डॉ. एल. सुब्रमण्यम की जीवनी | L. Subramaniam Biography in Hindi

Dr. Lakshminarayana Subramaniam / डॉ. एल. सुब्रमण्यम एक प्रतिष्ठित तमिल वायलिन वादक और संगीतकार हैं। उनको सन 2001 में भारत सरकार ने कला क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। वह कर्नाटक और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के प्रशिक्षक माने जाते हैं।

लक्ष्मीनारायण सुब्रह्मण्यम -  L. Subramaniam Biography in Hindi

लक्ष्मीनारायण सुब्रह्मण्यम –  L. Subramaniam Biography in Hindi

नाम लक्ष्मीनारायण सुब्रह्मण्यम (Lakshminarayana Subramaniam)
जन्म दिनांक 23 जुलाई, 1947
पिता का नाम वी. लक्ष्मीनारायण
माता का नाम वी. सेठ लक्ष्मी
कार्य क्षेत्र वायलिन वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रतिपादक

एल. सुब्रमण्यम पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का कर्नाटक संगीत के साथ कुशल संयोजक करनेवाले प्रतिभाशाली कलाकार हैं। इनके द्वारा संयोजित संगीत की धुनें अपने-आप में अनोखी हैं। ये महज एक वायलिन वादक ही नहीं हैं अपितु इन्हें संगीत के क्षेत्र में तकनीक और नये प्रयोगों के क्रांतिकारी परिवर्तनकर्ता के रूप में जाना जाता है। इन्होंने फ्यूजन ऑर्केस्ट्रल (सम्मिश्रित वाद्य यंत्र) संगीत रचना में अपनी एक अगल पहचान बना ली है।

प्रारंभिक जीवन

डॉ. एल. सुब्रमण्यम का जन्म 23 जुलाई, 1947 को चेन्नई तमिलनाडु में हुवा था। इनका सम्बन्ध एक दक्षिण भारतीय तमिल परिवार से है। उनके पिता वी. लक्ष्मीनारायण और उनकी माँ वी. सेठ लक्ष्मी अपने समय के कुशल संगीतकार थे। इन्होंने मात्र छ: वर्ष की अल्पायु में ही संगीत के अपने पहले सार्वजनिक कार्यक्रम का रंगमंच पर प्रदर्शन किया था।

संगीतकार परिवार से होने की वजह से इन्हे बहुत प्रोत्साहन मिला। उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की है, लेकिन बाद में उन्होने वायलिन वादक बनना पसंद किया। इसके बाद इन्होंने पश्चिमी संगीत में स्नातकोत्तर की शिक्षा कैलिफ़ोर्निया इंस्टीच्यूशन ऑफ आर्ट्स से प्राप्त की। इस दौरान इन्हें अनेक समकालीन प्रतिष्ठित संगीतकारों के साथ रियाज करने का सुनहरा अवसर मिला।

बचपन में ही इन्होंने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में विशेष योग्यता हासिल कर ली थी। ये एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें ‘वायलिन चक्रवर्ती’ (यानि वायलिन सम्राट) के नाम से बचपन में जाना जाता था।

विवाह

एल. सुब्रमण्यम का पहला विवाह विजी सुब्रमण्यम के साथ वर्ष 1976 में हुआ था, परंतु दुर्भाग्यवश 9 फरवरी, 1995 को उनकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद वर्ष 1999 में इन्होंने अपना दूसरा विवाह लोकप्रिय भारतीय पार्श्व गायिका कविता कृष्णमूर्ति के साथ किया। पहली शादी से इन्हें चार बच्चे हुए, जिन्होंने अपने पिता सुब्रमण्यम के संगीत शिक्षा का अनुकरण किया और कई संगीत के कार्यक्रमों में अपने प्रस्तुत भी देते रहे हैं। इनकी बड़ी बेटी गिंगेर शंकर इस समय लॉस एंजिल्स में संगीत कंपोजर के रूप में कार्य कर रही हैं। इनकी दूसरी बेटी बिंदु (सीता) एक प्रसिद्ध गायिका और गीतकार हैं। इनके बड़े बेटे नारायण एक सर्जन (डॉक्टर) हैं जो गायक भी हैं। जबकि इनके छोटे बेटे अम्बी एक वायलिन वादक हैं जिन्हें बहुत ही प्रसिद्धि मिली है।

संगीतज्ञ जीवन

डॉ. एल. सुब्रमण्यम ने आदरणीय चेम्बई वैद्यनाथ भगवतार व कर्नाटक संगीत के कई प्रसिद्ध व्यक्तित्वों के साथ अपने अभिनय का प्रदर्शन किया। उन्होंने पालघाट मणि अय्यर के साथ मृदंग भी बजाया और उन्होंने दक्षिण पूर्व एशियाई कलाकारों के साथ भी मिलकर काम किया है।

इस ‘वायलिन चक्रवर्ती’ ने ‘सलाम बॉम्बे’ और ‘मिसिसिपी मसाला’ जैसी विदेशी फिल्मों के लिए संगीत की भी रचना की है, जिसका निर्देशन न्यूयॉर्क आधारित फिल्म निर्देशक, भारत में जन्मी मीरा नायर ने किया है। उन्होंने बर्नार्डो बर्टोलुची की फिल्म ‘लिटिल बुद्ध’ और मर्चेंट आइवरी की फिल्म ‘कॉटन मैरी’ के लिए भी संगीत दिया है।

विश्व संगीत के संयोजन के प्रति उनकी प्रतिभा स्पष्ट हो गई, जब उन्होंने न्यूयार्क संगीत-प्रेमी के लिए जुबिन मेहता के साथ ‘फैन्टेसी ऑन वैदिक चैट’ (‘वैदिक मंत्र पर कल्पना’) जैसे ऑर्केस्ट्रा (सम्मिश्रित वाद्य यंत्र) का निर्माण किया। उन्होंने बर्लिन ओपेरा के साथ ‘ग्लोबल सिम्फनी’ (वैश्विक स्वर एकता) का भी निर्माण किया।

इन्होंने सैकड़ों धुनों को बनाया, सुसज्जित किया और पुराने धुनों में सुधार भी किया। ये कर्नाटक संगीत के साथ-साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत, जाज, फ्यूज़न, ऑर्केस्ट्रा और विश्व संगीत के भी जानकर हैं। इन्हें न केवल भारत अपितु विश्व के कई देशों में सम्मानित किया जा चुका है। इन्होंने संसार के कई प्रतिष्ठित संगीतकारों के अनुरोध पर उनके साथ अनेकों अंतर्राष्ट्रीय संगीत कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति भी दी है।

इन्होंने 150 से अधिक रिकॉर्डिंग किया है और साथ ही यहूदी मेनुहिन, स्टीफन ग्राप्पेल्ली एवं रगइएरो रिक्की आदि जैसे कई बड़े संगीतकारों के साथ भी काम किया है। इन्हें अपने संगीत के धुनों को आर्केस्ट्रा के साथ संयोजन (मिक्सिंग) के लिए विशेष प्रसिद्ध मिली है।

इस बहुमुखी संगीतकार ने कर्नाटक फिल्म संगीत और हॉलीवुड फिल्म पर किताबें भी लिखी हैं। उनके भाई एल. शंकर एक प्रसिद्ध वायलिन वादक हैं।

पुरूस्कार और सम्मान

वर्ष 1981 में उन्हें ग्रेमी पुरुस्कार से नवाजा गया था। वह पद्म श्री (वर्ष 1988) और पद्म भूषण (वर्ष 2001) जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं। इसके आलावा –

  • वर्ष 1963 – ‘आल इंडिया रेडियो’ पर सबसे अच्छा वायलिन वादन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1988 – ‘लोटस फेस्टिवल’ पुरस्कार
  • वर्ष 2003 – ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि
  • वर्ष 2009 – ‘तंत्री नाद मणि’ पुरस्कार

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