Sohni Mahiwal – सोहनी महिवाल पंजाब की धरती पर उगी एक प्रसिद्ध दुःखद प्रेम कहानी है। यह कहानी हमें शाह जो रिसालो और सिंध की मुख्य सात प्रसिद्ध दुःखद प्रेम कहानियो में भी शामिल है। सोहनी महिवाल के साथ दूसरी छः प्रेम कहानियो में उमर मरुई, सस्सी पुन्नहु, लीलन चनेसर, नूरी जम तमाची, सोरठ राय दियाच और मोमल रानो शामिल है, इन सभी को साधारणतः शाह अब्दुल लतीफ़ भित्ती की हीरोइन भी कहा जाता है।
Sohni Mahiwal True Love & Real Story in Hindi
पंजाब की चनाब नदी के तट पर एक कुम्हार तुला को एक बेटी हुई सोहनी। जिस तरह सोहनी का रूप सुहाना था उसी तरह उसका नाम भी सोहनी था। उसी के साथ एक मुगल व्यापारी के यहाँ जन्म लिया इज्जत बेग ने जो आगे जाकर महिवाल कहलाया। आइए जाने सोहनी महिवाल की सच्ची प्रेम कहानी
उस समय गुजरात की चनाब नदी बखरा और दिल्ली के व्यापारी रास्ते के बीच में आती थी जहाँ मुसाफिरों का कारवाँ रुकता था। जैसे-जैसे मिट्टी के घड़े उनके पास आते थे वैसे-वैसे सोहनी उनपर सुंदर-सुंदर कलाकृतियाँ निकालती थी और उन्हें बेचने के लिये तैयार करती थी।
बुखारा (उज्बेकिस्तान) का एक समृद्ध और अमीर व्यापारी का शहजादा इज्ज़त बैग घर मे मन नही लगने के कारण पिताजी से अनुमति लेकर देश भ्रमण का फैसला किया। दिल्ली में उसका दिल नहीं लगा तो वह लाहौर चला गया। वहाँ भी जब उसे सुकून नहीं मिला तो वह घर लौटने लगा। रास्ते में वह गुजरात में एक जगह रुककर तुला के बरतन देखने गया लेकिन उसकी बेटी सोहनी को देखते ही सबकुछ भूल गया। इसके बाद वह केवल सोहनी की एक झलक पाने के लिये वह रोज़ सोहनी द्वारा सजाये गए मटके खरीदने आया करता था। सोहनी का दिल भी इज्ज़त बैग पर आ गया था। अपने कारवाँ के साथ बुखारा वापिस जाने की बजाये इज्ज़त बैग ने तुल्ला के ही घर में नौकर बनकर काम करने की ठान ली और सोहनी के घर भैंस चराने लगा। पंजाब में भैंसों को माहियाँ कहा जाता है। इसलिए भैंसों को चराने वाला इज्जत बेग महिवाल कहलाने लगा, महिवाल भी गजब का खूबसूरत था। दोनों की मुलाकात मोहब्बत में बदल गई।
जब सोहनी की माँ को यह बात पता चली तो उसने सोहनी को फटकारा। तब सोहनी ने बताया कि किस तरह उसके प्यार में व्यापारी महिवाल भैंस चराने वाला बना। उसने यह भी चेतावनी दी कि यदि उसे महिवाल नहीं मिला तो वह जान दे देगी। सोहनी की माँ ने महिवाल को अपने घर से निकाल दिया। महिवाल जंगल में जाकर सोहनी का नाम ले-लेकर रोने लगा। उधर सोहनी भी महिवाल के इश्क में दीवानी थी। उस समय कुम्हार समाज के लोग यह नही चाहते थे की उनके समाज की बेटी किसी दुसरे समाज के लड़के से विवाह करे। इसीलिए उनके माता-पिता ने तुरंत सोहनी शादी किसी और से कर दी। लेकिन सोहनी ने उसे कुबूल नहीं किया। उधर महिवाल ने अपने खूने-दिल से लिखा खत सोहनी को भिजवाया। खत पढ़कर सोहनी ने जवाब दिया कि मैं तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूँगी।
जवाब पाकर इज्ज़त बैग ने अपनी पहचान बदल दी थी और एक फकीर की तरह रहने लगा था। अचानक वह सोहनी के नये घर के पास की चनाब नदी के पास ही की छोटी सी झोपडी में रहने लगा और सोहनी से जा मिला। अँधेरी रात में जब सारी दुनियाँ सो जाती थी तब ये दोनों प्रेमी नदी किनारे एक-दूजे से मिलते थे और घंटों प्रेममग्न होकर बैठे रहते। इज्ज़त नदी किनारे सोहनी से मिलने आया करता था और सोहनी मिट्टी के बर्तन की सहायता से तैरकर नदी किनारे पहुचती थी। इज्ज़त रोज़ मछलियाँ पकड़ता था और सोहनी के लिये लाया करता था।
कहा जाता है की एक बार ज्यादा लहरों और बारीशो की वजह से इज्ज़त बैग मछली को पकड़ने में असफल रहा था, तब महिवाल ने अपनी जांघ का ही एक टुकड़ा माँस कांटकर उसे भुना था। सोहनी को पहले इस बारे में जरा भी पता नही था लेकिन फिर सोहनी ने इज्ज़त को बताया की आज मछली के स्वाद कुछ अलग लग रहा है। और जब सोहनी ने अपना एक हाथ उसके पैर पर रखा तब सोहनी को एहसास हुआ की महिवाल ने उसके लिये अपनी जांघ पर घाव मारा है। इससे पता चलता हैं की उन दोनो का प्यार कितना गहरा था।
दोनो की मिलने की भनक जब सोहनी की भाभी को लगी तो वो एक प्लान बनाई और उसने सोहनी का पक्का घड़ा बदलकर मिट्टी का कच्चा घड़ा रख दिया। सोहनी को पता चल गया कि उसका घड़ा बदल गया है फिर भी अपने प्रियजन से मिलने की ललक में वह कच्चा घड़ा लेकर चनाब में कूद पड़ी। कच्चा घड़ा टूट गया और वह पानी में डूब गई। दूसरे किनारे पर पैर लटकाए महिवाल सोहनी का इंतजार कर रहा था। जब सोहनी का मुर्दा जिस्म उसके पैरों से टकराया। अपनी इश्क की ऐसी हालत देखकर महिवाल पागल हो गया। उसने सोहनी के जिस्म को अपनी बाँहों में थामा और चनाब की लहरों में गुम हो गया। सुबह जब मछुआरों ने अपना जाल डाला तो उन्हें अपने जाल में सोहनी-महिवाल के आबद्ध जिस्म मिले जो मर कर भी एक हो गए थे। गाँव वालों ने उनकी मोहब्बत में एक यादगार स्मारक बनाया, जिसे मुसलमान मजार और हिन्दू समाधी कहते हैं। क्या फर्क पड़ता है मोहब्बत का कोई मजहब नहीं होता।
सोहनी महिवाल का मज़ार पाकिस्तान के हैदराबाद से 75 किलोमीटर दूर सिंध के शहदपुर में शाहपुर चाकर रोड पर बनवाया गया था। जिसे लाखो प्रेमी युगल हर साल देखने के लिये आते है।
सोहनी और मेहर का सिंध वर्जन – Sohni Mahiwal Sindh Story
इस कहानी का थोडा सा अलग रूप हमें सिंध वर्जन में देखने को मिलता है, जहाँ माना गया है की सोहनी जाट समुदाय से रिश्ता रखती थी और इंडस नदी के पश्चिमी तट पर रहती थी। कहा जाता की सोहनी और मेहर के प्यार की शुरुवात तब हुई थी जब एक विवाह समारोह में मेहर ने सोहनी को दूध पिलाया था। आज सोहनी और महिवाल भले ही हमारे बीच न हों लेकिन जिंदा है उनकी अमर मोहब्बत।
सोहनी-महिवाल की प्रसिद्ध प्रेम कहानी को फज़ल शाह सय्यद ने पंजाबी कविता बनाकर भी समझाने की कोशिश की है, इसके साथ ही उन्होंने हीर-राँझा, लैला-मजनू और दुसरे प्रसिद्ध प्रेमी युगलों पर भी कविताये बनायी है।
सोहनी-महिवाल की प्रेम कहानी पे आधारित कई फ़िल्मे भी बने हैं – Sohni Mahiwal
- 1933 में गौहर कर्नाटकी, मास्टर चोनकर, शिवरानी और मास्टर कांति
- 1946 में इश्वरलाल और बेगम पारा
- 1958 में भारत भुषण और निम्मी
- 1984 में सनी देओल और पूनम ढिल्लों
I love this love story.
this strue story
Right love it stories
I love this love story sir..
Thank you…
NICE STORY
II love this story its true love jo phala milata tha par ab nhi such a butefull story
Nice story
verry interesting stories
i love you
kash hum sab esi tarah ho jaye to sayad duniya mai nafrat ke liye koi jagah hi na mile
Wah.. Mashallah mashallah