Prem Mandir / प्रेम मन्दिर उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले की प्रसिद्ध नगरी वृंदावन में बना आधुनिक मन्दिर है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है। जिसका 17 फ़रवरी, 2012 को लोकार्पण हुआ। इसकी देखरेख एक अंतर्राष्ट्रीय निर्लाभ, साहित्यिक, चैरिटेबल ट्रस्ट जगद्गुरु कृपालु परिषद् करती है।
वृन्दावन का प्रेम मन्दिर – Prem Mandir Temple Vrindavan History in Hindi
उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी मथुरा को भगवान श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता हैं, क्योंकि इसी नगर में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यहां का पूरा क्षेत्र कान्हा की भक्ति और कृपा से भरा हुआ है। जाति, वर्ण और देश का भेद मिटाकर पूरे विश्व में प्रेम की सर्वोच्च सत्ता क़ायम करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण व राधा रानी की दिव्य प्रेम लीलाओं की साक्षी वृंदावन नगरी में प्रेम मंदिर का निर्माण करवाया गया है।
स्थापना
लगभग 54 एकड़ में फैली प्रेम मन्दिर का निर्माण कृपालु जी महाराज ने करवाया। 14 जनवरी, 2001 को उन्होंने लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में पहली ईंट रखकर प्रेम मंदिर का शिलान्यास किया था। उसी दिन से राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क़रीब एक हज़ार शिल्पकार अपने हज़ारों श्रमिकों के साथ प्रेम मंदिर को गढ़ने में जुटे थे और 11 साल बाद यह साकार होकर सामने आया। इस मन्दिर के निर्माण में क़रीब 150 करोड़ रूपए की धनराशि का खर्च हुआ। कृपालु जी महाराज का कहना है कि जब तक विश्व में प्रेम की सत्ता सर्वोच्च स्थान हासिल नहीं करेगी, विश्व का आध्यात्मिक कल्याण सम्भव नहीं है।
स्थापत्य कला
इसके निर्माणकार्य की शुरुवात जनवरी 2001 में हुई थी और इसका उदघाटन समारोह 2012 में 15 फरवरी से 17 फरवरी तक चला था। भव्य युगल विहारालय-प्रेम मंदिर 11 साल के बाद बनकर तैयार हुआ। इसे सफेद इटालियन संगमरमर से तराशा गया है। चटिकारा मार्ग पर स्थित श्रीवृंदावन धाम का यह अद्वितीय युगलावास प्राचीन भारतीय शिल्पकला की झलक भी दिखाता है। इस अद्वितीय श्रीराधा-कृष्ण प्रेम मंदिर का लोकार्पण 17 फ़रवरी को वैदिक मंत्रोच्चार व प्रेम कीर्तन के साथ किया गया। प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लम्बा और 115 फुट चौड़ा है। इसमें ख़ूबसूरत उद्यानों के बीच फ़व्वारे, श्रीराधा कृष्ण की मनोहर झझंकियां, श्रीगोवर्धन धारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीलाएं सुसज्जित की गई हैं।
प्रेम मंदिर के बाजू में ही एक 73,000 वर्ग फीट के पिल्लर का निर्माण किया गया है, जहाँ एक साथ-एक ही समय 25,000 लोग जमा हो सकते है। मंदिर की दीवारों का निर्माण भी कठोर इटालियन संगमरम से ही किया गया है, जो 3.25 फीट मोटी है। साथ ही गरभा-गृह के दीवार की मोटाई 8 फीट है, जिसने पुरे शिखर, स्वर्ण कलश और ध्वज के वजन को संभाल रखा है। मंदिर में लगाये गये पैनल को श्रीमद् भगवत गीता से लिया गया है।
वास्तुकला
प्रेम मंदिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। दिव्य प्रेम का संदेश देने वाले इस मंदिर के द्वार सभी दिशाओं में खुलते हैं। मुख्य प्रवेश द्वारों पर अष्ट मयूरों के नक़्क़ाशीदार तोरण बनाए गए हैं। पूरे मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पकारों ने मूर्त रूप दिया गया है। पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तम्भ हैं, जिसमें किंकिरी व मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के अंदर व बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हुई नक़्क़ाशी व पच्चीकारी सभी को मोहित करती है। यहां संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर ‘राधा गोविंद गीत’ के सरल व सारगर्भित दोहे प्रस्तुत किए गए हैं, जो भक्तियोग से भगवद् प्राप्ति के सरल व वेदसम्मत मार्ग प्रतिपादित करते हैं।
भगवान कृष्णा के श्रद्धालुओ की इस मंदिर पर काफी श्रद्धा है। वे इस मंदिर को भगवान कृष्णा के सबसे पवित्र और प्रसिद्द मंदिरों में से एक मानते है। वृन्दावन को विकसित करने में कृपालु महाराज का बहुत बड़ा योगदान रहा है, उनका मुख्य आश्रम भी वृन्दावन में ही है। अपने श्री वृन्दावन धाम में वे हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहते है।
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