Prithviraj Chauhan – पृथ्वीराज चौहान ‘चौहान’ वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे (शासनकाल – सन् 1178-1192) जो उत्तरी भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर और दिल्ली पर शासन करते थे। धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान ऐसे राजा थे जिन्होने अपने देश के लिये अपना पूरा जीवन अर्पण किया, उनकी वीरगाथा पूरी दुनियाभर भर के लिये प्रेरणादायक हैं। उन्होने अपने कार्य से इतिहास के पन्नो ऐसी छाप छोड़ी जिसे सदियो-सदियो नही भुला जा सकता हैं। अपने धरती के लिए उनकी कुर्बानी हमेशा अमर रहेगी। वे दिल्ली के सिंहासन पर राज करने वाले अंतिम स्वत्रंत हिन्दू शाषक थे।
पृथ्वीराज चौहान का इतिहास – Raja Prithviraj Chauhan History in Hindi Language
पूरा नाम | पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) |
जन्म दिनांक | 1149 ई |
जन्म भूमि | अजमेर |
मृत्यु | 1192 |
पिता का नाम | राजा सोमेश्वर चौहान |
माता का नाम | कमलादेवी |
पत्नी | संयोगिता |
राज्याभिषेक | 1169 ई. में 20 वर्ष की आयु में राज्याभिषेक हुआ। |
शासन काल | 1178 -1192 ई. |
शासन अवधि | 24 वर्ष |
राजधानी | अजमेर, दिल्ली |
पृथ्वीराज एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने बचपन में ही अपने हाथों से शेर का जबड़ा फाड़ दिया था। इतना ही नहीं आंखें ना होने के बावजूद अपने परमशत्रु मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार दिया था। पृथ्वीराज एक महान योद्धा होने के साथ-साथ एक प्रेमी भी थे। संयोगिता और पृथ्वीराज की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों में बहुत खूबसूरती के साथ दर्ज है।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता – Prithviraj Chauhan Love Story
जिस समय पृथ्वीराज दिल्ली की सत्ता संभाल रहे थे उसी समय कन्नौज के शासक जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा कर दी। जयचंद, पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था इसलिए उसने इस स्वयंवर में पृथ्वीराज को निमंत्रण नहीं भेजा। पृथ्वीराज चौहान का चित्र देखकर सभी स्त्रियां उनके आकर्षण की वशीभूत हो गईं। जब संयोगिता ने पृथ्वीराज का यह चित्र देखा तब उसने मन ही मन यह वचन ले लिया कि वह पृथ्वीराज को ही अपना वर चुनेंगी।
वह चित्रकार जब दिल्ली गया तब वह संयोगिता का चित्र भी अपने साथ ले गया था। संयोगिता की खूबसूरती ने पृथ्वीराज चौहान को भी मोहित कर दिया। दोनों ने ही एक-दूसरे से विवाह करने की ठान ली। पृथ्वीराज को भले ही निमंत्रण ना भेजा गया हो लेकिन उन्होंने उसमें शामिल होने का निश्चय कर लिया था।
पृथ्वीराज का अपमान करने के उद्देश्य से जयचंद ने उन्हें स्वयंवर में तो आमंत्रित नहीं किया, लेकिन मुख्य द्वार पर उनकी मूर्ति को ऐसे लगवा दिया जैसे कोई द्वारपाल खड़ा हो। स्वयंवर के दिन जब महल में देश के कोने-कोने से आए राजकुमार उपस्थित थे तब संयोगिता को कहीं भी पृथ्वीराज नजर नहीं आए। इसलिए वह द्वारपाल की भांति खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को ही वरमाला पहनाने आगे बढ़ी। जैसे ही संयोगिता ने वरमाला मूर्ति को डालनी चाहे वैसे ही यकायक मूर्ति के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुए और माला पृथ्वीराज के गले में चली गई।
अपनी पुत्री की इस हरकत से क्षुब्ध जयचंद, संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़ा लेकिन इससे पहले की जयचंद कुछ कर पाता पृथ्वीराज, संयोगिता को लेकर भाग गए। इसके बाद जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी हुई। इसके बाद जयचंद मोहम्मद गोरी के साथ मिलकर पृथ्वीराज को मारने की योजना बनाने लगा।
प्रारंभिज जीवन – Prithviraj Chauhan Life History in Hindi
राय पिथौरा नाम मशहूर सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 ई को अजमेर मे हुआ था। उनके पिता का नाम राजसोमेश्वर चौहान और माता का नाम कमलादेवी था। वे तोमर वंश के राजा अनंग पाल का दौहित्र (बेटी का बेटा) थे। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बहुत बहादुर और युद्ध कला में निपुण थे। उन्होंने बचपन से ही शब्द भेदी बाण कला का अभ्यास किया था जिसमे आवाज के आधार पर वो सटीक निशाना लगाते थे। एक बार उन्होने बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के एक शेर का शिकार किया था।
पृथ्वीराज चौहान के सामने दुख की घड़ी भी आई जब मात्र 11 वर्ष की उम्र मे उनके पिता महाराज सोमेश्वर चौहान का देहांत हो गया। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान को राजपाट की ज़िम्मेवारी मिली जिसे उन्होने भली-भाँति जीवन की अंतिम सांस तक निभाया।
चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान दोनों बचपन के मित्र थे और बाद में आगे चलकर चन्द्रवरदाई एक कवि और लेखक बने जिन्होंने हिंदी /अपभ्रंश में एक महाकाव्य पृथ्वीराज रासो लिखा।
उन्होंने दो राजधानियों दिल्ली और अजमेर पर शाषन किया जो उनको उनके नानाजी अक्रपाल और तोमरा वंश के अंगपाल तृतीय ने सौंपी थी। पृथ्वीराज की तेरह रानीयां थी, उन में से संयोगिता प्रसिद्धतम है। संयोगिता शक्तिशाली शासक जयचंद की पुत्री थी जिससे पृथ्वीराज चौहान ने प्रेम विवाह किया था, जो की जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी का कारण भी बना था। पृथ्वीराज की अन्य रानिया जाङ्गलु, पद्मावती, चन्द्रावती को भी प्रसिद्धि प्राप्त हुई।
शासनकाल और मोहम्मद गौरी से युद्ध – Prithviraj Chauhan and Muhammad Ghori Story
पृथ्वीराज ने अपने समय के विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को कई बार पराजित किया। युवा पृथ्वीराज ने आरम्भ से ही साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। पहले अपने सगे-सम्बन्धियों के विरोध को समाप्त कर उसने राजस्थान के कई छोटे राज्यों को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। फिर उसने बुंदेलखण्ड पर चढ़ाई की तथा महोबा के निकट एक युद्ध में चदेलों को पराजित किया।
पृथ्वीराज की सेना भी बहुत विशालकाय थी जिसमे लगभग 3 लाख सेना और 300 हथिया थी। किंवदंतियों के अनुसार गौरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें 17 बार गौरी को पराजित होना पड़ा। और पृथ्वीराज ने दरियादिली दिखाते हुए कई बार माफ भी किया और छोड़ दिया पर अठारहवीं बार मुहम्मद गौरी ने जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में मात दी और बंदी बना कर अपने साथ ले गया। पृथ्वीराज चौहान और चन्द्रवरदाई दोनों ही बन्दी बना लिये गये और सजा के तौर पर पृथ्वीराज की आखें गर्म सलाखों से फोड दी गई। अंत में चन्द्रवरदाई जो कि एक कवि और पृथ्वीराज चौहान के ख़ास दोस्त थे। उन दोनों को एक मौका मिला जब गौरी ने तीरंदाजी का खेल आयोजित किया।
चन्दवरदाई की सलाह पर पृथ्वीराज ने गौरी से इस खेल में सामिलित होने की इच्छा जाहिर की। पृथ्वीराज की ये बात सुनकर गौरी के दरबारी खिल-खिलाकर हंसने लगे कि एक अँधा कैसे तीरंदाजी में हिस्सा लेना चाहता है। पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी सामने शर्त रखा की या तो वो उसे मार दे या फिर खेल में हिस्सा लेने दे। चन्दरवरदाई ने पृथ्वीराज की और से गौरी को कहा कि एक राजा होने के नाते वो एक राजा के आदेश की मान सकता है। मुहम्मद गौरी के जमीर को चोट लगी और जिस कारण वो राजी हो गया।
खेल के आयोजन दिन गौरी अपने सिंहासन पर बैठा हुआ था और पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया। पृथ्वीराज को उस समय पहली बार बेडियो से मुक्त किया गया। चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान दोनों नें भरे दरबार में गौरी को मारने की योजना बनाई जिसके तहत चन्द्रवरदाई ने काव्यात्मक भाषा में एक पक्तिं कही-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान।” (अर्थ: दस कदम आगे, बीस कदम दाए, बैठा है सुल्तान, अब मत चुको चौहान , चला दो अपना बाण)
और अंधे होने के बावजूद पृथ्वीराज चौहान ने इसको सुना और बाण चलाया जिसके फलस्वरूप मुहम्मद गौरी का प्राणांत हो गया। इसके बाद गौरी के मंत्रियो ने पृथ्वीराज की हत्या कर दी। इस तरह पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया। उधर संयोगिता ने जब ये दुखद समाचार सुना तो उसने भी अपने प्राणों का अंत कर दिया। और इस तरह एक महान हिन्दू शासक का अंत हुआ।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु – Prithviraj Chauhan Died
किसी भी इतिहासकार को किंवदंतियों के आधार पर अपना मत बनाना कठिन होता है। इस विषय में इतना निश्चित है कि गौरी और पृथ्वीराज में कम से कम दो भीषण युद्ध आवश्यक हुए थे, जिनमें प्रथम में पृथ्वीराज विजयी और दूसरे में पराजित हुआ था। वे दोनों युद्ध थानेश्वर के निकटवर्ती ‘तराइन’ या ‘तरावड़ी’ के मैदान में हुए थे। हालाँकि दूसरी युद्ध मे हार का कारण हैं जयचंद का गद्दारी जो की राजपूतो का साथ छोड़ गौरी का साथ दिया था। अंत मे उसे भी इसकी सज़ा मिली थी।
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