मकानों से घिरी है, जिससे किसी बाहरी व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि यहाँ कोई बावली है। यही कारण है कि अगर आप पहली बार इस स्थान पर आते हैं और इसे ढूंढने का प्रयास करते हैं तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बहुत से लोग नहीं जानते कि यह वास्तव में कहाँ स्थित है। हालाँकि, बहुत से लोग कई सालों तक इस बावली के आस-पास काम कर चुके हैं।

बावली तक आसानी से पहुँचने के लिए आप बाराखंबा रोड मेट्रो स्टेशनों और जनपथ का सहारा ले सकते हैं। आप मध्य दिल्ली के किसी भी बड़े होटल से पैदल चलकर आसानी से बावली तक पहुँच सकते हैं।


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