क्रन्तिकारी शिवराम हरि राजगुरु | Shivaram Rajguru Biography in Hindi

Shaheed Shivaram Rajguru / शिवराम हरि राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रन्तिकारी थे। ये सरदार भगत सिंह और सुखदेव के घनिष्ठ मित्र थे। इस मित्रता को राजगुरु ने मृत्यु पर्यंत निभाया। इनका का पूरा नाम हरि शिवराम राजगुरु था और एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। देश की आजादी के लिए दी गई राजगुरु की शहादत ने इनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा दिया। राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की शहादत आज भी भारत के युवकों को प्रेरणा के श्रोत है।

क्रन्तिकारी शिवराम हरि राजगुरु | Shivaram Rajguru Biography in Hindi

शिवराम हरि राजगुरु का परिचय – Shivaram Rajguru Biography in Hindi

पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु (Shivaram Rajguru)
जन्म दिनांक 24 अगस्त, 1908
जन्म स्थान पुणे
मृत्यु तिथि  23 मार्च, 1931
मृत्यु स्थान  लाहौर, पाकिस्तान
पिता का नाम श्री हरि नारायण
माता का नाम पार्वती बाई
धर्म हिन्दू (ब्राह्मण)
योगदान भारतीय स्वतंत्रता के लिये संघर्ष
राष्ट्रीयता भारतीय
जेल यात्रा 28 सितंबर, 1929

शिवराम राजगुरु ऐसे महान भारतीय क्रांतिकारियों में से एक हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। ब्रिटिश राज पुलिस अधिकारी की हत्या में भागीदारी के लिए इन्हें मुख्य रूप से जाना जाता है। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे, जिनका मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाकर आज़ाद करवाना था।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Shivaram Rajguru 

स्वतंत्रता सेनानी शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे (महाराष्ट्र) के खेड़ा नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था। जब वे मात्र 6 वर्ष के थे तभी इनके पिता का निधन हो गया था। पिता के निधन के बाद ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इनका पालन-पोषण इनकी माता और बड़े भैया ने किया। राजगुरु बचपन से ही बड़े वीर, साहसी और मस्तमौला थे।

भारत माँ से प्रेम तो बचपन से ही था। इस कारण अंग्रेज़ों से घृणा तो स्वाभाविक ही थी। ये बचपन से ही वीर शिवाजी और लोकमान्य तिलक के बहुत बड़े भक्त थे। संकट मोल लेने में भी इनका कोई जवाब नहीं था। किन्तु ये कभी-कभी लापरवाही कर जाते थे। राजगुरु का पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इसलिए इनको अपने बड़े भैया और भाभी का तिरस्कार सहना पड़ता था। माँ बेचारी कुछ बोल न पातीं।

क्रन्तिकारी जीवन – Shivaram Rajguru Story in Hindi

बचपन से ही राजगुरु के अंदर जंग-ए-आज़ादी में शामिल होने की ललक थी। वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए, उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल थी। इनका और उनके साथियों का मुख्य मकसद था ब्रिटिश अधिकारियोंके मन में खौफ पैदा करना। साथ ही वे घूम-घूम कर लोगों को जागरूक करते थे और जंग-ए-आज़ादी के लिये जागृत करते थे।

चंद्रशेखर आज़ाद इस जोशीले नवयुवक से बहुत प्रभावित हुए और बड़े चाव से इन्हें निशानेबाजी की शिक्षा देने लगे। शीघ्र ही राजगुरु आज़ाद जैसे एक कुशल निशानेबाज बन गए। कभी-कभी चंद्रशेखर आज़ाद इनको लापरवाही करने पर डांट देते, किन्तु यह सदा आज़ाद को बड़ा भाई समझ कर बुरा न मानते। राजगुरु का निशाना कभी चूकता नहीं था। बाद में दल में इनकी भेंट भगत सिंह और सुखदेव से हुई। राजगुरु इन दोनों से बड़े प्रभावित हुए।

राजगुरु क्रांतिकारी तरीके से हथियारों के बल पर आजादी हासिल करना चाहते थे, उनके कई विचार महात्मा गांधी के विचारों से मेल नहीं खाते थे। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे।

सांडर्स हत्याकाण्ड और बदला – Sanders Massacre 

अक्टूबर 1928 में हुए साइमन कमीशन के विरोध में ब्रिटिश पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करते उन्होंने देखा, जिसमें अनुभवी नेता लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गये थे। लाला लाजपत राय ने अत्यधिक मार पीट और चोट खाने के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। कहा जाता है की ब्रिटिश पुलिस ने जानबूझ कर लाला लाजपत राय पर जबरन लाठी चार्ज करवाई थी, जिस वजह से उनकी मृत्यु हो गयी थी।

भगत सिंह और सुखदेव, ये दोनों राजगुरु को अपना सबसे अच्छा साथी मानते थे। दल ने लाला लाजपत राय की मृत्यु के जिम्मेदार अंग्रेज़ अफ़सर स्कॉट का वध करने की योजना बनायी। इस काम के लिए राजगुरु और भगत सिंह को चुना गया। राजगुरु तो अंग्रेज़ों को सबक सिखाने का अवसर ढूँढ़ते ही रहते थे, अब वह सुअवसर उन्हें मिल गया था।

19 दिसंबर, 1928 को राजगुरु, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद ने सुखदेव के कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप जे. पी. सांडर्स नाम के एक अन्य अंग्रेज़ अफ़सर, जिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर लाठियाँ चलायी थीं, का वध कर दिया। कार्यवाही के पश्चात् भगत सिंह अंग्रेज़ी साहब बनकर, राजगुरु उनके सेवक बनकर और चंद्रशेखर आज़ाद सुरक्षित पुलिस की दृष्टि से बचकर निकल गए।

उसके बाद 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली में सेंट्रल असेम्बली में हमला करने में राजगुरु का बड़ा हाथ था। राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव का खौफ ब्रिटिश प्रशासन पर इस कदर हावी हो गया था कि इन तीनों को पकड़ने के लिये पुलिस को विशेष अभियान चलाना पड़ा।

गिरफ़्तारी – Arrest of Shivaram Rajguru

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के असेम्बली में बम फोड़ने और स्वयं को गिरफ्तार करवाने के पश्चात् चंद्रशेखर आज़ाद को छोड़कर सुखदेव सहित दल के सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए, केवल राजगुरु ही इससे बचे रहे। आज़ाद के कहने पर पुलिस से बचने के लिए राजगुरु कुछ दिनों के लिए महाराष्ट्र चले गए। यहाँ पर उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ता के घर पर शरण ली। वहीं पर उनकी मुलाकात डा. केबी हेडगेवर से हुई, जिनके साथ राजगुरु ने आगे की योजना बनायी।

इससे पहले कि वे आगे की योजना पर चलते, पुणे जाते वक्त और कुछ लापरवाही के वजह से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेज़ों ने चंद्रशेखर आज़ाद का पता जानने के लिए राजगुरु पर अनेकों अमानवीय अत्त्याचार किये, किन्तु वीर राजगुरु विचलित नहीं हुए। पुलिस ने राजगुरु को अपने सभी साथियों के साथ लाकर लाहौर की जेल में बंद कर दिया।

राजगुरु पर मुकदमा 

लाहौर में सभी क्रांतिकारियों पर सांडर्स हत्याकाण्ड का मुकदमा चल रहा था। मुक़दमे को क्रांतिकारियों ने अपनी फाकामस्ती से बड़ा लम्बा खींचा। सभी जानते थे की अदालत एक ढोंग है। उनका फैसला तो अंग्रेज़ हुकूमत ने पहले ही कर दिया था। राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव जानते थे की उनकी मृत्यु का फरमान तो पहले ही लिखा जा चूका है तो क्यों न अपनी मस्तियों से अदालत में अंग्रेज़ जज को धुल चटाई जाए।

एक बार राजगुरु ने अदालत में अंग्रेज़ जज को संस्कृत में ललकारा। जज चौंक गया उसने कहा- “टूम क्या कहता हाय”। राजगुरु ने भगत सिंह की तरफ हंस कर कहा कि- “यार भगत इसको अंग्रेज़ी में समझाओ। यह जाहिल हमारी भाषा क्या समझेंगे”। सभी क्रांतिकारी ठहाका मारकर हसने लगे। अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे पंजाब में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी।

जेल में भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने कैदियों के साथ होने वाले अमानवीय अत्त्याचारों के विरुद्ध आमरण अनशन आरंभ कर दिया, जिसको जनता का जबरदस्त समर्थन मिला, जो पहले से ही क्रांतिकारियों के प्रति श्रद्धा का भाव रखती थी, विशेष रूप से भगत सिंह के प्रति। जतिनदास आमरण अनशन के कारण शहीद हो गए, जिससे जनता भड़क उठी। विवश हो कर अंग्रेज़ों को क्रांतिकारियों की सभी बातें मनानी पड़ीं। यह क्रांतिकारियों की विजय थी। उधर सांडर्स हत्याकाण्ड मुक़दमे का परिणाम निकल आया। सांडर्स के वध के अपराध में राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को मृत्युदंड मिला। तीनों इस मृत्युदंड को सुन कर आनंद से पागल हो गए और जोर-जोर से ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ की गर्जाना की।

शहादत – Martyrdom of Shivaram Rajguru

23 मार्च 1931 को, भारत के इन तीन वीर क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई, और उनके शरीर का अंतिम संस्कार सतलुज नदी के तट पर किया गया। यह भी माना जाता है कि इन तीनों क्रांतिकारियों की फाँसी की तिथि 24 मार्च निर्धारित थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार फाँसी के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों से घबरा रही थी। इसीलिए उसने एक दिन पहले ही फाँसी दे दी। जिस समय शिवराम राजगुरू शहीद हुए उस समय वह मात्र 23 वर्ष के थे, हालांकि, शिवराम राजगुरु को भारत की स्वतंत्रता के प्रति अपने जीवन का बलिदान और वीरता के लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा याद किया जाएगा।

सम्मान – Awards of Shivaram Rajguru

राजगुरु के जन्म शती के अवसर पर भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने उन पर संभवत पहली बार कोई पुस्तक प्रकाशित की। पुणे का वह खेड़ा गाँव जहाँ राजगुरु का जन्म हुआ था, उसे अब ‘राजगुरु नगर’ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 1953 में उन्हें सम्मान देते हुए हरियाणा के हिसार में एक शॉपिंग काम्प्लेक्स का नाम भी बदलकर राजगुरु मार्केट रखा गया था।


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