V P Singh / श्री वी.पी सिंह एक भारतीय राजनेता और भारत के सातवे प्रधानमंत्री (Prime Minister) थे। उनका कार्यकाल 1989 से 1990 के बीच था। इससे पहले वे (1980-82) तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे थे।
वी.पी सिंह का परिचय – Vishwanath Pratap Singh Biography in Hindi
पूरा नाम | विश्वनाथ प्रताप सिंह (Raja Vishwanath Pratap Singh) |
जन्म दिनांक | 25 जून, 1931 |
जन्म भूमि | इलाहाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 27 नवम्बर, 2008, नई दिल्ली |
पिता का नाम | बहादुर राय गोपाल सिंह |
पत्नी | सीता कुमारी |
संतान | दो पुत्र जिनके नाम अजय और अभय |
कर्म-क्षेत्र | राजनितिक |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | कांग्रेस और जनता दल |
पद | भारत के सातवे प्रधानमंत्री |
विश्वनाथ प्रताप सिंह को आजाद भारत के सबसे चमकदार सितारों में से एक थे। महत्त्वाकांक्षी होने के अतिरिक्त कुटिल राजनीतिज्ञ भी कहे जाते हैं। वी पी सिंह ने वर्ष 1996 में यह कहकर प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया था कि ‘मेरे बच्चे कहें कि मेरे पिता ने प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था’
प्रारंभिक जीवन – Early life of V P Singh
श्री वी.पी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। वह राजपूत घराने से संबंध रखते थे। इनके पिता भगवती प्रसाद सिंह अथाह धन-संपदा वाले व्यक्ति थे। उन्होंने भी भारतीय राजनीति में सक्रिय रुप से भाग लिया। वी.पी सिंह का पूरा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) है। जब विश्वनाथ 5 वर्ष के हुए तो गोपाल सिंह नामक व्यक्ति ने उन्हें गोद ले लिया। विश्वनाथ 10 वर्ष के हुए तो गोपाल जी का स्वर्गवास हो गया इसलिए वे अपने घर वापस लौट आएं।
विश्वनाथ जी बचपन से ही बुद्धिमान, प्रतिभावान और संयमित प्रकृति के व्यक्ति थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा देहरादून, इलाहाबाद और बनारस के प्रसिद्ध स्कूलों में संपन्न हुई। मैट्रिक व इंटर की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.ए की डिग्री प्राप्त की और फिर वहीं से बाद में उन्होंने L.L.B भी की। उस दौरान विज्ञान विषय अपनी लोकप्रियता की चरम सीमा पर था। अतः परमाण्विक पदार्थ शास्त्रज्ञ बनने की दृढ़ इच्छा उन्हें पुणे की ओर खींच ले गई। पुणे जाने के बाद विश्वनाथ जी ने बी.एससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी के अंको के साथ पास की।
विश्वनाथ जी की पढ़ाई के साथ-साथ अन्य विषयों जैसे साहित्य, कला आदि में भी विशेष रुचि थी। विद्यालय में भी वह अपने सहपाठियों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। उन्हें रंग-बिरंगी छठा बिखेरती चित्रकारी के साथ-साथ संगीत की स्वर लहरियों में भी सिद्धहस्त्ता हासिल थी। विश्वनाथ जी एक चित्रकार के साथ-साथ एक लेखक के रूप में भी काफी लोकप्रिय थे। वह वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज के स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपनी राजनीतिक जीवनी ‘दि लोनली प्रोफेट’ भी लिखी है, जो बहुत प्रसिद्ध है।
25 जून, 1955 को 24 वर्ष की आयु में विश्वनाथ प्रताप सिंह का विवाह सीता कुमारी नामक कन्या से हुआ। ईश्वरीय कृपा से उन्हें दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनके नाम अजय और अभय हैं। दोनों ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और अपने-अपने क्षेत्रों बहुत लोकप्रिय भी है। श्रीमती सीता कुमारी भी शाही राजघराने से संबंध रखती थी। इसी वजह से पति विश्वनाथ से सामंजस्य स्थापित करने में उन्हें कोई कठिनाई पेश न आई। वह हमेशा पति की छाया बनकर उनके साथ-साथ रही। उन्होंने सुख-दुख में साथ दिया।
राजनैतिक जीवन – V P Singh Life History in Hindi
मांडा के राजा विश्वनाथ जी जन्मजात नेता रहे। उन्हें राजघराने का शाही अंदाज कभी पसंद ही न आया। जब वह आचार्य विनोबा भावे भूदान हेतु एक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे तो उन्हें विश्वनाथ जी ने इलाहाबाद के पासना गांव की निजी भूमि दान स्वरूप में दे दी। सभी ने उन्हें बहुत समझाया, मगर वे अपने फैसले से हटे नहीं इतना तो वही व्यक्ति कर सकता है जो मोह-माया के बंधन में जकड़ा हुआ न हो। वह अपना सबकुछ दान करने के बाद ही मुस्कुराते रहें।
लाल बहादुर शास्त्री का विश्वनाथ जी से गहरा लगाव था। वे विश्वनाथ जी को अपने पुत्र की तरह ही स्नेह करते थे। 1969 में विश्वनाथ जी ने सोरन विधानसभा सीट के लिए चुनाव लड़ा जिसमें भारी मतों से विजई हुए। उनकी बहुमुखी प्रतिभा को देखते हुए 1970 में होने कांग्रेस विधान पार्टी का प्रमुख बनाया गया।
1971 में विश्वनाथ जी ने लोकसभा में प्रवेश किया और उन्हें वाणिज्य मंत्रालय में मंत्री बना दिया गया। 1977 का वर्ष काफी गहमी-गहमी वाला रहा। इस वर्ष हुए लोकसभा के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस पर विरोधी बादल मंडरा रहे थे। उन बादलों की घटा में बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं की लोकप्रियता सिमट कर रह गई।
1980 में वे फिर लोकसभा के लिए चुनाव लिए गए और इस दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद प्राप्त हुआ। अपने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए विश्वनाथ जी ने अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। अपने कार्यालय के दौरान उन्हे ऐसी विषम स्थिति का सामना करना पड़ा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
1983 में विश्वनाथ जी को वाणिज्य मंत्रालय सौंप दिया गया। 1984 का वर्ष भारत वर्ष के लिए भारी उथल-पुथल वाला रहा। इस वर्ष देश के लोकप्रिय नेता इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षको ने मिलकर हत्या कर दी। उनकी हत्या से सारा देश स्तब्ध रह गया। इंदिराजी विश्वनाथजी पर बहुत विश्वास करती थी, लेकिन राजीव जी के आने के बाद यह विश्वसनीयता धीरे-धीरे समाप्त होती चली गई। 1984 से लेकर 1987 तक विश्वनाथ जी ने राजीव जी के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त, वाणिज्य एवं रक्षा मंत्री के पदों पर कार्य किया।
11 अप्रैल, 1987 को उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। राजीव जी व विश्वनाथ जी की लड़ाई अधिकारों की लड़ाई थी। विश्वनाथ जी के जन-जागरण आंदोलन ने लाखों लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
प्रधानमंत्री का पदभार – V P Singh Prime Minister
कांग्रेस के विकल्प के रुप में कई विपक्षी दलों से मिलकर बने संघ ‘जनमोर्चा’ ने कमान थामी। इसके बाद 1989 के चुनाव में सिंह की वजह से ही बीजेपी राजीव गाँधी को गद्दी से हटाने में सफल रही थी। राजीव जी की सरकार के गिरने के बाद विश्वनाथ जी को नया प्रधानमंत्री बनाया गया। 2 दिसंबर, 1989 को विश्वनाथ जी ने राष्ट्रपति भवन में स्वतंत्र भारत के सातवे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद राष्ट्र के नाम पर संदेश में उन्होंने कहा —
‘पंजाब, जम्मू-कश्मीर व राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद जैसी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया जाएगा। बहुत सी अनुसूचित व जनजातियों के लोग निराश्रित है, उनको संपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देना हमारा प्रमुख ध्येय होगा।
विश्वनाथ जी एक निडर राजनेता थे, दुसरे प्रधानमंत्रीयो की तरह वे कोई भी निर्णय लेने से पहले डरते नही थे बल्कि वे निडरता से कोई भी निर्णय लेते थे और ऐसा ही उन्होंने लालकृष्ण आडवानी के खिलाफ गिरफ़्तारी का आदेश देकर किया था। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार का भी विरोध किया था।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट – Mandal Commission in Hindi
तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की रिपोर्ट संसद में पेश की थी। दरअसल जनता पार्टी सरकार ने 1977-79 में मंडल कमीशन का गठन किया था। मंडन कमीशन ने अन्य पिछड़ा वर्ग के सम्बन्ध में अनेक अनुशंसाएँ की थीं। लेकिन जनता पार्टी उसे लागू कर पाती, उसके पूर्व ही वह टूट गई और चुनाव के बाद में इंदिरा गांधी सत्ता में आ गईं।
वी. पी. सिंह के हाथ मंडल कमीशन की वही सिफ़ारिशें लग गई थीं। उसे संसद में पेश करने के बाद जब अनुशंसाएँ लागू हुई तो देश में भूचाल आ गया। सवर्ण और अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में दो नई समस्याएँ पैदा हो गईं। अन्य पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में 27 प्रतिशत का आरक्षण प्राप्त हो रहा था जबकि सवर्णों के लिए 50.5 प्रतिशत ही नौकरी के अवसर रह गये थे। क्योंकि एस. सी. और एस. टी. के लिए 22.5 प्रतिशत पहले से ही आरक्षण था। इस आरक्षण नीति को उच्च शिक्षा के अवसरों पर भी लागू होना था।
मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू होते ही छात्र भड़क उठे। सवर्ण जाति के नौजवानों को लग रहा था कि उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। नौजवान यह मांग कर रहे थे कि एस. सी. एवं एस. टी. आरक्षण की समीक्षा की जाए और आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सवर्णों के बराबर आ चुके लोगों को उस सूची से निकाल दिया जाए। अब समस्या और भी जटिल हो गई थी। छात्र हिंसक आन्दोलन करने लगे। अनेक छात्रों ने तो आत्मदाह भी कर लिया।
उस समय मेरठ के किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने नौजवानों का आह्वान किया कि उन नेताओं को सबक सिखाओ जिन्होंने मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू की हैं। दिल्ली में अव्यवस्था फैल गई। छात्रों पर अंकुश लगाना पुलिस के बूते से बाहर हो गया था। ऐसी स्थिति में उच्चतम न्यायालय ने 1 अक्टूबर, 1990 को मंडल कमीशनश के प्रतिवेदन को लागू करने पर रोक लगा दी।
इन सबका परिणाम वी. पी. सिंह के लिए घातक सिद्ध हुआ। फिर 10 नवम्बर, 1990 को 58 सांसदों ने चन्द्रशेखर के पक्ष में पाला बदल लिया। ऐसे में वी. पी. सिंह को प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। उसके बाद वी. पी. सिंह राजनितिक से दूर हो गए।
निधन – V P Singh Died
आज विश्वनाथ जी हमारे बीच नहीं है। 27 नवंबर, 2008 को 77 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो चुका है। एक समाज सेवक के रूप में देश-सेवा के अपने कर्तव्य का उन्होंने भली-भांति निर्वाह किया। अपने देश-प्रेम की भावना के लिए वह हमेशा देशवासियों को याद आते रहेंगे।