कर्नाला क़िला का इतिहास और जानकारी | Karnala Fort History in Hindi

Karnala Fort / कर्नाला क़िला महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। फन्नेल हिल के नाम से भी प्रसिद्ध यह क़िला ‘कर्नाला पक्षी अभयारण्य’ के अंतर्गत आता है और दो क़िलों से मिलकर बना है। यह जगह किलों के साथ-साथ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के चलते भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

कर्नाला क़िला का इतिहास और जानकारी | Karnala Fort History in Hindi

कर्नाला क़िला, महाराष्ट्र – Karnala Fort Maharashtra in Hindi

मुंबईवासियों के लिए कर्नाला एक परफेक्ट वीकेंड हॉलिडे डेस्टिनेशन है। किलों से समृद्ध यह शहर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है। यहां दो किलों से मिलकर बना है जिसमें एक किला दूसरे से ऊंचा है। ऊंचा किले में 125 फुट ऊंचा स्तंभ है जो बसाल्ट (एक प्रकार का ठोस लावा) से बना हुआ है और पांडु स्तंभ के नाम से जाना जाता है और आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

क़िले के ट्रेक के साथ जंगल में तरह-तरह के पक्षियों को भी देखा जा सकता है। यह क़िला सुरक्षा की दृष्टि के बहुत महत्वपूर्ण क़िलों में माना जाता था। कोंकण के समुद्री किनारे से महाराष्ट्र के भीतरी हिस्सों के लिए जाने वाले ‘भोर घाट’ के मुख्य व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण रखने के लिया यह क़िला बहुत महत्वपूर्ण था। क़िले पर नियंत्रण के लिए हुए युद्धों का इतिहास इसके महत्व को दर्शाता है।

वर्तमान में यह जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। इस किले में मराठी और फारसी शिलालेख हैं। मराठी अस्पष्ट और बिना तारीख के हैं जबकि फारसी शिलालेख पर ‘सैयद नूरुद्दीन मोहम्मद खान, हिजरी, एएच (1735 सीई)’ खुदा हुआ है।

क़िले के निर्माण की तिथि के बारे में इतिहासकारों में मतभेद देखा गया है, लेकिन इस क़िले को 1200 ई. से पहले का माना जाता है। 1248 ई. से 1318 ई. तक यह क़िला देवगिरि के यादव वंश और 1318 ई. से 1347 ई. तक तुग़लक़ वंश के अधिपत्य में था। कर्नाला उत्तरी कोंकण ज़िलों की राजधानी हुआ करता था। बाद में यह क़िला गुजरात के शासनकर्ताओं के अधिकार में आ गया, जिसे 1540 ई. में अहमदनगर के निज़ाम शाह ने जीत लिया। बाद में बसई के पुर्तग़ाली शासकों ने इसे जीत लिया और गुजरात की सल्तनत को दे दिया।

हालाँकि छत्रपति शिवाजी ने 1670 ई. में इसे पुर्तग़ालियों से छीन लिया और उनकी मृत्यु के बाद 1680 ई. में यह क़िला मुग़ल शासक औरंगज़ेब के अधिकार में चला गया। 1740 ई. में इसे फिर से पुणे के पेशवा शासकों ने जीता और 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे जीत लिया।


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