Safdar Jang Tomb History in Hindi/ सफ़दरजंग का मक़बरा दिल्ली का अंतिम परिबद्ध (चारों तरफ से बंद) बाग़ीचों वाला मक़बरा है। इस मकबरे में आखिरी संलग्न कब्र है। इस मकबरे का निर्माण वर्ष 1753 में अवध के नवाब शुजाउददौला द्वारा अपने पिता के सफदरजंग की याद में बनवाया गया था। मकबरा एक सफेद समाधि है जो मुगल वास्तुकला का अंतिम चिराग माना जाता है। यह मक़बरा लोदी मार्ग, नई दिल्ली में स्थित है।
सफ़दरजंग का मक़बरा का इतिहास, जानकारी – Safdarjung Ka Maqbara History in Hindi
सफदरंज का मकबरा एक बंद बगीचों वाला मकबरा है। इस मक़बरे में सफ़दरजंग और उनकी बेगम की क़ब्र बनी हुई है। इसके आलावा जंगल महल (पैलेस ऑफ वुड्स) मोती महल (पर्ल पैलेस) और बादशाह पसंद (किंग्स फेवॅरिट) आदि हैं। इसके परिसर में एक मदरसा भी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसके मुख्य द्वार पर एक पुस्तकालय चलाया जाता है।
300 वर्ग किलोमीटर स्मारक का प्रवेश द्वार प्रभावशाली आकृति के साथ सुंदर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया है। मकबरे का मुख्य द्वार करीब दो मंजिला का जिस पर अरबी शिलालेख को देखा जा सकता है। कब्र का केंद्रीय हिस्सा अपने रंगों के भव्य प्रदर्शन करता हैं। ये मकबरा प्राचीन मुग़ल वास्तुकला की एक जिंदा मिसाल है जो बहुत ही खूबसूरत है।
मकबरे का निर्माण –
सफ़दरजंग मकबरा को 1753-54 ई. में अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अपने पिता मिर्ज़ा मुकिम अबुल मंसूर ख़ान, जो कि सफरदजंग के रूप में जाने जाते थे, उनकी यद् में बनवाया था। सफ़दरजंग मुग़ल काल में सन 1719-1748 ई. में मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह की अवधि में प्रधानमंत्री नियुक्त हुए थे। सफ़दरजंग की उपाधि बादशाह मुहम्मदशाह ने ही उन्हें दी थी।
स्थापत्य कला –
इसे आज भी मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। केन्द्रीय इमारत में एक बड़ा गुम्बद है, जो सफ़ेद संगमरमर पत्थर से निर्मित है। शेष इमारत लाल बलुआ पत्थर से बनी है। इसका स्थापत्य हुमायूँ के मक़बरे के ढांचे पर ही आधारित है। मोती महल, जंगली महल और बादशाह पसंद नाम से पैवेलियन भी बने हुए हैं। चारों ओर पानी की चार झीलें हैं, जो चार इमारतों तक जाती हैं। पूर्व दिशा में मुख्य द्वार है, जो औरोबिन्दो मार्ग पर स्थित है। अन्य इमारतों में लोगों के लिए रिहायशी सुविधाएं हैं। मुख्य इमारत में जुड़े हुए ही चार अष्टकोणीय मीनारें भी हैं।
ये मकबरा एक सफेद समाधि है जो मुगल वास्तुकला का सुंदर नमूना है। यहाँ मौजूद विशाल दीवारें, लम्बे फव्वारे, मुग़ल गार्डन आपको मुग़ल शैली को खास पहचान देती हैं। इस मकबरे में सोलह खंड हैं जिनमे मोती महल, जंगली महल, बादशाह पसंद। इस परिसर में चार पानी की नहरें और चार इमारतें भी हैं।
कब जाएँ –
यह आम लोगों के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक सभी दिन खुला रहता है। रविवार को भी यह खुला रहता है। यह एक संरक्षित स्मारक है जिसमें भारतीयों के लिए इस मक़बरे का प्रवेश शुल्क बहुत कम है। उन्हें एक व्यक्ति के लिए पाँच रुपया प्रवेश शुल्क देना होता है, जबकि बाहरी पर्यटकों के लिए शुल्क सौ रुपये है। यदि पर्यटक यहाँ की तस्वीरें लेना चाहें तो अतिरिक्त भुगतान करके तस्वीरें ली जा सकती हैं। मक़बरे के पास ऐसे कई दर्शनीय स्थल हैं, जहां पर पर्यटक घूम सकते हैं। खाने-पीने, ख़रीदारी करने के भी विकल्प यहाँ मौजूद हैं।
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