सास बहू का मंदिर, ग्वालियर | Sasbahu Temple, Gwalior

Sas bahu Temple in Hindi / सास बहू का मंदिर मध्य प्रदेश के इतिहासिक शहर ग्वालियर में स्थित है। ग्यारवीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर भगवन विष्णु को समर्पित हैं। जैसा की नाम से प्रतिक होता हैं की यह सास बहु का मंदिर हैं, पर ऐसा नहीं हैं। यह नाम सहस्त्रबाहु (Sahastrabahu Temple) नाम से निकला है जो भगवान विष्णु का दूसरा नाम है। इस मंदिर का निर्माण 1093 ई. में किया गया था।

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर | Sasbahu Temple, Gwalior

सास बहू मंदिर – Sasbahu Temple, Gwalior in Hindi 

सास बहू मंदिर की मूर्तिकला तथा नक़्क़ाशी शानदार है। ख़ूबसूरत मूर्तिकला का यह सुन्दर नमूना है। ग्वालियर किले के पूर्व में स्थित सास-बहू मंदिर देखने में जितना सुंदर है इसकी गाथा भी उतनी ही अद्भुत है। कहा जाता है कि इस मंदिर को देखना स्वर्ग के देवी-देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन करने जैसा ही है।

हालाँकि स्‍थानीय लोगों की यह मान्यता है कि यह मंदिर ‘सास और बहू’ को समर्पित है। यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर सहस्रबाहु अर्थात् हज़ार भुजाओं वाले विष्णु को समर्पित है। इसके दरवाज़े पर भगवान ब्रम्हा, भगवान विष्णु और देवी की नक्काशियां की हुई हैं।

मंदिर का इतिहास – Sas Bahu Temple History in Hindi

मंदिर के बनने के पीछे की कहानी वर्ष 1092 ईस्वी में शुरू हुई थी। ग्यारहवीं सदी में ग्वालियर में कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल का शासन था। उनकी पत्नी भगवान विष्णु की परम भक्त थी। रानी की इच्छानुसार राजा महिपाल ने भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया जिसका नाम सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया।

कुछ समय बाद रानी के पुत्र की शादी हुई और उनकी पुत्रवधू भगवान शिव की भक्त थी। अपनी पुत्रवधू के प्रभाव से रानी ने मंदिर के पास ही भगवान शिव का भी मंदिर बनवाया। दोनों मंदिरों को संयुक्त रूप से सहस्त्रबाहु मंदिर कहा जाने लगा। कालान्तर में यही सहस्त्रबाहु मंदिर अपभ्रंश होकर सास-बहू मंदिर हो गया।

एक अन्य किंवदंती के अनुसार रानी (सास) और उनकी पुत्रवधू (बहू) के नाम पर मंदिर का नाम सास-बहू मंदिर पड़ा। यहाँ दो मंदिर है जिनमें से एक बड़ा है और एक छोटा।

मंदिर की बनावट – Sas Bahu Temple Artitecture

यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना है जिस पर कमल की नक्काशियां की हुई हैं। इसकी संरचना पिरामिड के आकार की है जिसमें कोई मेहराब नहीं है। 32 मीटर लंबा तथा 22 मीटर चौड़ा है। मंदिर में प्रवेश के लिए तीन दिशाओं में दरवाजे हैं जबकि चौथी दिशा में एक दरवाजा बना हुआ है जो वर्तमान में बंद है।

मंदिर की दीवारों, खंबों तथा छत पर नक्काशीदार आकृतियां बनाई गई हैं जो देखते ही मन मोह लेती है। इसके अलावा मंदिर की छत से ग्वालियर शहर को देखना भी अपने आप में एक खास अनुभव देता है।


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