Gurudwara Bangla Sahib / गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली के सबसे महत्त्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है और सिक्खों का प्रमुख धार्मिक केंद्र भी है। गुरुद्वारा बंगला साहिब नई दिल्ली के बाबा खड़गसिंह मार्ग पर गोल मार्किट, नई दिल्ली के निकट स्थित है। यह गुरूद्वारा अपने ‘सरोवर’ नामक तालाब के लिये भी प्रसिद्ध है जिसके पानी को सिक्ख समुदाय के सदस्यों द्वारा ‘अमृत’ (पवित्र जल) कहा जाता है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब का इतिहास और जानकारी – History of Bangla Sahib Gurudwara Delhi in Hindi
कनॉटप्लेस के पास स्थित अपने सुनहरे गुम्बद के साथ गुरुद्वारा बंगला साहिब एक प्रभावशाली संरचना है और सिक्खों के 8वें गुरू गुरू हरकिशन से जुड़े होने के कारण प्रसिद्ध है। मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के शासनकाल के दौरान 1783 में सिख जनरल सरदार भगेल सिंह द्वारा एक छोटे से श्राइन का निर्माण किया और उसी वर्ष दिल्ली में नौ सिख धार्मिक स्थलों के निर्माण को अपनी देखरेख में बनवाया।
मूल रूप से ये जगह मिर्जा राजा जयसिंह, सत्रहवीं सदी में एक भारतीय शासक का बंगला (हवेली) थी और तब इसे जयसिंहपुर महल के नाम से जाना जाता था। मिर्जा राजा जयसिंह मुगल बादशाह औरंगजेब के एक महत्वपूर्ण सैन्य नेता थे।
सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकिशन साहिब जी की स्मृति में प्रकाश पर्व मनाया जाता है। गुरु हरकिशन सबसे कम उम्र के गुरुओं में से एक थे जिन्होंने 8 साल की बहुत ही कम उम्र में गुरुगद्दी संभाली थी। इस छोटी उम्र में स्वाभाविक रूप से उन्होंने अन्य धर्मों के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था।
गुरु हरकिशन को बहुत छोटी उम्र में गद्दी प्राप्त हुई थी। इसका मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध किया। इस मामले में औरंगजेब ने गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया ताकि वह जान सके कि सिखों के नए गुरु में ऐसा क्या खास है जो इतनी कम उम्र में उन्हें यह औदा प्राप्त हुआ।
1664 में गुरु हरकिशन साहिब जी जब दिल्ली पहुंचे और दिल्ली प्रवास के दौरान इसी बंगले (जयसिंहपुर महल) में रहते थे। उनके प्रवास के दौरान क्षेत्र में चेचक और कॉलरा जैसी भयावह बीमारियाँ फैली थीं और मरीजों की सहायता के लिये वे महल परिसर में स्थित कुएँ से पानी दिया करते थे।
इतिहास के मुताबिक, गुरु जी ने अपने चरण सरोवर के उस जल में रखकर अरदास की थी और फिर उस जल से मरीजों को सहायता मिली। कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने के बाद उन्हें स्वयं चेचक निकल आई और अंत में 30 मार्च 1664 को उनका निधन हो गया।
बाद में राजा जय सिंह ने इसी कुएँ पर एक तालाब का निर्माण कराया और यह वही जल है जिसे वर्तमान में सिक्ख समुदाय के सदस्य पवित्र मानते हैं। समस्त विश्व के लोग इस तालाब से जल लेकर जाते हैं और अपने घरों में सुरक्षित रखते हैं। अभी भी ऐसा माना जाता है कि इस जल में औषधीय गुण हैं।
इस गुरूद्वारे परिसर में सरोवर, एक रसोईंघर, एक कला गैलरी, बाबा बघेल सिंह संग्रहालय, एक अस्पताल और एक पुस्तकालय स्थित हैं।
दुसरे सिक्ख गुरुद्वारों की तरह यहाँ भी लंगर है, और सभी धर्म के लोग लंगर भवन में खाना खाते है। लंगर (खाने को) गुरसिख द्वारा बनाया जाता है, जो वहाँ काम करते है और साथ ही उनके साथ कुछ स्वयंसेवक भी होते है, जो उनकी सहायता करते है।
गुरुद्वारा में दर्शनार्थियों को अपने सिर के बालो को ढँक देने के लिए और जूते ना पहनकर आने के लिए कहा जाता है। विदेशियों और दर्शनार्थीयो की सहायता के लिए गाइड भी होते है, जो बिना कोई पैसे लिए लोगो की सहायता करते है। गुरुद्वारा के बाहर सिर का स्कार्फ हमेशा रखा होता है, लोग उसका उपयोग अपने सिर को ढकने के लिए भी कर सकते है। स्वयंसेवक दिन-रात दर्शनार्थीयो को सेवा करते रहते है और गुरूद्वारे की स्वच्छ रखते है। बाहर से आने वालों के लिए यहां हाल ही में एक यात्री निवास भी बनवाया गया है।
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