Dwarkadhish Temple / द्वारिकाधीश मंदिर गुजरात के द्वारका में स्थित एक प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर हैं। इसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि जंहा पर प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है, वंहा पर जब भगवान कृष्ण द्वारा इस नगरी को बसाया गया था उस समय यंहा पर उनका निजी महल ‘हरि गृह’ हुआ करता था। इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान् तीर्थ है। वैसे भी द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है।
द्वारिकाधीश मंदिर का इतिहास – Dwarkadhish Temple History in Hindi
भगवान कृष्ण के जीवन से संबंध होने के कारण इस स्थान का विशेष महत्त्व है। महाभारत के वर्णनानुसार कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस तथा दूसरे दैत्यों के वध के लिए हुआ था। इस कार्य को पूरा करने के पश्चात वे द्वारका (कठियावाड़) चले गये। आज भी गुजरात में स्मार्त ढंग की कृष्णभक्ति प्रचलित है।
मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहते हैं, दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ़ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे। तब मेवाड़ यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था।
सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात् उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। आज भी द्वारका की महिमा है। यह चार धामों में एक है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों।
मंदिर की बनावट – Dwarkadhish Temple in Hindi
यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है। इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर ऊँचा है। इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है। शिखर पर क़रीब 84 फुट लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ इन्हें ‘रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है।
भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है।
द्वारकाशीष मंदिर का निचला हिस्सा 16 वीं शताब्दी से है और ऊपरी चढ़ाव का स्थान 19वीं शताब्दी से है। इसके बाहरी प्रदर्शन पर सुंदर नक्काशी, साहसी कामुकता, एक बहुस्तरीय पौराणिक तीव्रता और डिजाइन की असाधारण निरंतरता हे। इसके विपरीत, मंदिर की आंतरिकता इसकी सादगी में हड़ताली है, केवल एकमात्र अपवाद है कि द्वारकाशिष की मूर्ति को मंदिर के चारों ओर विस्तृत सजावट है।
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