Battisa Temple / बत्तीसा मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य में दंतेवाड़ा ज़िले के बरसुर नगर में स्थित है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी के नागवंशीय नरेश सोमेश्वर देव के काल का माना जाता है। मंदिर चतुर्भज की आकृति में 32 खम्भों पर खड़ा है। इन 32 खंभों के कारण ही इस मंदिर का यह अद्भुत नाम पड़ा है।
बत्तीसा मंदिर का इतिहास और जानकारी – Battisa Temple Information & History in Hindi
दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 31 किमी दूर बारसूर का ऐतिहासिक बत्तीसा मंदिर 32 खंबों पर टिका है। यहां प्राप्त शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण ईस्वी सन् 1209 में नागवंशीय नरेश सोमेश्वरदेव ने अपनी रानी के लिए करवाया था।
शिलालेख के अनुसार दिन रविवार फाल्गुन शुक्ल द्वादश शक संवत 1130 जिसके अनुसार 1209 ई इस मंदिर का निर्माण काल है। मंदिर के खर्च एवं रखरखाव के लिये केरामरूका ग्राम दान में दिया गया था। इस कार्य में मंत्री मांडलिक सोमराज, सचिव दामोदर नायक, मेंटमा नायक, चंचना पेगाड़ा, द्वारपाल सोमीनायक, गुडापुरऐरपा रेडडी, विलुचुदला प्रभु, प्रकोटा कोमा नायक गवाह के रूप में उपस्थित थे। यह षिलालेख वर्तमान में नागपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
यहां के दो शिवालय में राजा और रानी शिव की अलग-अलग आराधना करते थे। दो गर्भगृह वाले इस मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर में बत्तीस स्तम्भ हैं, जो आठ पंक्तियों में एकदम सावधानी से उकेरे गए बड़े-बड़े केवल पत्थरों के हैं। गर्भगृह के बाहर एकदम सजा-धजा नंदी बैल है, तो अंदर एक अत्यंत सुन्दर, अनदेखा-सा शिवलिंग है।
शिवलिंग पत्थर का बना हुआ है और वह एक बड़े से मैकेनिकल सिस्टम पर टिका हुआ है। जैसे पानी के गिरने से पनचक्की घूमती है, वैसे ही ये शिवलिंग भी घूमता है। यानि की कई सौ सालों से इसे घुमाया जा रहा है और ये घूम रहा है। यह शिवलिंग बिना आवाज़ के, बिना किसी घर्षण के, पूरा घूमता है।
किवदंती है कि राजा बलि से तीन पग जमीन मांगने के बाद भगवान विष्णु के वामन अवतार ने उसे पाताल में पहुंचा दिया था। इसके बाद बलि पुत्र बाणासूर ने दंडकारण्य वनांचल में बाणासूरा नाम नई राजधानी बसाई थी। श्रीकृष्ण के पुत्र अनिरुद्घ के बाणासूरा प्रवेश के बाद से यहां का पतन शुरू हुआ। इस मंदिर की छत्तीसगढ़ में एक पावन तीर्थस्थान के रूप में अत्यधिक मान्यता है। मुख्यतः यह मंदिर सर्वव्यापी शिवजी की उपस्थिति और अपनी प्राचीन शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।
इस मंदिर का धार्मिक ही नहीं वरन ऐतिहासिक महत्त्व भी है, इसी कारण यह मंदिर यहाँ के प्राचीन स्मारकों में से एक है और छत्तीसगढ़ के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 2003 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था।
यहां स्थित नंदी के कान में प्रार्थना करने से मनौती पूर्ण होती है। राजधानी से दूरी 395 किलोमीटर, विशेषता यहां विश्व की तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा है। बारसूर का बत्तीसा मंदिर(Battisa Mandir) बस्तर के सभी मंदिरों में अपना विशिश्ट स्थान रखता है। बारसूर नागकालीन प्राचीन मंदिरों के लिये पुरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। यहां के मंदिरों की स्थापत्य कला बस्तर के अन्य मंदिरों से श्रेश्ठ है। बारसूर का यह युगल षिवालय बस्तर के सभी षिवालयों में अपनी अलग पहचान रखता है।
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