Tanot Mata Mandir / तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर से लगभग 130 किलोमीटर दूर भारत – पाकिस्तान सिमा पर स्थित है। तनोट देवी जैसलमेर के भूतपूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती हैं। यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। वैसे तो यह मंदिर सदैव ही आस्था का केंद्र रहा है परंतु 1965 में भारत – पाकिस्तान युद्ध के बाद यह मंदिर दुनिया भर में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया। आज हर साल लाखो श्रृंद्धालु माता के दर्शन के लिए जाते हैं।
तनोट माता मंदिर की जानकारी – Tanot Mata Temple Information in Hindi
जैसलमेर की सीमा जो भारत और पाकिस्तान को बांटती है, इसकी हिफ़ाज़त का जिम्मा बीएसएफ़ के जवानों पर है। लेकिन ये जांबाज़ मीलों फैले रेगिस्तान में अकेले नहीं हैं। इन जवानों की रक्षा करती है बॉर्डर वाली माता। बीएसएफ़ के जवान इन्हें बम वाली माता भी कहते हैं। ये है भारत-पाकिस्तान सीमा पर मौजूद तनोट माता का मंदिर। तनोट माता मंदिर के चमत्कार के आगे पाकिस्तान भी नत-मस्तक हो चुका है।
1965 कि लड़ाई में पाकिस्तानी सेना के द्वारा गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहाँ तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम आज भी मन्दिर में बने म्यूजियम में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ सुरक्षित पड़े हैं। 1965 के युद्ध के बाद इस मंदिर की जिम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने ले लिया और यहाँ अपनी एक चोकी भी बना ली।
इतना ही नहीं एक बार फिर 4 दिसंबर 1971 कि रात को पंजाब रेजिमेंट और सीमा सुरक्षा बल की एक कंपनी ने माँ कि कृपा से लोंगेवाला में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट को धूल चटा दी थी और लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंको का कब्रिस्तान बना दिया था। लोंगेवाला भी तनोट माता के पास ही स्थित है। लोंगेवाला की जीत के बाद मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया जहाँ अब हर वर्ष 16 दिसंबर को उत्सव मनाया जाता है। हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
वॉर के बाद इस मंदिर की चर्चा भारत ही नहीं पाकिस्तान में भी हुई। पाकिस्तानी जनरल ने खुद इस मंदिर के दर्शन करने की परमिशन मांगी थी। जिसके बाद वे दर्शन करने यहां पहुंचे थे। बॉर्डर फिल्म में भी इस मंदिर को दिखाया गया था।
तनोट माता से जुडी पौराणिक कथा – Tanot Mata Story in Hindi
प्राचीन समय में मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की इच्छा से उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें।
माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ दैवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की। माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया।
राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।
तनोट माता मंदिर का इतिहास – Tanot Mata Mandir History in Hindi
तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है। भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे। कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु मंदिर तनोट में ही रहा। तनोट माता का यह मंदिर यहाँ के स्थानीय निवासियों का एक पूज्यनीय स्थान हैं।
कैसे पहुंचे यहां – Tanot Mata Jaisalmer Rajasthan in Hindi
इस मंदिर के दर्शन करने के लिए सड़क के जरिए पहुंचा जा सकता है। जो जैसलमेर से करीब 153 किलोमीटर दूर है। अपनी कार या टैक्सी के जरिए यहां पहुंचा जा सकता है।
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