Dr Zakir Hussain / डॉ जाकिर हुसैन ख़ान 13 मई, 1967 से 3 मई, 1969 तक स्वतंत्र भारत के तीसरे राष्ट्रपति रहे। भारतीय गणतंत्र में उनका राष्ट्रपति बनना इस बात को साबित करता है कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहां के संविधान में अभिव्यक्त धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को पूरी तरह लागू किया जाता है। डॉ. जाकिर हुसैन भारत में आधुनिक शिक्षा के सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे। 1969 में असमय देहावसान के कारण वे अपना राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
डॉ. जाकिर हुसैन का परिचय – Dr Zakir Hussain Biography in Hindi
पूरा नाम | डॉ. ज़ाकिर हुसैन (Zakir Husain) |
जन्म दिनांक | 8 फ़रवरी, 1897 |
जन्म भूमि | हैदराबाद, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु | 3 मई, 1969, दिल्ली |
पिता का नाम | फ़िदा हुसैन खान |
माता का नाम | नाजनीन बेगम |
पत्नी | शाहजेहन बेगम |
कर्म-क्षेत्र | शिक्षाविद, भारत के तीसरे राष्ट्रपति |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | पी.एच.डी |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न (1963), पद्म विभूषण (1954) |
डॉ. जाकिर हुसैन मशहूर शिक्षाविद् और आधुनिक भारत के दृष्टा थे। केवल 23 वर्ष की अवस्था में वे ‘जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय’ की स्थापना दल के सदस्य बने। 1920 में उन्होंने ‘जामिया मिलिया इस्लामिया’ की स्थापना में योगदान दिया तथा इसके उपकुलपति बने। इसके अलावा वे भारतीय प्रेस आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा सेवा तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से भी जुड़े रहे। 1967 में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में वह भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुने गये और मृत्यु तक पदासीन रहे।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Dr Zakir Hussain
डॉ जाकिर हुसैन की जन्मतिथि को लेकर कुछ विवाद अवश्य है लेकिन सरकारी दस्तावेजों के अनुसार उनका जन्म 8 फरवरी 1897 को होना प्रमाणित है। हुसैन का जन्म हैदराबाद के अफगान परिवार में हुआ था, जो उच्च मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था। उनके पुरखे 18 वी शताब्दी में फर्रुखाबाद के कायमगंज मोहल्ले में रहते थे।
जाकिर हुसैन के दादा गुलाम हुसैन खान भारत के सेना में महत्वपूर्ण पद पर थे तथा फारुखाबाद से औरंगाबाद जाकर बस गए थे। इसके बाद जाकिर हुसैन के पिता फिदा हुसैन खान 20 वर्ष की अवस्था में हैदराबाद चले गए। यह संदर्भ 1885 का है।
जाकिर हुसैन के पिता फिदा हुसैन पेशे में वकालत करते थे। फिदा हुसैन ना केवल ईमानदार थे बल्कि समग्र रूप से पवित्र आत्मा भी थे। वह किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं करते थे। 13 वर्ष की उम्र में फिदा हुसैन खान का निकाह नाजनीन बेगम के साथ संपन्न हुआ लेकिन खुदा ने उनके भाग्य में अधिक उम्र नहीं लिखी थी।
1907 में मात्र 39 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया। मां के निधन के समय जाकिर हुसैन की उम्र मात्र 10 वर्ष थी। फिदा हुसैन के 7 संतान हुई उनमें जाकिर हुसैन का क्रम बड़ी संतान में से तीसरा था। फिदा हुसैन खान का भी कम उम्र में इन्तकाल हो गया, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर गए थे। उन्होंने काफी धन संपत्ति जमा कर रखी थी ताकि समस्त परिवार का निर्वाह सुगमता के साथ हो सके।
शिक्षा और शादी – Dr Zakir Hussain Education
युवा जाकिर ने इटावा में इस्लामिया हाई स्कूल से अपनी प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा पूरी की। बाद में उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ में एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज (जो आजकल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) में दाखिला लिया। यहीं से उन्होंने एक युवा सुधारवादी राजनेता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की।
1915 मे 18 वर्ष की उम्र मे ज़ाकिर हूसेन का निकाह मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार शाहजहाँ बेगम के साथ हुआ।
भारतीय राष्ट्रवादी के रूप में योगदान – Dr Zakir Hussain
12 अक्टूबर 1920 को जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा करते हुए ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम को तेज किया, तब देश के अन्यान्य युवाओं की भांति जाकिर हुसैन खान ने भी कॉलेज की शिक्षा को तिलांजलि दे दी।
जाकिर हुसैन को अलीगढ़ के एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज में अध्ययन के वर्षों के दौरान से ही एक छात्र नेता के रूप में पहचान मिली। राजनीति के साथ-साथ उनकी दिलचस्पी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी थी। अपनी औपचारिक उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद वे 29 अक्टूबर, 1920 को उन्होंने कुछ छात्रों और शिक्षकों के साथ मिलकर अलीगढ़ में राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की (वर्ष 1925 में यह यूनिवर्सिटी करोल बाग, नई दिल्ली में स्थानांतरित हो गयी। दस वर्षों बाद यह फिर से यह जामिया नगर, नई दिल्ली में स्थायी रूप से स्थानांतरित कर दी गयी और इसका नाम जामिया मिलिया इस्लामिया रखा गया था) इस समय उनकी मात्र 23 साल थी।
जाकिर हुसैन की गहरी रुचि और समर्पण, राजनीति की तुलना में शिक्षा के प्रति अधिक था, जिसका स्पष्ट प्रमाण उनका अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री के लिए जर्मनी जाना था। जब वे बर्लिन विश्वविद्यालय में थे तो उन्होंने प्रसिद्ध उर्दू शायर मिर्जा खान गालिब के कुछ अच्छे शायरियों का संकलन किया था।
जाकिर हुसैन का विचार था कि शिक्षा का मकसद अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के दौरान भारत की मदद के लिए मुख्य उपकरण के रूप उपयोग करना था। वास्तव में जाकिर हुसैन का भारत में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लक्ष्य के प्रति इतना समर्पण था कि वे अपने प्रबल राजनीतिक विरोधी मोहम्मद अली जिन्ना का भी ध्यान अपनी तरफ खींचने में सफल रहे।
डॉ. जाकिर हुसैन स्वतंत्र भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति (पहले इसे एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज के नाम से जाना जाता था) चुने गए। वाइस चांसलर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. जाकिर हुसैन ने पाकिस्तान के रूप में एक अलग देश बनाने की मांग के समर्थन में इस संस्था के अन्दर कार्यरत कई शिक्षकों को ऐसा करने से रोकने में सक्षम हुए। डॉ. जाकिर हुसैन को वर्ष 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन बेहद अनुशासनप्रिय व्यक्तित्त्व के धनी थे। वे चाहते थे कि जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अत्यंत अनुशासित रहें, जिनमें साफ-सुथरे कपड़े और पॉलिश से चमकते जूते होना था। इसके लिए डॉ. जाकिर हुसैन ने एक लिखित आदेश भी निकाला, किंतु छात्रों ने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
यह देखकर डॉ. हुसैन ने छात्रों को अलग तरीके से सुधारने पर विचार किया। एक दिन वे विश्वविद्यालय के दरवाज़े पर ब्रश और पॉलिश लेकर बैठ गए और हर आने-जाने वाले छात्र के जूते ब्रश करने लगे। यह देखकर सभी छात्र बहुत लज्जित हुए। उन्होंने अपनी भूल मानते हुए डॉ. हुसैन से क्षमा मांगी और अगले दिन से सभी छात्र साफ-सुथरे कपड़ों में और जूतों पर पॉलिश करके आने लगे। इस तरह विश्वविद्यालय में पुन: अनुशासन कायम हो गया।
भारत का राष्ट्रपति का सफ़र – Dr Zakir Hussain Third President of India
डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुसलमान थे। 1948 में हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने और चार वर्ष के बाद उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया। 1956-58 में वह संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन (यूनेस्को) की कार्यकारी समिति में रहे। और 1956 में ही वह राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में चयनित हुए।
1957 में वह बिहार राज्य के गवर्नर नियुक्त हो गए और राज्यसभा की सदस्यता त्याग दी। 13 मई, 1967 को वह देश के तीसरे राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। इसके पूर्व 1962 से 1967 तक वे देश के उप-राष्ट्रपति भी रहे। इस प्रकार वे भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने। वे डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद राष्ट्रपति पद पर पहुचने वाले तीसरे राजनीतिज्ञ थे। शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए वर्ष 1963 में उनको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
मृत्यु :-
डॉ० जाकिर हुसैन का देहांत 3 मई, 1969 को हुआ। वह भारत के पहले राष्ट्रपति हैं जिनकी मृत्यु अपने ऑफिस में ही हुई थी। उन्हें नई दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय ) के परिसर में दफनाया गया है। वे एक महान शिक्षाविद होने के साथ-साथ नेतृत्व क्षमता में भी बेजोड़ थे। भारतीय राजनैतिक और शैक्षिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा।