Gyani Zail Singh / ज्ञानी जैल सिंह भारत के 7वें राष्ट्रपति (seventh President of India) थे। जिनका कार्यालय 1982 से 1987 तक रहा। 1972 से 1977 तक ज्ञानी जी पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे। ज्ञानी जैल सिंह देश के पहले सिख राष्ट्रपति थे।
ज्ञानी ज़ैल सिंह का परिचय – Gyani Zail Singh Biography in Hindi
पूरा नाम | ज्ञानी ज़ैल सिंह (Gyani Zail Singh) |
जन्म दिनांक | 5 मई, 1916 |
जन्म भूमि | फरीदकोट ज़िले, पंजाब |
मृत्यु | 25 दिसंबर, 1994, चंडीगढ़ |
पिता का नाम | किसान सिंह |
माता का नाम | इंदी कौर |
पत्नी | प्रधान कौर |
कर्म-क्षेत्र | राजनितिक |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | कांग्रेस |
पद | भारत के 7वें राष्ट्रपति |
श्री ज्ञानी ज़ैल सिंह भारत के सातवें निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में जाने जाते हैं। यह बेहद साधारण परिवार से संबंध रखते थे। इनका राष्ट्रपति बनना एक साधारण इंसान के लिए चक्रवर्ती सम्राट बनने जैसा ही अनुभव कहा जाना चाहिए। दुनिया में ऐसे कई राष्ट्रीयधक्ष हुए जिन्होंने पृथ्वी से लेकर क्षितिज तक को स्पर्श करने में सफलता प्राप्त की। ज्ञानी ज़ैल सिंह भी इन्हीं लोगों की कतार में नजर आते हैं। कुछ लोग स्वयंसीद्ध होते हैं और उन्हें भाग्य का सहारा भी प्राप्त होता है। ज्ञानी ज़ैल सिंह भी ऐसे ही व्यक्ति थे।
ज्ञानी ज़ैल सिंह गरीब, कमजोर और दबे-कुचले व्यक्तियों के मसीहा बनकर अवतरित हुए तथा अपने सेवाकर्म को सीढी बनाकर राष्ट्रपति जैसे ऊंचे पद पर पहुंचने में सफल रहे हैं। लेकिन परम पद पाने के बावजूद वह सीढी के उस पर प्राथमिक हिस्से नहीं भूले, जिसके निकट इनका जीवन गुजरात था। इनका कर्मस्थल फरीदकोट जिले का गांव सांधवान था। पंजाब के इस छोटे से गांव में इनका मिट्टी का मकान था। लेकिन इस मकान की मिट्टी की महक लिए ज़ैल सिंह नामक एक बालक भारत का राष्ट्रपति बनकर प्रथम नागरिक के महल तक पहुंच जाएगा यहा किसी ने भी नहीं सोचा था।
प्रारंभिक जीवन और पृष्टभूमि – Early Life of Gyani Zail Singh
ज्ञानी ज़ैल सिंह का जन्म 5 मई 1916 को हुआ था। इसी दिन कार्ल मार्क्स का भी जन्म हुआ था, जो समाजवाद के प्रवर्तक माने जाते हैं। ज्ञानी ज़ैल सिंह के परदादा सरदार बुध सिंह ने अपनी आजीविका हेतु कृषि को अवलंब बनाया था और आने वाली पुश्तो द्वारा भी यह कार्य किया जाता रहा। लेकिन उन दिनों कृषि का उत्पादन इतना नहीं होता था कि कृषक अन्य गतिविधियां संपन्न किए बिना परिवार का भरण पोषण कर सके। इसलिए कई कृषक परिवार कोई सहायक व्यापारिक कार्य भी करते थे।
ज्ञानी ज़ैल सिंह दादा सरदार राम सिंह एक शिल्पकार थे और इनका संबंध विश्वकर्मा वंशी परिवार से था। लेकिन इनके परिवार ने बाद में सिख धर्म अपना लिया। इस प्रकार के परिवारों को पंजाब में ‘रामगढ़िया’ का संबोधन प्राप्त हुआ। सरदार राम सिंह 5 पुत्र और एक पुत्री के पिता बने। इनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम किशन सिंह था। किशन सिंह को पुरखों की जमीन से 56 एकड़ भूमि प्राप्त हुई जो सागवान गांव में स्थित थी।
किशन सिंह को तीन शादियां करनी पड़ी थी। इनकी प्रथम पत्नी का नाम दया कौर दूसरी पत्नी का नाम मारिया कौर और तीसरी पत्नी का नाम इंदी कौर था। यह तीनों पंजाब सिंह की पुत्रिया थी। शादी के कुछ वर्षों बाद जब इन्हें प्रथम पत्नी दया कौर से कोई संतान नहीं हुई तो इनका विवाह दूसरी बहन मारिया कौर से हुआ लेकिन मारिया कौर की सिघ्र मृत्यु हो गई। फिर इनका विवाह इंदी कौर के साथ संपन्न हुआ। इंदी कौर से इन्हे 3 पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुई। ज्ञानी ज़ैल सिंह संततियों में से एक थे। यह सबसे छोटे पुत्र थे और तीसरी संतान के रूप में इनकी बहन थी।
ज्ञानी ज़ैल सिंह सबसे छोटे पुत्र होने के कारण परिवार में सभी के दुलारे और माता के विशेष लाड़ले थे। लेकिन श्री ज़ैल सिंह की माता की असामयिक मृत्यु उस समय हो गई जब इनकी उम्र मात्र 11 महीने थी। ऐसे मे इनका लालन-पालन सगी मौसी और सौतेली मा दया कौर ने किया।
श्रीमती दया कौर मासूम ज़ैल सिंह को इतना प्रेम आश्रय दिया कि 13 वर्ष की उम्र तक इन्हे यह नहीं मालूम हो सका की दया कौर सगी मां नहीं है। इनके पिता किशन सिंह सिख धर्म से इस हद तक प्रभावित थे कि उन्होंने घर के एक कमरे को गुरुद्वार बना लिया था। छत पर सिख धर्म का पवित्र निशान फहराता रहता था और घर में प्रतिदिन कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता था। श्री ज़ैल सिंह जब पाँच वर्ष के थे तभी गुरुग्रंथ साहिब पढ़ लिया करते थे।
ज़ैल सिंह सदैव जातिवाद का विरोध किया। वह मानते थे कि गुरुओं की शिक्षा सभी को समान रुप से पोषित करती है और सभी को एक समान देखे जाने की बात भी कहती है। ज़ैल सिंह मानते थे कि एक ही ईश्वर गुरुद्वार, मंदिर और मस्जिद में निवास करता है। बचपन में इनका यह नियम था कि घर के गुरुद्वारे वाले कमरे में जाकर 1 घंटे तक गुरु ग्रंथ साहिब के शिक्षा श्लोको को उच्चारित करते थे। बचपन के संस्कार इतने गहरे थे कि जब ज़ैल सिंह राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद राष्ट्रपति भवन में रहने के लिए जाने लगे तो गुरु ग्रंथ साहिब को परंपरागत रुप से अपने सिर पर धारण करके वहां से पुजा गृह तक ले गए।
ज्ञानी ज़ैल सिंह ने उर्दू माध्यम वाले स्कूल से 1930 में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की। फिर पिता की राय से गुरुमुखी पढ़ने लगे। इसी बीच में वे एक परमहंस साधु के संपर्क में आए। अढाई वर्ष तक उससे बहुत कुछ सीखने-पढ़ने को मिला। फिर गाना-बजाना सीखने की धुन सवार हुई तो एक हारमोनियम बजाने वाले के कपड़े धोकर, उसका खाना बनाकर हारमोनियम बजाना सीखने लगे।
पिता ने राय दी कि तुम्हें गाना आता है तो कीर्तन करो, गुरुवाणी का पाठ करो। इस पर जरनैल सिंह ने ‘ग्रंथी’ बनने का निश्चय किया और स्कूली शिक्षा छूटी रह गई। वे गुरुग्रंथ साहब के ‘व्यावसायिक वाचक’ बन गए। इसी से ‘ज्ञानी’ की उपाधि मिली। अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में ज़ैल सिंह को भी जेल जाना पड़ा था। वहां उन्होंने अपना नाम जैल सिंह लिखवा दिया। छूटने पर यही जैल सिंह नाम प्रसिद्ध हो गया।
राजनीतिक कैरियर – Gyani Zail Singh Life History
ज्ञानी जैल सिंह बचपन से ही भारत की स्वतंत्रता के लिए जागरुक थे। उन्होंने प्रजा मंडल नामक एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया था, जो भारतीय कॉग्रेस के साथ संबद्ध होकर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन किया करती थी। ब्रिटिशों ने उनको जेल भेज दिया था। इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर जैल सिंह (जेल सिंह) रख लिया था।
स्वतंत्रता के पश्चात ज्ञानी जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री बनाया गया। 1951 में उनको कृषि मंत्री बनाया गया। वह 1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे। 1972 से 1977 तक ज्ञानी जी पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 1980 में जब इंदिरा जी पुनः सत्ता में आईं तो उन्होंने ज्ञानी जी को देश का गृहमंत्री बनाया।
1982 में श्री नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने पर ज्ञानी जी देश के आठवें राष्ट्रपति चुने गए। 25 जुलाई, 1982 को उन्होंने पद की शपथ ली। उनके कार्यकाल में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ तथा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या प्रमुख घटनाएं हैं। इंदिरा जी की हत्या के बाद राजीव गांधी को इन्होने ही प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। यद्यपि अंतिम दिनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबंधों में खिंचाव के समाचार आने लगे थे, पर ज्ञानी जी अपना संतुलन बनाए रहे। 25 जुलाई, 1987 में उनका कार्यकाल पूरा हुआ था।
निधन – Gyani Zail Singh Died
25 दिसंबर, 1994 को उनका निधन हो गया। एक दृढ निश्चयी और साहसी व्यक्तित्व वाले इंसान के साथ-साथ एक समर्पित सिख के रूप में उन्हें सदैव याद किया जायेगा।