Vyasa – व्यास अथवा वेदव्यास हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान नारायण के ही कलावतार थे। उन्होंने बहुत से वेदों और महान कथा महाभारत की रचना की थी। वे विश्व के पहले पुराण, विष्णु पुराण की रचना करने वाले महर्षि पराशर के बेटे थे। आइये जाने वेदव्यास की जीवन कथा ..
वेदव्यास की जीवनी – Ved Vyas Biography & Story in Hindi
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी पर दूसरे शिकारी पक्षी ने हमला कर दिया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा।
युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुए वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। एक निषाद ने गर्भ पूर्ण होने पर उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। वह निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया।
महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया, जिसका नाम ‘मत्स्यराज’ हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम ‘मत्स्यगंधा’ रखा गया, क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को ‘सत्यवती’ के नाम से भी जाना जाता था। बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य करने लगी।
एक बार महर्षि पराशर यमुना नदी के किनारे भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते हुए उनकी नजर एक सुंदर स्त्री सत्यवती पर पड़ी। सत्यवती, दिखने में तो बेहद आकर्षक थी। महर्षि पराशर, सत्यवती के प्रति आकर्षित हुए बिना रह नहीं पाए। उन्होंने सत्यवती से नदी पार करवाने की गुजारिश की। सत्यवती ने उन्हें अपनी नाव में बैठने के लिए आमंत्रित किया।
पाराशर मुनि सत्यवती के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले- “देवि! हम तुम्हारे साथ सहवास के इच्छुक हैं।” सत्यवती ने कहा- “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है। इसके बाद फिर से ऋषि के अनुरोध पर स्वीकृति देने से पहले सत्यवती ने उनके सामने अपनी तीन शर्तें रखीं।
- सत्यवती की पहली शर्त थी कि उन्हें संभोग करते हुए कोई भी जीव ना देख पाए। पराशर ने इस शर्त को स्वीकार करते हुए अपनी दैवीय शक्ति से एक द्वीप का निर्माण किया जहां घना कोहरा था। इस कोहरे के भीतर कोई भी उन्हें नहीं देख सकता था।
- दूसरी शर्त थी कि उसके शरीर से आने वाली मछली की महक के स्थान पर फूलों की सुगंध आए। पराशर ने ‘तथास्तु’ कहकर यह शर्त भी स्वीकार कर ली और सत्यवती के शरीर में से आने वाली मछली की गंध समाप्त हो गई। इसके विपरीत उसकी देह फूलों की तरह महकने लगी।
- सत्यवती की पर उन्होंने ने कहा कि सहवास के बाद जब वह गर्भ धारण करेगी तो उसका पुत्र कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि महाज्ञानी होना चाहिए, ना कि एक मछुआरा। सत्यवती की यह शर्त भी पराशर ऋषि द्वारा मान ली गई। साथ ही पराशर ऋषि ने यह भी वरदान दिया कि सहवास के बाद भी उनका कौमार्य कायम रहेगा।
समय आने पर सत्यवती के गर्भ से वेद-वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म लेते ही इन्होंने अपने माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी। सत्यवती और पराशर की संतान का रंग काला था, जिसकी वजह से उसका नाम कृष्ण रखा गया। यही कृष्ण आगे चलकर वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।
वेदव्यास ऋषि नहीं भगवान् थे – Ved Vyas
वेदों का विस्तार करने के कारण ये वेदव्यास तथा बदरीवन में निवास करने कारण बादरायण भी कहे जाते हैं। इन्होंने वेदों के विस्तार के साथ महाभारत, अठारह महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि भगवान् ने स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया। अत: व्यासजी की गणना भगवान् के चौबीस अवतारों में की जाती है।
प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य , चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए।
व्यास का अर्थ – Meaning of Vyasa
व्यास का अर्थ है ‘संपादक’। यह उपाधि अनेक पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण ‘आश्वत’ कहलाते हैं। यही नाम महाभारत के संकलनकर्ता, वेदान्तदर्शन के स्थापनकर्ता तथा पुराणों के व्यवस्थापक को भी दिया गया है। ये सभी व्यक्ति वेदव्यास कहे गये है।