Ramzan in Hindi – रोजा इस्लाम के पांच फ़र्जो में एक हैं। यह रमजान-ए-पाक महीना में शुरू होता हैं। इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीने रमजान है जिसे अरबी भाषा में रमादान कहते हैं। यह दुनिया भर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र महीना है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस माह का बेसब्री से इंतजार करते हैं। रमजान मुस्लिम धर्मावलंबियों को रब तक पहुंचने का रास्ता बताता है। आइये जाने रमजान के बारे में कुछ बातें..
रोजे को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है। सौम का मतलब होता है रुकना, ठहरना यानी खुद पर नियंत्रण या काबू करना। फारसी में उपवास को रोजा कहते हैं। भारत के मुस्लिम समुदाय पर फारसी प्रभाव अधिक होने के कारण उपवास को फारसी शब्द ही उपयोग किया जाता है। रमजान की शुरुआत चांद देखने के बाद होती है।
क्यों रखते हैं 30 दिन का रोजा? Ramzan Kyun Manaya Jata Hain
माहे रमज़ान शब्द ‘रम्ज़’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- “छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली सूर्य की अत्याधिक गर्मी”। माहे रमज़ान ईश्वरीय नामों में से एक नाम है। इसी महीने में पवित्र क़ुरआन नाज़िल हुआ था। जंगेबदर (बदर के युद्ध) से एक माह और कुछ दिन पूर्व रमजान के रोजों की फर्जियत का हुक्म नाजिल हुआ। तबसे पूरी दुनिया के मुसलमान 29 या 30 दिन के रोज़े रखते हैं। इसमें लोग सूर्य निकलने से पहले से सूर्य डूबने तक किसी भी तरह की चीज खाने-पीने से परहेज करते हैं। यह सिलसिला पूरे माह चलता रहता है।
रोजा का मतलब व्रत है नियम है। रोजा रखने का मतलब केवल भूखे प्यासे रहना नहीं होता है। इसमें आत्मनियंत्रण और संयम का भी पालन करना होता है। रमजान का महीना 30 दिनों का माना जाता है। इसमें पूरे महीने को 10-10 करके 3 भागों में यानी अशरों में बांटा गया है। पहले 10 दिन के रोजा को रहमत कहते हैं, दूसरे 10 दिनों के रोजा को बरकत और अंतिम 10 दिनों के रोजा को मगफिरत कहत हैं।
रमज़ान का इतिहास – Ramadan History in Hindi
रमज़ान का महीना इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने में आता है। यह महीना इस्लामी कैलेंडर के चांद के दिखने से शुरू होता है। रमजान के इस पवित्र महीने में पूरे महीने मुस्लिमों द्वारा रोजे रखे जाते हैं, मान्यता है कि रोजे रखने वाले व्यक्ति की ईश्वर द्वारा उसके सभी गुनाहों की माफी दी जाती है।
इस्लाम धर्म में रमजान में रोजे रखने का प्रचलन काफी पुराना है। इस महने में न इबादतों का काफी महत्व है और यह गुनाहों की माफी का महीना कहा जाता है। यह इस्लाम के पांच स्तंभ, शहादा (कलमा), नमाज, रोजा, जकात और हज में से एक है। इसका जिक्र कुरआन में आया है। इसी महीने में शब-ए-कदर में अल्लाह ने कुरान जैसी नेमत दी। तब से मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते आ रहे हैं। कहा जाता है कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन दो हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज किये गए थे। इसी महीने में कुरआन नाजिल हुआ था। कहा जाता है कि रमजान के आखिरी हिस्से में 21, 23, 25, 27 और 29 में से कोई एक रात लैलतुल कद्र होती है। इसी दिन कुरआन को नाजिल किया गया था।
हर सेहतमंद (बालिग) मुसलमान के लिये यह अनिवार्य है। चूंकि इस्लामिक महीने चांद के आधार पर तय होते हैं इसलिये एककाध रोजे कम ज्यादा हो सकते हैं। इस्लाम धर्म के लिए इस महीने के पवित्र होने का एक मुख्य वजह भी है कुरान के मुताबिक पैगंबर साहब को अल्लाह ने अपने दूत (पैगंबर ) के रूप में चुना था! अतः यह महीना मुस्लिम समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशेष एवं पवित्र होता है जिसमें सभी को रोजे रखना अनिवार्य माना गया है।
रसूल सल्लल्लाहअलैहिवसल्लम ने कहा है कि, जन्नत में आठ दरवाजे हैं, लेकिन उनमें से एक दरवाजा खासतौर पर रोजेदारों के लिए हैं। रोजेदारों से मतलब केवल भूखे प्यासे रहने वालों से नहीं है। रोजेदार से मतलब उन लोगों से है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में रोजे अल्लाह का हुक्म मानते हुए रखा है, अपने को तमाम बुराइयों से बचाते हए सबसे ज्यादा रोजे रखे होंगे वह उस रास्ते से आसानी से जन्नत में दाखिला पा लेगा।
रमज़ान का महत्व – Ramzan Festival in Hindi
रमजान इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है जिसमे कलिमा-ए-तयैबा, नमाज़, हज, रोज़ा, ज़कात। रमज़ान महीने की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है। रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे क़द्र कहते हैं। शबे क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए। यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।
इस महीने में जीतनी अल्लाह की इबादत की जाएँ उतना लाभ हैं। इस महीने में 1 नेकी के बदले 70 गुना सबाब (पुण्य) मिलता है। इस माह में नवाफ़िल नमाज का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।
रोज़े का मक़सद – Ramzan
रोजा रखने की अवधि विभिन्न देशों में अलग-अलग है। क्यूंकि यह सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक होता हैं। इसलिए कहीं चंद घंटों का रोजा है तो कहीं दिन व रात का तो कहीं अहले सुबह से शाम का।
रोज़े का मक़सद सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। इसे सब्र यानी संयम को मजबूत करने और बुरी आदतों को छोड़ने का जरिया भी माना जाता है। ज़बान से ग़लत या बुरा नहीं बोलना, आँख से ग़लत नहीं देखना, कान से ग़लत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। रमजान के महीने में दिन के दौरान महिला और पुरूष के बीच शारीरिक संबंध बनाने पर रोक है।
रसूल सल्लल्लाहअलैहिवसल्लम ने फ़रमाया है कि, हिसाब के दिन रोजे ही अल्लाह से सिफारिश करते हैं, ए परवरदिगार मैंने इस बंदे को खाने, पीने और उसकी तमाम दूसरी चाहतों को दिन में रोक दिया था। आप इसके पक्ष में मेरी सिफारिश कबूल कर लीजिए। इसी तरह कुरआन भी अल्लाह से सिफारिश करता है कि, ए परवरदिगार मैंने इस बंदे को रात में सोने से रोक दिया था, अब आप इसके हक में मेरी सिफारिश को कबूल कर लीजिए। कुरान और रोजे के सिफारिश से बंदे को अल्लाह की रहमत मिल जाएगी।
कैसे रखते हैं रोजा? Roja kaise rkhte hain?
रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी किया जाता हैं, जो सुबह सूरज उगने से पहले होता हैं। उसके दिन भर कुछ नहीं खाया जाता हैं। एक बून्द पानी भी नहीं लिया जाता हैं। शाम में सूरज डूबने के बाद रोजा खोला जाता हैं, जिसे इफ्तार कहते हैं।
इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं। नाबालिग, बीमार व शारीरिक रूप से लाचार लोगों के लिए यह फर्ज माफ है। इस महीने में फ़ितरा और जकात निकाला जाता हैं, जिसमे जरुरतमंदो को मदद किया जाता हैं।
साल में कितना रोजा रख सकते हैं – Roja in Hindi
रमजान का महीना सब्र व सुकून का महीना है, इस महीने में अल्लाह की खास रहमतें बरसती हैं. अल्लाह रमजान माह का एहतराम (पालन) करने वाले लोगों के पिछले सभी गुनाह माफ कर देता है, इस महीने में की गई इबादत और अच्छे कामों का सत्तर गुणा पुण्य मिलता है।
इस्लाम में रमजान की काफी अहमियत है. इस पाक महीने में अल्लाह जन्नत के दरवाजे खोल देता है व दोजख के दरवाजो को बंद कर देता है, वहीं, शैतान को कैद कर लेता है। बताया जाता है कि इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई है।
उलेमा फरमाते हैं कि शुरू में मुहर्रम का दो रोजा वाजिब किया गया था। पैगंबर मोहम्मद को जब अल्लाह ने अपना नबी बनाया तो अल्लाह ने उस वक्त उनके उम्मत पर 50 दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया था। पैगंबर मोहम्मद ने उनसे गुजारिश की कि मेरे उम्मत से 50 दिन का फर्ज रोजा हमारी उम्मत नहीं रखा जाएगा।
अल्लाह ने गुजारिश को कबूल करते हुए रमजान में 30 दिनों का रोजा उनकी उम्मत पर फर्ज किया। शेष 20 रोजा नफिल किया गया, जो ईद के बाद छह रोजे, मुहर्रम, बकरीद, शाबान, रजब आदि महीने में रखे जाते हैं। नफिल रोजों को रखने पर सवाब है। नहीं रखने पर गुनाह भी नहीं है। इमारत-ए-शरिया के नाजिम मौलाना अनिसुर रहमान कासमी कहते हैं कि बालिग मुसलमानों पर रमजान के 30 रोजे फर्ज किए गए हैं।
किस पर फर्ज है रोजा
कुरआन व हदीस में इसका जिक्र है कि हर बालिग मर्द व औरत पर रमजान का रोजा फर्ज किया गया है। केवल उन्हें छूट दी गई है जो बीमार हैं या यात्रा पर हैं। इसके अलावा जो औरतें प्रेग्नेंट हैं या फिर पीरियड्स से हैं और साथ ही बच्चों को रोजा रखने से छूट दी गई है। जो बीमार हैं, बहुत बूढ़े हैं, शरीर में रोजा रखने की क्षमता नहीं है, मानसिक रूप से बीमार हैं उन्हें रोजा नहीं रखने की बात कही गई है। बीमार अगर स्वस्थ हो जाए तो पहली फुर्सत में रोजा रखे। अगर कोई बालिग मर्द व औरत जान बूझकर इस माह का रोजा न रखे तो वह गुनहगार है।
किन छोटी गलतियों से टूट जाता है रोजा
रोजे के दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, जुबान को नियंत्रण में रखा जाना! क्योंकि रोजे के दौरान बुरा न सुनना, बुरा न देखना, न बुरा बोलना और ना ही बुरा एहसास किया जाता है। रोजे के दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, जुबान को नियंत्रण में रखा जाना! क्योंकि रोजे के दौरान बुरा न सुनना, बुरा न देखना, न बुरा बोलना और ना ही बुरा एहसास किया जाता है। वहीं, किसी को गाली देना, अपशब्द कहना या बिना बीमारी गैरजरूरी इंजेक्शन लगवाने से भी रोजा टूट सकता है।
रमजान की अफवाएं
रमजान के लेकर कुछ भ्रामक धारणाएं फैली है। जैसे कहा जाता रोजे रखने के दौरान थूक नहीं निगलना चाहिए! परंतु सच्चाई यह नहीं है हालांकि ऐसा उन्हें इसलिए लगता है क्योंकि रोजा रखने के दौरान पानी पीने की भी मनाही होती है। इसके अलावे ऐसी भ्रांतियां फैली हुई है कि जिस व्यक्ति ने रोजा रखा है उसके सामने भोजन नहीं करना चाहिए। जबकि ऐसा नहीं है, रोजा रखने वाले व्यक्ति के पास इतनी सहन शक्ति होती है कि यदि उसके सामने दूसरा व्यक्ति भोजन करता भी है, तो रोजेदार की भोजन करने की इच्छा नहीं होती। इसी तरह गलती से किसी चीज का सेवन करने से रोजा नहीं टूटता, लेकिन जान बुझ कर करने से रोजा टूट जाता हैं।
FAQ
रमजान की शुरुआत क्यों हुई?
इस्लामिक धर्म की मान्यताओं के अनुसार मोहम्मद साहब (इस्लामिक पैगम्बर) को वर्ष 610 ईसवी में जब इस्लाम की पवित्र किताब कुरान शरीफ का ज्ञान हुआ तो तब से ही रमजान महीने को इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र माह के रूप में मनाया जाने लगा। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज (जरूरी) किए गए।
रमजान क्या है?
मजान इस्लामिक साल का नवां महीना होता है। इस्लाम में इस महीने से ज्यादा मुबारक दूसरा कोई महीना नहीं। इस्लामिक एहकामात के मुाताबिक रोजे अदायगी इसी महीने में रखी गई। रोजा इस्लाम के पांच फर्ज में से एक है।
तरावीह क्या है?
तरावीह भी रमजान की इबादत का एक हिस्सा है। तरावीह वो नमाज होती है जो सिर्फ रमजान में ही अदा की जाती है। यह 20 रकअत की होती है।
सहरी क्या है?
रोजा सहर के वक्त फज्र से शुरू होकर शाम को सूर्योदय के बाद मगरिब की अजान तक होता है। सहर का अर्थ होता है सुबह। सहरी का वक्त फज्र क नमाज का वक्त शुरू होने तक होता है।
इफ्तारी क्या है?
इफ्तार का अर्थ शब्दकोश के मुताबिक किसी बंदिश को खोलना है। रमजान के रोजों में दिन भर खाने-पीने की बंदिशें होती हैं। शाम को मगरिक की अजान होते ही ये बंदिश खत्म हो जाती है। इसलिये इसे इफ्तारी कहा जाता है।
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