सिंहगढ़ किला का इतिहास, जानकारी | Sinhagad Fort Information in Hindi

Sinhagad Fort / सिंहगढ़ किला महाराष्ट्र के प्रसिद्ध किलो में से एक हैं जोकि पुणे शहर से लगभग 30 किमी दक्षिण पश्चिम स्थित है। इस किले की उपलब्ध कुछ जानकारी से पता चलता है कि यह किला 2000 साल पहले बनाया गया। कहा जाता हैं इसी किले की पराजय के बाद शुरू हुआ था मराठा साम्राज्य का पतन।

सिंहगढ़ किला का इतिहास, जानकारी | Sinhagad Fort Information in Hindi

सिंहगढ़ किला का इतिहास – Sinhagad Fort History in Hindi

सिंहगढ़ किले को मराठा साम्राज्य की शान के रूप में जाना जाता है। मराठा साम्राज्य के लिए यह किला कई कारणों से महत्वपूर्ण था। यह किला पहले कोंढाना के नाम से जाना जाता था, दन्तकथाओं के अनुसार यहाँ पर प्राचीन काल में ‘कौंडिन्य’ अथवा ‘श्रृंगी ऋषि’ का आश्रम था।

इतिहासकारों का विचार है कि महाराष्ट्र के यादवों या शिलाहार नरेशों में से किसी ने कोंडाणा के क़िले को बनवाया होगा। मुहम्मद तुग़लक़ के समय में यह ‘नागनायक’ नामक राजा के अधिकार में था। इसने तुग़लक़ का आठ मास तक सामना किया था। इसके पश्चात अहमदनगर के संस्थापक मलिक अहमद का यहाँ पर क़ब्ज़ा रहा और तत्पश्चात बीजापुर के सुल्तान का भी।

शिवाजी के पिता मराठा नेता शहाजी भोंसले जो इब्राहीम आदिल शाह 1 के सेनापती थे और उन्हें पुणे क्षेत्र का नियंत्रण सौपा गया था लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज को आदिल शाह के सामने झुकना मंजूर नहीं था इसलिए उन्होंने स्वराज्य की स्थापना करने का निर्णय लिया और आदिल शाह के सरदार सिद्दी अम्बर को अपने अधीन कर कोंढाना किले को अपने स्वराज्य में शामिल कर लिया। लेकिन 1649 में शहाजी महाराज को आदिल शाह के कैद से छुड़ाने के लिए उन्हें इस किले को आदिल शाह को सौपना पड़ा।

इस किले ने 1662, 1663 और 1665 में मुगलों के हमलों को देखा। पुरंदर के माध्यम से, 1665 में किला मुगल सेना प्रमुख “मिर्जाराजे जयसिंग” के हाथों में चला गया। शिवाजी के सरदार तानाजी मालूसरे और उनके सैनिकों ने लड़ाई कर किले पर फिर से कब्जा किया। इस लड़ाई में तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए। तानाजी को श्रद्धांजलि देने के लिए शिवाजी महाराज ने इस किले का नाम सिंहगढ़ रखा।

संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, मुगलों ने किले का नियंत्रण पुनः प्राप्त किया। “सरदार बलकवडे” की अध्यक्षता में मराठों ने 1693 में इसे पुनः कब्जा कर लिया। छत्रपति राजाराम ने सातारा पर एक मोगुल छापे के दौरान इस किले में शरण ली, लेकिन 3 मार्च 1700 ई.पू. पर सिंहगढ़ किले में उनका निधन हो गया।

1703 में, औरंगजेब ने किले को जीत लिया लेकिन 1706 में, यह किला एक बार फिर मराठा के हाथों में चला गया। संगोला, विसाजी चापर और पंताजी शिवदेव ने इस युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2 मार्च 1818 में पेशवाओं को हराकर अंग्रेजों ने पुणे सिंहगढ़ किले पर कब्जा जमाया था। इससे पहले खड़की की लड़ाई में पराजय के बाद बाजीराव पेशवा द्वितीय पुणे छोड़ने पर मजबूर हुए थे। जिसके बाद अंग्रेजों ने पेशवाओं का संपत्ति लूटी थी। किले पर कब्जे के बाद अंग्रेजों ने ताबड़तोड़ किला खाली करवाया और यहीं से शुरू हुआ मराठा साम्राज्य का पतन।

किले में देखने लायक जगहे – Sinhagad Fort in Tourist Places 

तिलक बंगला: सिंहगढ़ पर स्वाधीनता आंदोलन के सेनानी बाल गंगाधर तिलक का एक बंगला भी मौजूद है। लोकमान्य तिलक यहां कभी-कभी आकर रहते थे। 1915 में महात्मा गांधी और लोकमान्य के तिलक के बीच इसी बंगले में मुलाकात हुई थी।

कल्याण दरवाजा: किले की पश्चिम दिशा में स्थित यह दरवाजा है। कोंढणपुर गांव जाने के लिए इस दरवाजा से होकर गुजरना पड़ता है।

देवटाके ( पानी की टंकियां) : तानाजी स्मारक के पास पानी की दो टंकियां बनी हुई है। इन टंकियों के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए होता था। महात्मा गांधी जब भी पुणे आते वह इन टंकियों का पानी जरुर मंगवाते थे।

उदयभान राठोड़ का स्मारक : कल्याण दरवाजे की पीछे वाली पहाड़ी पर मुगलों के किलाधिकारी उदयभान राठोड़ की स्मारक मौजूद है।

राजाराम स्मारक : छत्रपति राजाराम महाराज की समाधि भी यहीं मौजूद है। राजाराम महाराज का 30वर्ष की उम्र में 2 मार्च 1700 को निधन हो गया था।

सिंहगढ़ किला पुणे के कई निवासियों के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। किला तानाजी के लिए एक स्मारक के साथ-साथ राजाराम छत्रपति की कब्र के रूप में भी स्थित है। पर्यटक सैन्य अस्तबल, एक शराब की भठ्ठी और देवी काली (देवी) का मंदिर, मंदिर के दाहिनी ओर हनुमान प्रतिमा के साथ-साथ ऐतिहासिक गेट देख सकते हैं।

कैसे जाएँ

सिंहगढ़ आज देश और विदेश के सैलानियों की पसंद बना हुआ है। महाराष्ट्र जाने के लिए देश के अन्य हिस्सों से ट्रैन, जहाज, बसें उपलब्ध हैं। पुणे के स्वारगेट से सिंहगढ़ जाने के लिए बस की सुविधा है। आप कार से भी किले तक जा सकते हैं।


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