रानी दुर्गावती की जीवनी व इतिहास | Rani Durgavati in Hindi

Rani Durgavati History in Hindi / रानी दुर्गावती गोंडवाना की शासक थीं जो भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में गिनी जाती हैं। अपने विवाह के चार वर्ष बाद अपने पति दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। इन्होने लगभग 16 वर्ष शासन किया, इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। वे इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं।

रानी दुर्गावती की जीवनी व इतिहास | Rani Durgavati in Hindi

रानी दुर्गावती का परिचय – Rani Durgavati Biography in Hindi

पूरा नामरानी दुर्गावती (Rani Durgavati)
जन्म दिनांक5 अक्टूबर, 1524
जन्म स्थानबांदा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु तिथि 24 जून, 1564
मृत्यु स्थान अचलपुर, महाराष्ट्र
पिता का नामराजा कीर्तिराज
पति का नामराजा दलपतशाह
कर्म-क्षेत्ररानी, वीरांगना
रिलिजनहिंदू
राष्ट्रीयताभारतीय
विशेष योगदानरानी दुर्गावती ने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।

रानी दुर्गावती को चीते के के शिकार में विशेष रुचि थी। इनके बारे में कथा प्रसिद्द हैं की एक बार गढ़मंडल के जंगलो में उस समय एक शेर का आतंक छाया हुआ था। शेर कई जानवरों को मार चुका था। रानी कुछ सैनिको को लेकर शेर को मारने निकल पड़ी। रास्ते में उन्होंने सैनिको से कहा, ” शेर को मैं ही मारूंगी” शेर को ढूँढने में सुबह से शाम हो गई। अंत में एक झाड़ी में शेर दिखाई दिया, रानी ने एक ही वार में शेर को मार दिया। रानी के अचूक निशाने को देखकर सैनिक आश्चर्यचकित रह गये।

प्रारम्भिक जीवन – – Early Life of Rani Durgavati 

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को चंदेल राजवंश के कालिंजर किले में जोकि वर्तमान में बाँदा, उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध राजपूत चंदेल सम्राट कीरत राय के परिवार में हुआ। दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।

इन्हें वीरतापूर्ण और साहस से भरी कहानी सुनने और पढ़ने का भी बहुत शौक था। रानी ने बचपन में घुड़सवारी भी सीखी थी। रानी अपने पिता के साथ ज्यादा वक्त गुजारती थी, उनके साथ वे शिकार में भी जाती और साथ ही उन्होंने अपने पिता से राज्य के कार्य भी सीख लिए थे, और बाद में वे अपने पिता का उनके काम में हाथ भी बटाती थी।

विवाह – 

रानी दुर्गावती का विवाह गोंड साम्राज्य के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह से 1542 में हुआ। हालाँकि राजपूत ना होकर गोंढ जाति के होने के कारण रानी के पिता को यह स्वीकार न था। दलपत शाह के पिता संग्राम शाह थे जोकि गढ़ा मंडला के शासक थे। वर्तमान में यह जबलपुर, दमोह, नरसिंहपुर, मंडला और होशंगाबाद जिलों के रूप में सम्मिलित है। संग्राम शाह रानी दुर्गावती की प्रसिद्धी से प्रभावित होकर उन्हें अपनी बहु बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कालिंजर में युद्ध कर रानी दुर्गावती के पिता को हरा दिया। इसके परिणामस्वरूप इनका विवाह हुवा।

रानी दुर्गावती और दलपत शाह के विवाह से दोनों राज्यों में गठबंधन हुवा जिस कारण साम्राज्य के संबंधो में सुधार हुआ। उस समय शेर शाह सूरी का शासन था। चदेल और गोंड साम्राज्य के गठबंधन से शेर शाह सूरी को गहरा झटका लगा। हालाँकि शेर शाह सूरी भी बहुत ताकतवर था। मध्य भारत के राज्यों के गठबंधन होने के बावजूद भी वह अपने प्रयासों में बहुत सफल रहा, किन्तु एक आकस्मिक बारूद विस्फोट में उसकी मृत्यु हो गई थी।

रानी दुर्गावती का शासनकाल – Rani Durgavati Story in Hindi

1545 में रानी दुर्गावती ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया।

उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाई। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

साम्राज्य के दीवान और प्रधानमंत्री बोहर अधर सिम्हा और मंत्री मान ठाकुर ने रानी की काफी सहायता की। बाद में रानी अपनी राजधानी चौरागढ़ में सिंगौरगढ़ के महल में चली गयी। उनका यह महल सतपुरा पर्वत श्रेणियों में स्थित है।

शेर शाह की मृत्यु के बाद सुजात खान ने मालवा को हथिया लिया और 1556 में सुजात खान का बेटा बाज़ बहादुर वहा का उत्तराधिकारी बना। और सिंहासन पाने की चाहत में उसने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया लेकिन इस युद्ध में बाज़ बहादुर और उसकी सेना को काफी हानि हुई।

1562 में, अकबर ने मालवा के शासक बाज़ बहादुर को परास्त किया और मालवा को मुगलों ने अपने कब्जे में ले लिया। फलस्वरूप, रानी के साम्राज्य ने मुग़ल सल्तनत की सीमा को छू लिया था। रानी दुर्गावती के समकालीन मुग़ल जनरल ख्वाजा अब्दुल मजीद असफ खान, जिन्होंने रेवा के शासक रामचंद्र को परास्त किया था।

महान् मुग़ल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास ‘नरई नाले’ के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।

इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।

रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले 16 वर्षों तक शासन किया था।

रानी दुर्गावती ने 16 वर्ष तक जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने की। जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम मदन महल किला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां देशप्रेमी जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। 1956 में, जबलपुर मे स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।

सरकार ने उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया। और साथ ही जबलपुर जंक्शन और जम्मुवती के बिच चलने वाली ट्रेन को दुर्गावती एक्सप्रेस के नाम से जाना जाने लगा। इसके अलावा पुरे बुंदेलखंड में रानी दुगावती कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल, और रानी दुगावती अभयारण्य हैं।

रानी दुर्गावती के पिता – Rani Durgavati

चंदेल राजवंश भारत के प्रसिद्द शासको में एक थे। रानी दुर्गावती के पिता राजा कीर्तिराज मुख्य रूप से कुछ बातों के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। ये उन भारतीय शासकों में से एक थे, जिन्होंने महमूद गजनी को युद्ध में खदेड़ा। वे खजुराहों के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों जोकि मध्य प्रदेश के छत्तरपुर जिले में स्थित है, के निर्माण कर्ता थे। वर्तमान में यह यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है।


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