Japan / जापान एशिया महाद्वीप में स्थित एक देश है। जापान चार बड़े और अनेक छोटे द्वीपों का एक समूह है। ये द्वीप एशिया के पूर्व समुद्रतट, यानि प्रशांत महासागर में स्थित हैं। जापानी अपने देश को निप्पन कहते हैं, जिसका मतलब सूर्यनिकास है। जापान के निकटतम पड़ोसी देश चीन, कोरिया तथा रूस हैं। जापान राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र होने के साथ-साथ यह उन लोगों के लिए बिल्कुल सही जगह है जो सपने देखते हैं और उन सपनों को पूरा करने की हिम्मत रखते हैं। जापान के लोगों में काम करने का जुनून है जो जापान की तरक़्क़ी से साफ़ देखा जा सकता है। टोक्यो जापान की राजधानी (japan ki rajdhani) है। चलिए जानते japan desh kaisa hai
जापान की जानकारी – Japan Information in Hindi
जापान 6852 द्वीपों के स्ट्रेटो ज्वालामुखी का द्वीपसमूह है। इनमे से चार सबसे बड़े होन्शु, होक्कैडू, क्यूशू और शिकोकू शामिल है, जो जापान के 97% भाग में बसे हुए है। इस देश को 8 क्षेत्रो के 47 प्रांतो में विभाजित किया गया है। 127 मिलियन जनसँख्या के साथ जनसँख्या के हिसाब से यह दुनिया का दसवाँ सबसे बड़ा देश है। जापान की कुल जनसँख्या में से 98.5% लोग जापानी है। जापान की राजधानी टोक्यो है, और तक़रीबन 9.1 मिलियन लोग यहाँ रहते है। बौद्ध धर्म देश का प्रमुख धर्म है और जापान की जनसंख्या 9 6% बौद्ध अनुयायी है। जापान दुनिया के आधुनिकता की मिसाल है। लेकिन इसने अपनी परंपरा को छोड़ा नहीं है। यहाँ आपको जापान की तरक़्क़ी दिखाई देगी, तो साथ ही इसकी संस्कृति भी।
टोक्यो जापान की राजधानी है। और उसके अन्य बड़े महानगर योकोहामा, ओसाका और क्योटो हैं। जापान की राजधानी टोक्यो दुनिया के सबसे विकसित शहरों में से एक है। काबुकी और पोकीमोन, सूमो और मोबाइल फ़ोन की जन्मस्थली टोक्यो पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता का संगम है। टोक्यो का पुराना नाम इडो है जिसे सन् 1868 ई. में बदल कर टोक्यो कर दिया गया। इसी वर्ष इसे क्योटो के बदले जापान की राजधानी बनाया गया। वैसे टोक्यो का राजनीतिक महत्त्व तब ही बढ़ गया था जब सन् 1603 ई. में तोकुगवा लेयासु ने यहाँ अपनी सामंती सरकार बनाई। सन् 1923 ई. के भूकंप और सन् 1945 ई. के युद्ध ने इस शहर को बहुत नुक़सान पहुँचाया। लेकिन आज टोक्यो इन सदमों से उबर चुका है और पर्यटन के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है।
जापान का इतिहास – Japan History in Hindi
जापान का प्रथम लिखित साक्ष्य 57 ईस्वी के एक चीनी लेख से मिलता है। इसमें एक ऐसे राजनीतिज्ञ के चीन दौरे का वर्णन है जो पूरब के किसी द्वीप से आया था। धीरे-धीरे दोनो देशों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक सम्बंध स्थापित हुए। उस समय जापानी एक बहुदैविक धर्म का पालन करते थे जिसमें कई देवता हुआ करते थे। छठी शताब्दी में चीन से होकर बौद्ध धर्म जापान पहुंचा। बौद्ध धर्म ने पुरानी मान्यताओं को खत्म नहीं किया पर मुख्य धर्म बौद्ध ही बना रहा।
शिंतो मान्यताओं के अनुसार जब कोई राजा मरता है तो उसके बाद का शासक अपना राजधानी पहले से किसी अलग स्थान पर बनाएगा। बौद्ध धर्म के आगमन के बाद इस मान्यता को त्याग दिया गया। 710 ईस्वी में राजा ने नॉरा नामक एक शहर में अपनी स्थायी राजधानी बनाई। शताब्दी के अन्त तक इसे हाइरा नामक नगर में स्थानान्तरित कर दिया गया जिसे बाद में क्योटो का नाम दिया गया। सन् 910 में जापानी शासक फूजीवारा ने अपने आप को जापान की राजनैतिक शक्ति से अलग कर लिया। यह अपने समकालीन भारतीय, यूरोपी तथा इस्लामी क्षेत्रों से पूरी तरह भिन्न था जहाँ सत्ता का प्रमुख ही शक्ति का प्रमुख भी होता था। इस वंश का शासन ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त तक रहा। कई लोगों की नजर में यह काल जापानी सभ्यता का स्वर्णकाल था।
मध्यकाल मे जापान में सामंतवाद का जन्म हुआ। जापानी सामंतों को समुराई कहते थे। जापानी सामंतो ने कोरिया पर दो बार चढ़ाई की पर उन्हें कोरिया तथा चीन के मिंग शासको ने हरा दिया।
तेरहवीं शताब्दी में कुबलय खान मध्य एशिया के सबसे बड़े सम्राट के रूप में उभरा जिसका साम्राज्य पश्चिम में फारस, बाल्कन तथा पूर्व में चीन तथा कोरिया तक फैला था। सन 1281 में कुबलय खान ने जापान पर चढ़ाई की। इस समय उसके पास लगभग 1,50.000 सैनिक थे और वह जापान के दक्षिणी पश्चिमी तट पर पहुंचा। दो महीनो के भीषण संघर्ष के बाद जापानियों को पीछे हटना पड़ा। धीरे धीरे कुबलय खान की सेना जापानियों को अन्दर धकेलती गई और लगभग पूरे जापान को कुबलय खान ने जीत लिया। लेकिन इसी बिच जापान एक भयंकर तूफान आया। मंगोलो के तट पर खड़े पोतो को बहुत नुकसान पहुंचा और वे विचलित हो वापस भागने लगे। इसके बाद बचे मंगोल लड़कों का जापानियों ने निर्दयतापूर्वक कत्ल कर दिया और कुबलय खान मार गया। जापानियों की यह जीत निर्णायक साबित हुई और द्विताय विश्वयुद्ध से पहले किसी विदेशी सेना ने जापान की धरती पर कदम नहीं रखा। इन तूफानो ने जापानियों को इतना फायदा पहुंचाया कि इनके नाम से एक पद जापान में काफी लोकप्रिय हुआ – कामिकाजे, जिसका शाब्दिक अर्थ है – अलौकिक पवन।
सोलहवीं सदी में यूरोप के पुर्तगाली व्यापारियों तथा मिशनरियों ने जापान में पश्चिमी दुनिया के साथ व्यापारिक तथा सांस्कृतिक तालमेल की शुरूआत की। जापानी लोगों ने यूपोरीय देशों के बारूद तथा हथियारों को बहुत पसन्द किया। यूरोपीय शक्तियों ने इसाई धर्म का भी प्रचार किया। 1549 में पहली बार जापान में इसाई धर्म का आगमन हुआ। ईसाई धर्म जापान में उसी प्रकार लोकप्रिय हुआ जिस प्रकार सातवीं सदी में बौद्ध धर्म। उस समय यह आवश्यक नहीं था कि यह नया धार्मिक सम्प्रदाय पुराने मतों से पूरी तरह अलग होगा। पर ईसाई धर्म के प्रचारकों ने यह कह कर लोगो को थोड़ा आश्चर्यचकित किया कि ईसाई धर्म को स्वीकार करने के लिए उन्हें अपने अन्य धर्म त्यागने होंगे। यद्यपि इससे जापानियों को थोड़ा अजीब लगा, फिर भी धीरे-धीरे ईसाई धर्मावलम्बियो की संख्या में वृद्धि हुई।
1615 ईस्वी तक जापान में लगभग पाँच लाख लोगो ने ईसाई धर्म को अपना लिया। 1615 में समुराई सरगना शोगुन्ते को संदेह हुआ कि यूरोपीय व्यापारी तथा मिशनरी, वास्तव में, जापान पर एक सैन्य तथा राजनैतिक अधिपत्य के अग्रगामी हैं। उसने विदेशियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए तथा उनका व्यापार एक कृत्रिम द्वीप (नागासाकी के पास) तक सीमित कर दिया। ईसाई धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया और लगभग 25 सालों तक ईसाईयों के खिलाफ प्रताड़ना तथा हत्या का सिलसिला जारी रहा। 1638 में, अंततः, बचे हुए 37,000 ईसाईयों को नागासाकी के समीप एक द्वीप पर घेर लिया गया जिनका बाद में नरसंहार कर दिया गया।
1854 में पुनः जापान ने पश्चिमी देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित किया। अपने बढ़ते औद्योगिक क्षमता के संचालन के लिए जापान को प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ी जिसके लिए उसने 1894-95 मे चीन तथा 1904-1905 में रूस पर चढ़ाई किया। जापान ने रूस-जापान युद्ध में रूस को हरा दिया। यह पहली बार हुआ जब किसी एशियाई राष्ट्र ने किसी यूरोपीय शक्ति पर विजय हासिल की थी। जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में धुरी राष्ट्रों का साथ दिया पर 1945 में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के साथ ही जापान ने आत्म समर्पण कर दिया। इसके बाद से जापान ने अपने आप को एक आर्थिक शक्ति के रूप में सुदृढ़ किया और अभी तकनीकी क्षेत्रों में उसका नाम अग्रणी राष्ट्रों में गिना जाता है।
1947 में नए संविधान को अपनाने के बाद, जापान ने शासक के साथ एकात्मक संवैधानिक राजशाही को बनाए रखा था। जापान यूनाइटेड नेशन, G-7,G-8 और G-20 का सदस्य भी है और एक महाशक्ति के रूप में जाना जाता है। इस देश की अर्थव्यवस्था जीडीपी दर के हिसाब से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और पी.पी.पी के हिसाब से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। साथ ही जापान दुनिया का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक और चौथा सबसे बड़ा आयातक देश भी है। जापान में पढाई को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है और सर्वोच्च शिक्षित देशो में आज जापान की तुलना की जाती है।
जापान का विकास – Japan in Hindi (japan kâ adhunikikaran)
जापान पिछले कुछ दशकों से विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी हो गया है। जापान के वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्रों, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, मशीनरी और जैव चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में से एक है। जापान मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान में एक विश्व नेता हैं, जापान भौतिकी में तेरह नोबेल पुरस्कार विजेताओं का उत्पादन किया, रसायन विज्ञान या चिकित्सा, 95 [] तीन फील्ड्स पदक 96] और एक गॉस पुरस्कार विजेता।
जापान के अधिक प्रमुख तकनीकी योगदान के कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में, मशीनरी, भूकंप इंजीनियरिंग, औद्योगिक रोबोटिक्स, प्रकाशिकी, रसायन, अर्धचालक और धातुओं पाए जाते हैं। जापानी अपने समय के प्रति बहुत दृढ़ रहते हैं। किसी भी काम में लेट होना उन्हें पसंद नहीं हैं। जापान एक विकसित देश है, जहाँ के लोगो का स्टैण्डर्ड ऑफ़ लिविंग बहुत अच्छा है और ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स के अनुसार भी यह सबसे मानक देशो में से एक है।
जापान की संस्कृति – Japan ki Sanskriti in Hindi
जापान की संस्कृति पूरी दुनिया में प्रचलित हैं। यहां के लोग बहुत मेहनती और खुशमिजाज होते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापान की हालात काफी कमजोर थी, लेकिन यहां के लोगो ने मेहनत कर, आज दुनिया के पावरफुल देशो में जापान को गिना जाता हैं। जापान की संस्कृति भी भारत की तरह बहुत प्राचीन हैं। जापान एक ऐसा देश है जहां पर रहने के लिए जगह बेहद कम है। यहां संयुक्त परिवार बेहद कम है। यहां पर एकल परिवार के घर ही देखने को मिलते है। घर में कमरों की संख्या बड़ी नहीं है।
जापान की संस्कृति उनके कामकाजी रवैये से पहचानी जाती है। जापान के लोग सामान्य तौर पर ओवरटाइम और छुट्टी में भी काम करते है। यहां के लोगो का मानना हैं कि कड़ी मेहनत करना सदाचार और जीवन में प्रशिक्षण के समान है। खाने-पिने की बात के तो जापानी लोग सामान्य तौर पर दिन में तीन बार भोजन करते है। लेकिन इनके खाने का समय बेहद कम होता है, क्योंकि ये ज्यादातर समय अपने काम को देते है। जापान में कई ऐसे मंदिर हैं जो हिंदू देवी-देवता विष्णु और लक्ष्मी से संबंधित हैं।
पर्यटन स्थल – Places Of Tourist Interest in Japan
शाही महल :- शाही महल जापान में है। जापान का शाही महल बेहद ख़ूबसूरत जगह है। इस महल में जापानी परंपराओं को देखा जा सकता है। शाही महल में जापान के राजा का आधिकारिक निवास है। महल में बहुत सारी सुरक्षा इमारतें और दरवाज़े हैं। यहाँ की सबसे प्रसिद्ध जगहों में से कुछ हैं- ईस्ट गार्डन, प्लाजा और निजुबाशी पुल। शाही महल को सम्राट के जन्मदिन के दिन जनता के लिए खोला जाता है।
टोक्यो टावर :- टोक्यो टावर इमारत का निर्माण सन् 1958 ई. में हुआ था। टोक्यो टावर 333 मीटर ऊँचा है। यह टावर एफिल टावर से भी 13 मीटर ऊँचा है। यहाँ पर दो वेधशालाएँ स्थित हैं जहाँ से टोक्यो का ख़ूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। साफ़ मौसम में तो यहाँ से माउंट फिजी दिखलाई पड़ता है। मुख्य वेधशाला 150 मीटर ऊँची है और विशेष वेधशाला 250 मीटर ऊँची है। इस टावर के अंदर टोक्यो टावर वैक्स संग्रहालय, मिस्टीरियस वॉकिंग जोन और ट्रिक आर्ट गैलरी भी है।
असाकुसा श्राइन :- असाकुसा श्राइन की स्थापना सन् 1649 ई. में हुई थी। दंतकथाओं के अनुसार सैकड़ों साल पहले हिरोकुमा बंधुओं के मछली पकड़ने के जाल में कैनन की प्रतिमा फँस गई। तब गाँव के मुखिया ने वहाँ प्रतिमा की स्थापना की। इसके बाद इस मंदिर का एक उपनाम संजा-समा पड़ा। यह टोक्यो का सबसे प्रमुख मंदिर है। मई के महीने में यहाँ संजा उत्सव भी मनाया जाता है।
अमेयोको :- यह बाज़ार उएनो स्टेशन के पास है इसलिए यहाँ आने वाले लोग इस बाज़ार में आना पसंद करते हैं। अमेयोको में आप जूतों से लेकर कपड़ों तक, हर तरह की उपभोक्ता वस्तु ख़रीद सकते हैं। बालों पर लगाने वाली क्रीम हो या छतरी यहाँ सब कुछ मिलता है। यदि आप जापान के कामकाजी लोगों को क़रीब से देखना चाहते हैं और अद्भुत चीज़ें कम कीमत पर ख़रीदना चाहते हैं तो यह जगह बिल्कुल उपयुक्त है।
रनबो ब्रिज :- रनबो ब्रिज की शुरुआत सन्1993 ई. में हुई थी। इस अनोखे नाम का कारण इस ब्रिज पर रात को जलने वाली रंगबिरंगी लाइटें हैं। यह पुल मिनटोकु और ओडैबा को जोड़ता है। रनबो ब्रिज की ख़ूबसूरती को देखने का एक अन्य तरीका मोनोरल है जो शिम्बाशी से चलती है। यहाँ पर आठ ट्रैफिक लेन और दो रलें हैं। पैदल चलने वालों के लिए भी रास्ता है। इसके अलावा हिनोक पीयर से असाकुसा के बीच क्रूज से यात्रा करके रनबो ब्रिज की ख़ूबसूरती को निहारा जा सकता है।
सूमो संग्रहालय :- यह संग्रहालय नेशनल सूमो स्टेडियम के साथ बना है। सूमो रसलिंग जापान का सबसे प्रसिद्ध खेल है। इस संग्रहालय में समारोह के दौरान पहने जाने वाले कपड़ों, सूमो वस्त्रों, रैफरी के पैडंलों को प्रदर्शित किया गया है और मशहूर रसलरों के बारे में बताया गया है।
नेशनल म्यूजियम ऑफ वेस्टर्न आर्ट :- यह संग्रहालय का निर्माण सन् 1959 ई. में हुआ था। यह संग्रहालय पर्यटकों के बीच बहुत ही मशहूर है क्योंकि यहाँ सुदूर पूर्व में पश्चिमी कला का आधुनिकतम संग्रह है। इस संग्रह के पीछे का इतिहास बहुत रोचक है। सैन फ़्रांसिस्को शांति सम्झौते में कहा गया कि कोजिरो मत्सुकाता संग्रह जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय फ़्रांस के पास चला गया था, अब फ़्रांस की संपत्ति होगा। बाद में फ़्रांस सरकार ने यह संग्रह जापान को वापस कर दिया।
दर्शनीय स्थल – Japan Temple
मीजी जिंगू श्राइन : – इसका निर्माण सन् 1920 ई. में यहाँ के शासक मीजी (1912) की याद में किया गया था। यह मंदिर शिंतो वास्तुकला का उत्तम नमूना है। 72 हैक्टेयर में फैले पेड़ों और मीजी जिंगू पार्क की जापानी वनस्पतियों से घिरा यह स्थान जापान की सबसे ख़ूबसूरत और पवित्र जगहों में से एक है।
तोशोगु मंदिर :- इस मंदिर का मुख्य आकर्षण पत्थर की बनी 50 विशाल लालटेन हैं। यहाँ की मुख्य इमारत जिसका निर्माण 1651 में हुआ था, सोने से बनी थी। इनमें से कई सामंती दासों द्वारा दान की गई थीं। इसे बनाने का श्रेय तीसर शोगुम इमीत्सु तोकुगावा को जाता है। यह मंदिर जापान की राष्ट्रीय संपदा का हिस्सा है।