भारत के ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर / Lingaraj Temple यहां की सबसे बड़ी मंदिर हैं। यह शहर का सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और इसे 10वीं या 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था। यह मंदिर भगवना शिव के एक रूप हरिहारा को समर्पित है। मान्यता है कि लिट्टी एवं वसा नामक दो राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था, लड़ाई के बाद जब उन्हें प्यास लगी तो भगवान शिव ने कुआं बना कर सभी नदियों का आह्वान किया। यहां शिव भक्तों की इच्छा पूरी होती है। यह भारत का ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां भगवान शंकर और भगवान विष्णु दोनों के ही रुप इस मंदिर में बसते हैं।
मंदिर का इतिहास – Lingaraj Temple History in Hindi
लिंगराज का अर्थ होता है लिंगम के राजा, जो यहां भगवान शिव को कहा गया है। वास्तव में यहां शिव की पूजा कृतिवास के रूप में की जाती थी और बाद में भगवान शिव की पूजा हरिहर नाम से की जाने लगी। ये मंदिर का वर्तमान स्वरूप 11वी शताब्दी के अंतिम दशको में आया। हालाँकि इस मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में किया गया था। जिसका उल्लेख संस्कृति ग्रंथो में किया गया हैं।
इतिहासकार फग्युर्सन का मानना हैं की इस मंदिर के निर्माण कार्य ललाट इंदु केसरी ने आरम्भ करवाया था जिन्होंने 615 से 657 शताब्दी तक शासन किया था। मौजूदा मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरि ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। जो सोमा वंश के थे। उसने तभी अपनी राजधानी को जयपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। इस स्थान को ब्रह्म पुराण में एकाम्र क्षेत्र बताया गया है। किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं।
मंदिर की कहानी – Lingaraj Temple Story in Hindi
धार्मिक कथा है कि लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दूसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर यहीं पूर्वोत्तर भारत में शैवसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र रहा है। कहते हैं कि मध्ययुग में यहाँ सात हज़ार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब क़रीब पाँच सौ ही शेष बचे हैं। यह मंदिर वैसे तो भगवान शिव को समर्पित है परन्तु शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु भी यहां मौजूद हैं।
मंदिर की वास्तुकला और रचना-सौंदर्य – Architecture of Lingaraj Temple in Hindi
Lingaraj Temple की वास्तुशिल्पीय बनावट भी बेहद उत्कृष्ट है और यह भारत के कुछ बेहतरीन गिने चुने हिंदू मंदिर में एक है। इस मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है और पूरे मंदिर में बेहद उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। गणेश, कार्तिकेय तथा गौरी के तीन छोटे मन्दिर भी मुख्य मन्दिर के विमान से संलग्न हैं। गौरीमन्दिर में पार्वती की काले पत्थर की बनी प्रतिमा है। मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार का है तथा कलश की ऊँचाई 40 मीटर है।
मन्दिर के चतुर्दिक गज सिंहों की उकेरी हुई मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं। मन्दिर के शिखर की ऊँचाई 180 फुट है। मुख्य मंदिर 55 मीटर लंबा है और इसमें लगभग 50 अन्य मंदिर हैं। लिंगराज मंदिर कुछ कठोर परंपराओं का अनुसरण करता है और गैर-हिंदू को मंदिर के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं है। हालांकि मंदिर के ठीक बगल में एक ऊंचा चबूतरा बनवाया गया है, जिससे दूसरे धर्म के लोग मंदिर को देख सकें।
अपनी स्थापत्य कला के लिए मशहूर लिंगराज मंदिर को गहरे शेड बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल कर निर्माण किया गया है। यह करीब 2,50,000 वर्ग फुट के विशाल क्षेत्र में बना अद्भुत मंदिर हैं। इसका मुख्य द्धार पूर्व की तरफ है, जबकि अन्य छोटे उत्तर और दक्षिण दिशा की तरफ मौजूद हैं। यहां पूरे साल पर्यटक और श्रद्धालू आते हैं।
वास्तुकला की दृष्टि से लिंगराज मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर और कोणार्क मंदिर लगभग एक जैसी विशेषताएं समेटे हुए हैं। बाहर से देखने पर मंदिर चारों ओर से फूलों के मोटे गजरे पहना हुआ-सा दिखाई देता है। मंदिर के चार हिस्से हैं – मुख्य मंदिर और इसकेअलावा यज्ञशाला, भोग मंडप और नाट्यशाला। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर कलिंग वास्तुशैली और उड़ीसा शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार लिंगराज मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है। इस नदी के पानी से मंदिर का बिंदु सागर टैंक भरता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह पानी शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर करता है। लोग अक्सर इस पानी को अमृत के रूप में पीते हैं और उत्सवों के समय भक्त इस टैंक में स्नान भी करते हैं।
गर्भग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोगमण्डप में सुन्दर सिंहमूर्तियों के साथ देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएँ हैं।
यहां की पूजा पद्धति – Lingaraj Temple Puja And Shiv Ling
Lingaraj Mandir की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहाँ आठ फ़ीट मोटा तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा है।
शिवलिंग का बाहरी रूप पारम्परिक शिवलिंग जैसा गोलाकार है जिसमें से एक ओर से पानी जाने का मार्ग है लेकिन बीचों-बीच लिंग न होकर चाँदी का शालीग्राम है जो विष्णु जी है। गहरे भूरे लगभग काली शिवलिंग की काया के बीच में सफेद शालिग्राम जैसे शिव के हृदय में विष्णु समाए है। हरि है विष्णु जिन्हें शिव ने हरा है। इसी से इन्हें हरिहर कहा जाता है। यहाँ की विशेषता यही है कि शिव-विष्णु एक साथ होने से ऑक के फूल और तुलसी एक साथ चढ़ाए जाते है।
ओङीसा में जगन्नाथ पुरी जाने से पहले पौराणिक मान्यता के अनुसार लिंगराज मंदिर में हरिहर के दर्शन किए जाने चाहिए। भीतर मुख्य गर्भगृह में हरि को हरने वाले इस हरिहर के अतिरिक्त लिंगराज मन्दिर के विशाल प्रांगण में अनेकों देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मन्दिर है – गणेश, पार्वती, महालक्ष्मी, दुर्गा, काली, नागेश्वर, राम, हनुमान, शीतला माता, संतोषी माता, सावित्री, यमराज। लिंगराज मन्दिर के पास है पाप विनाशिनी जहां कुंड है।
लिंगराज मंदिर उत्सव – Lingaraj Temple Festival in Hindi
यहां शिवरात्रि पर विशेष उत्सव होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। शिवरात्रि का मुख्य उत्सव रात के दौरान होता है, जब भक्तजन लिंगराज मंदिर के शिखर पर महादीप को प्रज्जवलित करने के बाद अपना व्रत खोलते हैं। इसके बाद यहां चंदन समारोह एवं चंदन यात्रा का उत्सव भी बेहद धूमधाम से किया जाता है। चंदन समारोह इस मंदिर में करीब 22 दिन तक चलने वाला महापर्व है। इस मंदिर की महिमा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर में रोजाना 6 हजार लोग लिंगराज के दर्शन के लिए आते हैं। और शिवरात्रि के समय यह संख्या 200,000 से अधिक पर्यटकों तक पहुंच जाती है। प्रतिवर्ष अप्रैल महीने में यहाँ रथयात्रा आयोजित होती है।
लिंगराज मंदिर कैसे पहुंचे – How To Reach Lingaraj Temple in Hindi
लिंगराज मंदिर आप वायु मार्ग, रेल और सड़क तीनों मार्गों द्धारा आसानी पहुँच सकते हैं। लिंगराज मंदिर से भुवनेश्वर एयरपोर्ट सबसे नजदीक है। एयरपोर्ट मंदिर से 3.7 किमी की दूरी पर है और सभी भारतीय प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। और साथ ही ट्रेन और बस सुविधा से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप पर्सनल कार से भी आ सकते हैं।
Lingaraj temple pooja timings
यह मंदिर सुबह 5 बजे से रत 9 बजे तक खुला रहता है। यहां कोई एंट्री फीस नहीं हैं।
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very nice .. Keep up the good work.
प्रतियोगी परीक्षार्थियों की इतिहास की तैयारी में सहयोगात्मक पोस्ट |
Bahut hi achhi jankari di aapne thanks