Mahatma Gandhi in Hindi / सत्य और अहिंसा के रास्ते चलते हुए उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो। और उनका मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत में राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम है ‘मोहनदास करमचंद गांधी‘ आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं।
गाँधी जी अबतक भारतीय राजनितिक के सबसे पावरफुल लीडर थे। उन्हें भारत में ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा प्राप्त हैं। ये नाम सबसे पहले सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से जारी प्रसारण में कहकर सम्बोधित किया था। गाँधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। सफ़ेद धोती, चश्मा और हाथ में लाठी लिए गांधी ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया था। महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उनके बताये सिद्धांत को मानने वाला इंसान कभी भी अपने रास्ते से भटक नहीं सकता है।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय – Mahatma Gandhi Biography in Hindi
नाम | मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) |
जन्म दिनांक | 2 अक्टूबर, 1869 |
जन्म स्थान | गुजरात के पोरबंदर क्षेत्र में |
मृत्यु | 30 जनवरी 1948 |
मृत्यु का कारण | गांधी जी की 30 जनवरी को प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी। महात्मा गांधी की समाधि राजघाट दिल्ली पर बनी हुई है। |
पिता का नाम | करमचंद गांधी |
माता का नाम | पुतलीबाई |
पत्नी | कस्तूरबाई माखंजी कपाड़िया [कस्तूरबा गांधी] |
संतान | 4 पुत्र -: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
शिक्षा | बैरिस्टर |
पार्टी | काँग्रेस |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उल्लेखनीय कार्य |
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उन्होंने हमेशा सत्य और अहिंसा के लिए आंदोलन किए और इसी मार्ग मे चलने की सलाह दी। 24 साल की उम्र में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका गए थे और 21 साल रहे। वहां अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्याचार देख बहुत दुखी हुए। उनके साथ भी दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव हुवा। इन सारी घटनाएं उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुवा। जिसके बाद वे अंग्रेजो से भारत की आजादी ठान ली थी।
महात्मा गाँधी की प्रारंभिक जीवन – Early Life Of Mahatma Gandhi in Hindi
मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की पंसारी जाति से सम्बन्ध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।
उनकी माता वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और एक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका असर गाँधी जी पर भी हुआ। जिस घर में गाँधी पैदा हुवे थे आज उसे कीर्ति मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस घर का पुनर्निर्माण से तीन मंजिल का ईमारत बनाया गया हैं, जिसमे 22 कमरे हैं। इस घर में गांधीजी की यादें सहेजी गई हैं। पांच साल तक मोहनदास का बचपन इसी घर में बीता। हर दिन शाम पांच बजे यहां गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो जेने कहिए रे…’ गाया जाता है। गांधीजी अंतिम बार 1928 में पोरबंदर आए थे।
महात्मा गांधी की आत्मकथा – Gandhi ji Autobiography in Hindi
महात्मा गांधी की आत्मकथा में उल्लेख मिलता है कि वे पढाई- लिखाई में कोई विशेष अच्छे नहीं थे। केवल अपनी स्कूल की किताबें ठीक से पढ लें और अध्यापकों द्वारा याद करने के लिए दिए गए सबकों को याद कर लें, इतना भी उनसे ठीक से नहीं हो पाता था, इसलिए स्कूल के अलावा किसी अन्य किताब को पढने की उनकी कभी कोई इच्छा नहीं होती थी न ही कभी किसी अन्य पुस्तक को पढने का उन्होंने कोई प्रयास किया।
लेकिन एक बार उन्होंने श्रृवण पितृ भक्ति नाटक नाम की एक पुस्तक पढी जो कि उनके पिताजी की थी। वे उस पुस्तक से श्रृवण के पात्र से इतना प्रभावित हुए कि जिन्दगी भर श्रृवण की तरह मातृ-पितृ भक्त बनने की न केवल स्वयं कोशिश करते रहे, बल्कि अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को ऐसा बनाने का भी प्रयास करते रहे। इसी प्रकार से बचपन में उन्होंने “सत्यवादी राजा हरीशचन्द्र” का भी एक दृश्य नाटक देखा और उस नाटक के राजा हरीशचन्द्र के पात्र से वे इतना प्रभावित हुए कि जिन्दगी भर राजा हरीशचन्द्र की तरह सत्य बोलने का व्रत ले लिया।
राजा हरीशचन्द्र के पात्र से उन्होंने बालकपन में ही अच्छी तरह से समझ लिया था कि सत्य के मार्ग पर चलने में हमेंशा तकलीफें आती ही हैं लेकिन फिर भी सत्य का मार्ग नहीं छोडना चाहिए और राजा हरीशचन्द्र के नाटक के इस पात्र ने ही गांधीजी के सत्यान्वेषी बनने की नींव रखी।
गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि यदि कोई उन्हें आत्महत्या करने की धमकी देता था, तो उन्हें उसकी धमकी पर कोई भरोसा नहीं होता था क्योंकि एक बार स्वयं गाधीजी आत्महत्या करने पर उतारू थे। उन्होंने कोशिश भी की लेकिन उन्होंने पाया कि आत्महत्या की बात कहना और आत्महत्या की कोशिश करना, दोनों में काफी अन्तर होता है।
गांधीजी इस सन्दर्भ में जिस घटना का उल्लेख करते हैं, उसके अनुसार एक बार गांधीजी को अपने एक रिश्तेदार के साथ बीडी पीने का शौक लग गया। क्योंकि उनके पास बीडी खरीदने के लिए पैसे तो होते नहीं थे, इसलिए उनके काकाजी बीडी पीकर जो ठूठ छोड दिया करते थे। गांधीजी उसी को चुरा लिया करते थे और अकेले में छिप-छिप कर अपने उस रिश्तेदार के साथ पिया करते थे। लेकिन बीडी की ठूठ हर समय तो मिल नहीं सकती थी, इसलिए उन्होंने उनके घर के नौकर की जेब से कुछ पैसे चुराने शुरू किए।
अब एक नई समस्या आने लगी कि चुराए गए पैसों से जो बीडी वे लाते थे, उसे छिपाऐं कहां। चुराए हुए पैसों से लाई गई बीडी भी कुछ ही दिन चली। फिर उन्हे पता चला कि एक ऐसा पौधा होता है, जिसके डण्ठल को बीडी की तरह पिया जा सकता है। उन्हें बहुत खुशी हुई कि चलो अब न तो बीडी की ठूंठ उठानी पडेगी न ही किसी के पैसे चुराने पडेंगे। लेकिन जब उन्होंने उस डण्ठल को बीडी की तरह पिया, तो उन्हें कोई संतोष नहीं हुआ।
इसके बाद उन्हें अपनी पराधीनता अखरने लगी। उन्हें लगा कि उन्हें कुछ भी करना हो, उनके बडों की ईजाजत के बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते। इसलिए उन दोनों ने सोंचा कि ऐसे पराधीन जीवन को जीने से कोई फायदा नहीं है, सो जहर खाकर आत्महत्या ही कर ली जाए। लेकिन फिर एक समस्या पैदा हो गई कि अब जहर खाकर आत्महत्या करने के लिए जहर कहां से लाया जाए? चूंकि उन्होंने कहीं सुना था कि धतूरे के बीज को ज्यादा मात्रा में खा लिया जाए, तो मृत्यु हो जाती है, सो एक दिन वे दोनों जंगल में गए और धतूरे के बीच ले आए और आत्महत्या करने के लिए शाम का समय निश्चित किया। मरने से पहले वे केदारनाथ जी के मंदिर गए और दीपमाला में घी चढाया, केदारनाथ जी के दर्शन किए और एकान्त खोज लिया लेकिन जहर खाने की हिम्मत न हुई। उनके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे:
¤ अगर तुरन्त ही मृत्यु न हुर्इ तो ?
¤ मरने से लाभ क्या है ?
¤ क्यों न पराधीनता ही सह ली जाए ?
आदि… आदि। लेकिन फिर भी दो-चार बीज खाए। अधिक खाने की हिम्मत न हुर्इ क्योंकि दोनों ही मौत से डरे हुए थे सो, दोनों ने निश्चय किया कि रामजी के मन्दिर जाकर दर्शन करके मन शान्त करें और आत्महत्या की बात भूल जाए।
गांधीजी के जीवन की इसी घटना जिसे स्वयं गांधीजी ने अनुभव किया था, के कारण ही उन्होंने जाना कि आत्महत्या करना सरल नहीं है और इसीलिए किसी के आत्महत्या करने की धमकी देने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पडता था क्योंकि उन्हें अपने आत्महत्या करने की पूरी घटना याद आ जाती थी। आत्महत्या से सम्बंधित इस पूरी घटना का परिणाम ये हुआ कि दोनों जूठी बीडी चुराकर पीने अथवा नौकर के पैसे चुराकर बीडी खरीदने व फूंकने की आदत हमेंशा के लिए भूल गए।
इस घटना के संदर्भ में गांधीजी का अनुभव ये रहा कि नशा कई अन्य अपराधों का कारण बनता है। यदि गांधीजी को बीडी पीने की इच्छा न होती, तो न तो उन्हें काकाजी की बीडी की ठूंठ चुरानी पडती न ही वे कभी बीडी के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराते। उनकी नजर में बीडी पीने से ज्यादा बुरा उनका चोरी करना था जो कि उन्हें नैतिक रूप से नीचे गिरा रहा था।
इसी तरह से गांधीजी के जीवन में चोरी करने की एक और घटना है, जिसके अन्तर्गत 15 साल की उम्र में उन पर कुछ कर्जा हो गया था, जिसे चुकाने के लिए उन्होंने अपने भाई के हाथ में पहने हुए सोने के कडे से 1 तोला सोना कटवाकर सुनार को बेचकर अपना कर्जा चुकाया था। इस बात का किसी को कोई पता नहीं था, लेकिन ये बात उनके लिए असह्य हो गई। उन्हें लगा कि यदि पिताजी के सामने अपनी इस चोरी की बात को बता देंगे, तो ही उनका मन शान्त होगा।
लेकिन पिता के सामने ये बात स्वीकार करने की उनकी हिम्मत न हुई। सो उन्होंने एक पत्र लिखा, जिसमें सम्पूर्ण घटना का उल्लेख था और अपने किए गए कार्य का पछतावा व किए गए अपराध के बदले सजा देने का आग्रह था। वह पत्र अपने पिता को देकर वे उनके सामने बैठ गए। पिता ने पत्र पढा और पढते-पढते उनकी आंखें नम हो गईं। उन्होंने गांधीजी को कुछ नहीं कहा। पत्र को फाड़ दिया और फिर से लौट गए।
उसी दिन गांधीजी को पहली बार अहिंसा की ताकत का अहसास हुआ क्योंकि यद्धपि उनके पिता ने उन्हें उनकी गलती के लिए कुछ भी नहीं कहा न ही कोई दण्ड दिया, बल्कि केवल अपने आंसुओं से उस पत्र को गीला कर दिया, जिसे गांधीजी ने लिखा था, और इसी एक घटना ने गांधीजी पर ऐसा प्रभाव डाला कि उन्होंने ऐसा कोई अपराध दुबारा नहीं करने की प्रतिज्ञा ले ली। यदि उस दिन, उस घटना के लिए गांधीजी के पिताजी ने गांधीजी के साथ मारपीट, डांट-डपट जैसी कोई हिंसा की होती, तो शायद हम आज उस गांधी को याद नहीं कर रहे होते, जिसे याद कर रहे हैं।
महात्मा गाँधी की विवाह – Mahatma Gandhi Married
मई 1883 में साढे 13 साल की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया। पत्नी का पहला नाम छोटा करके कस्तूरबा कर दिया गया और उसे लोग प्यार से बा कहते थे। यह विवाह उनके माता पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित था। लेकिन उस क्षेत्र में यही रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। 1885 में जब गान्धी जी 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और इसी साल उनके पिता करमचन्द गन्धी भी चल बसे। मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गान्धी 1888 में, मणिलाल गान्धी 1892 में, रामदास गान्धी 1897 में और देवदास गांधी 1900 में जन्मे।
महात्मा गाँधी की शिक्षा और कार्य – Mahatma Gandhi Career History in Hindi
पोरबंदर से उन्होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल किया। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था। बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे, लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला, वहा महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक रहे।
वहा भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। अफ्रीका में उस समय बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था, उसके बारे में एक किस्सा भी है, जब गांधीजी अग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े उन्हें गाँधीजी को बहुत बेईजत कर के ढकेल दिया। उन्होंने अपनी इस यात्रा में अन्य भी कई कठिनाइयों का सामना किया। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नहीं माना। ये सारी घटनाएँ गान्धी के जीवन में एक मोड़ बन गईं और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गान्धी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाये। वहा उन्होंने सरकार विरूद्ध असहयोग आंदोलन संगठित किया. वे एक अमेरिकन लेखक हेनरी डेविड थोरो लेखो से और निबंधो से बेहद प्रभावित थे। आखिर उन्होंने अनेक विचारो ओर अनुभवों से सत्याग्रह का मार्ग चुना, जिस पर गाँधीजी पूरी जिंदगी चले, पहले विश्वयुद्ध के बाद भारत में ‘होम रुल’ का अभियान तेज हो गया, 1919 में रौलेट एक्ट पास करके ब्रिटिश संसद ने भारतीय उपनिवेश के अधिकारियों को कुछ आपातकालींन अधिकार दिये तो गांधीजीने लाखो लोगो के साथ सत्याग्रह आंदोलन किया।
उसी समय एक और चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए हिंसक आंदोलन कर रहे थे। लेकीन गांधीजी का अपने पूर्ण विश्वास अहिंसा के मार्ग पर चलने पर था। और वो पूरी जिंदगी अहिंसा का संदेश देते रहे।
महात्मा गांधी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi
मृत्यु : 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में वे सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए।
महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गये आंदोलन – Mahatma Gandhi ke Andolan
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945) – Bhartiya Swatantrata Sangram
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष 1916 से 1945 तक चला। यह संघर्ष भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। जब गाँधी जी अफ्रीका से लौटे थे उस समय तक वे राष्ट्रवादी नेता के तौर पर प्रचलित हो चुके थे। उन्होंने इस आंदोलन में किसानों, मजदूरों, शहरी श्रमिकों को एकजुट किया।
चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह (1918-1919) – Champaran Satyagraha in Hindi
गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1918 में एक सत्याग्रह हुआ। यह गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन किसानो पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था। खेड़ा सत्याग्रह भी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध आंदोलन था।
खिलाफत आन्दोलन (1919-1924) – Khilafat Andolan in Hindi
ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। गाँधी जी इस आंदोलन में भाग लिए और मुस्लिम-हिन्दू को एकजुट करने में सहयोग किये।
असहयोग आन्दोलन – Asahyog Andolan in Hindi
गांधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी के नेतृत्व मे चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन का मकशद था अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना।
स्वराज और नमक सत्याग्रह – Namak Satyagrah
गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता हैं। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत 78 लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके 12 मार्च 1930 को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था।
- हरिजन आंदोलन
- द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’
- देश का विभाजन और भारत की आजादी
महात्मा गांधीजी की जीवन कार्य – Mahatma Gandhi History
- 1893 में उन्हें दादा अब्दुला इनका व्यापार कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगोंका संघटित करके उन्होंने 1894 में ‘नेशनल इंडियन कॉग्रेस की स्थापना की।
- 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना सक्त किया था। इसके अलावा रंग भेद नीती के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश शासन विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया।
- 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती यहा सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की.तथा 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन में शुरु किया।
- 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
- 1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
- 1920 में के नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया. असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
- 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्ष पद।
- 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुवा. नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये. ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
- 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
- 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
- 1934 में गांधी जी ने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की. हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी विधायक कार्यक्रम करके उन्होंने प्रयास किया।
- 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
- व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था, जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली. अंततः 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया, 1948 मेंनाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था. वर्ष 1999 में बी.बी.सी. द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में गांधी जी को बीते मिलेनियम का सर्वश्रेष्ट पुरुष घोषित किया गया।
- गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।
महात्मा गांधी की पुस्तकों के नाम – Mahatma Gandhi Book’s –
- माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ (My Experiment With Truth).
- हिन्द स्वराज – सन 1909 में
- दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
- मेरे सपनों का भारत
- ग्राम स्वराज
- ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
- रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान
Mahatma Gandhi – मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले, विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।
गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।
गाँधी जी की आलोचना
गांधी के सिद्धान्तों और करनी को लेकर प्रयः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-
- दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना ।
- खिलाफत आन्दोलनजैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना।
- सशस्त्र क्रान्तिकारियों के अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना।
- गांधी-इरविन समझौता- जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष पद पर सुभाष चन्द्र बोस के चुनाव पर नाखुश होना।
- चौरी चौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना।
- स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना।
FAQ
Ans : 2 अक्टूबर 1869 को
Ans : गुजराती
Q : महात्मा गांधी किस धर्म के थे?
Ans : गान्धी सनातन धर्म की पंसारी जाति से सम्बन्ध रखते थे।
Ans : श्रीमद राजचंद्र जी
Ans : राजकुमारी अमृत
Ans : भारत को आजादी दिलाने में विशेष योगदान रहा था।
Ans : गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।
Ans : 30 जनवरी 1948 को
Q : गांधी जी भारत कब वापस आये?
Ans : गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आए।
Ans : हिन्द स्वराज : सन 1909 में, माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ
Ans : सत्य से संयोग नामक आत्मकथा महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई है।
Q : गांधी जी के पत्नी का क्या नाम था?
Ans : कस्तूरबा गांधी
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Nice information. ..
आपने महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है। कृपया आगे भी ऐसे ही जानकारी देते रहिएगा।
धन्यवाद
Nice information
Very good
very nice information
गाँधी जी के विचार में ताकत थी. उनकी जीवनी हमें स्कूल के जीवन की याद दिलाती है. आपके लेख का मै बहुत ही अभारी हूँ. धन्यवाद
pagal aashu roy
बहुत ही शानदार लेख है हमें बहुत अच्छी लगी |
Very bad information.Mahatma Gandhi ne afrika men to kale gore ke bhed bhav ko door krne ka pryas kiya lekin bharat me nahin.