वाघ की गुफ़ाएं का इतिहास और जानकारी | Bagh ki Gufa in Hindi

Bagh Caves in Hindi / वाघ की गुफ़ाएं, मध्य प्रदेश में इंदौर से 150 किलोमीटर दूर स्थित एक एतेहासिक और प्राकृतिक धरोहर है। वाघ की गुफ़ाएं प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजन्ता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है। यह धार जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध वाघ की गुफाएँ हैं जो अपने भित्ति चित्रों की वजह से अजंता के समकक्ष मानी जाती हैं। इन्हें भारत सरकार ने राष्ट्रीय महत्व का सुरक्षित पुरा स्मारक घोषित कर रखा है।

वाघ की गुफ़ाएं का इतिहास और जानकारी | Bagh ki Gufa in Hindi

वाघ की गुफ़ाएं की जानकारी – Bagh Caves Information 

बाघ गुफाएं, नौ स्‍मारकों का एक समूह है जिन्‍हे चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यह गुफा, भित्ति चित्रों के लिए खासी प्रसिद्ध है, धार की गुफा पूरे भारत में चट्टान में की गई खुदाई का सबसे बड़ा उदाहरण है जिसे वास्‍तुकला का अद्भूत नमूना माना जाता है।

वाघ नदी और वाघ कस्बे के नाम की वजह से इन गुफाओं को ‘वाघ की गुफाओं’ के नाम से जाना जाता है। गुफाओं के बनाने के लिए खूबसूरत जगह का चुनना यह बताता है कि वाघ गुफा मंडप के निर्माता प्राकृतिक सौन्दर्य के उपासक थे। वर्ष 1953 में भारत सरकार द्वारा वाघ गुफाओं को ‘राष्ट्रीय स्मारक’ घोषित किया गया। इसके संरक्षण का जिम्मा पुरातत्व विभाग को सौंपा गया।

अंजता गुफाओं की तरह, बाघ गुफाओं में भी एक धारा के तट में कारीगरों द्वारा खुदाई की गई है। बाघ गुफा का अधिकाश: भाग भागीनि से प्रेरित लगता है और यहां गुप्‍त काल के दौरान बुद्ध जीवन शैली का अर्क भी नजर आता है। यह गुफाएं विहारा या मठों की तरह है जिनमें छोटे चैम्‍बर्स के अलावा एक प्रार्थना हॉल भी है।

वाघ की गुफाएँ बहुत सुंदर स्थान पर स्थित हैं। सामने वाघ नदी बहती है और चारों ओर हरियाली तथा जंगल हैं। धार जिले में विंध्य श्रेणी के दक्षिणी ढाल पर, नर्मदा नदी की एक सहायक नदी बागवती के किनारे उसकी सतह से 150 फुट की ऊँचाई पर यह विश्व प्रसिद्ध गुफाएँ है।

बाघ की गुफ़ाएं का इतिहास – Bagh ki Gufa History in Hindi

इसमें कुल 9 गुफ़ाएँ हैं, जिनमें से 1,7,8 और 9वीं गुफा नष्टप्राय है तथा गुफा संख्या 2 ‘पाण्डव गुफ़ा’ के नाम से प्रचलित है जबकि तीसरी गुफा ‘हाथीखाना’ और चौथी रंगमहल के नाम से जानी जाती है। इन गुफा का निर्माण सम्भवतः 5वी-6वीं शताब्दी ई. में हुआ होगा।

लगभग 1600 वर्ष पूर्व बाघ की गुफ़ाएं भगवान बुद्ध की दिव्यवार्ता प्रतिपादित करने हेतु निर्मित एवं चित्रित की गयी थीं। धार्मिक सौरभ, सौंदर्यानुभूति का स्पन्दन, सरिता की सुगम स्थिति और उसके लयपूर्ण प्रवाह से प्रभावित भिक्षुओं का जीवन अत्यन्त सहजता से एक आदर्श ढांचे में ढलता रहा तथा निष्ठावान उपासकों को अभूतपूर्व परिपक्वता प्राप्त होती रही।

सातवीं, आठवीं और नौवीं गुफाओं की हालत ठीक नहीं है और वे अवशेष मात्र ही नजर आती हैं। इन गुफाओं की एक विशेषता यह भी है कि इनके अंदर जाकर इतनी ठंडक का अहसास होता है जैसे आप किसी एयरकंडीशन कक्ष में आ गए हों। गुफाओं के अंदर कई जगह से पहाड़ों से प्राकृतिक तरीके से पानी भी रिसकर आता रहता है। ये गुफाएँ कई शताब्दी पुरानी हैं।

वाघ की गुफाओं के भित्ति चित्र कई शताब्दियों तक प्रकृति ने सहेजकर रखे थे। बाद में जंगलों की कटाई और गुफाओं में बाबाओं-महात्माओं द्वारा आग जलाने और धुँआ करने के बाद इन भित्ति चित्रों पर संकट मंडराने लगा। गुफाओं के अंदर चमगादड़ों ने भी अपने डेरे बना लिए थे। नमी और आर्द्रता की वजह से भी भित्ति चित्र प्रभावित हो रहे थे। तब इन्हें गुफा से हटाने का निर्णय लिया गया।

1982 से इन चित्रों को दीवारों व छतों से निकालने का कार्य शुरू हुआ। नमी से प्रभावित इन चित्रों को तेज धार वाले औजारों से काटकर दीवारों से अलग किया गया। निकाले गए चित्रों को मजबूती देने के उद्देश्य से फाइबर ग्लास एवं अन्य पदार्थों से माउंटिंग की गई। चित्रों को वापस मूल स्वरूप में लाने के लिए उनकी रासायनिक पदार्थों से फैंसिंग की गई।

बाद में इन चित्रों को गुफाओं के सामने निर्मित संग्रहालय में रखा गया। इन चित्रों को अब संग्रहालय में ही देखा जा सकता है। गुफाओं के भीतर अब सिर्फ मूर्तियाँ ही बची हैं जिनमें से अधिकांश बुद्ध की हैं या फिर बुद्ध के जीवनकाल से जुड़ी घटनाओं को बयान करती हैं।

बाघ की कला में अजन्ता के समान केवल धार्मिक विषय ही नहीं हैं, यहाँ पर मानवोचित भावों के चित्रण में वेगपूर्ण प्रवाह भी है। यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य ने चित्रकला में जो योगदान दिया है, यहाँ पर चित्रित विराट दृश्य उसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। नदी, पहाड़, जंगल आदि के असीमित भू-दृश्य बड़े मनोहर हैं। चाहें लता वल्लरी हो अथवा घोड़े व हाथी, राजा हो या संन्यासी, नृत्य-संगीत हो या युद्ध क्षेत्र, करुण रस हो या श्रृंगार सभी में कलाकार की सहज कुशलता का परिचय मिलता है।


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