Azim Premji / अज़ीम हाशिम प्रेमजी एक भारतीय उद्योगपति, निवेशक और भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो (Wipro) के चेयरमैन हैं। प्रेमजी वो सख्श हैं जिन्होंने घी व तेल बनाने वाली कम्पनी को भारत की सबसे बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों में से एक के रूप में तब्दील कर दिया। वे कंपनी का कारोबार 2.5 मिलियन डॉलर से बदकार 7 बिलियन डॉलर कर दिया। अमेरिकी बिजनेस पत्रिका फोर्ब्स के मुताबिक वर्ष 1999 से 2005 तक अजीम प्रेमजी भारत के सबसे धनी व्यक्ति रह चुके हैं। वे भारत के बिल गेट्स के भी नाम से मशहूर हैं।
अज़ीम प्रेमजी का संक्षिप्त परिचय – Information About Azim Premji in Hindi
नाम | अज़ीम हाशिम प्रेमजी (Azim Hashim Premji) |
जन्म दिनांक | 24 जुलाई 1945, मुंबई |
पिता का नाम | मुहम्मद हाशिम प्रेमजी |
शिक्षा | इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग |
पत्नी | यास्मिन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
कार्य क्षेत्र | भारतीय उद्योगपति, विप्रो के अध्यक्ष |
महज 21 साल की उम्र में उन्होंने पारिवारिक कारोबार अपने हाथों में ले ली। अजीम प्रेमजी ने अपने नेतृत्व में विप्रो को नई ऊंचाइयां दी। आज विप्रो दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर आईटी कंपनियों में से एक मानी जाती है। एशियावीक ने उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली 20 लोगो में से एक बताया। वह दो बार टाइम्स पत्रिका की दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगो की सूचि में भी शामिल हो चुके है। वे एक लोकोपकारी इंसान हैं और अपने धन का आधे से ज्यादा हिस्सा दान में देने का निश्चय किया है।
प्रारंभिक जीवन – Azim Premji Biography
अजीम प्रेमजी का जन्म मुंबई के एक गुजराती मुस्लिम परिवार में 24 जुलाई 1945 को हुआ था। इनके पूर्वज मुख्यतः कछ (गुजरात) के निवासी थे। उनके पिता एक प्रसिद्ध व्यवसायी थे और ‘राइस किंग ऑफ़ बर्मा’ के नाम से जाने जाते थे। विभाजन के बाद मोहम्मद अली जिन्नाह ने उनके पिता को पाकिस्तान आने का न्योता दिया था पर उन्होंने उसे ठुकराकर भारत में ही रहने का फैसला किया।
सन 1945 में अजीम प्रेमजी के पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी ने महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में ‘वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ की स्थापना की। यह कंपनी ‘सनफ्लावर वनस्पति’ और कपड़े धोने के साबुन ’787’ का निर्माण करती थी।
उनके पिता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय भेजा जहा पर वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग कर रहे थे। दुर्भाग्यवश 1966 में, अपने पिता के मृत्यु की खबर मिलते ही, 21 साल के अज़ीम स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से घर वापिस आ गये। भारत वापस आकर उन्होंने कंपनी का कारोबार अपने हाथो में लिया।
प्रेमजी ने जब कारोबार संभाला उस समय उनकी कंपनी वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट कंपनी हाइड्रोजनेटेड वेजिटेबल आयल बनाती थी। उन्होंने उस समय प्रचलित व्यापारिक नियमों को अनदेखा करते हुए, औद्योगिक उत्पादन पर नियंत्रण रखने वाले नौकरशाहों की खुशामद करने के बजाए उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं और ज़रूरतों पर ध्यान दिया। सामान्य उत्पादों को भी उन्होंने आकर्षक पैकेजिंग के ज़रिए बेहतर बनाया और विप्रो के ब्रांड नाम के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया। अपने उत्पाद का वितरण बिचौलियों से कराने के बजाए प्रेमजी ने सीधे वितरकों को वितरण करके अपने लाभांश को बढ़ाया। देश के कई पारिवारिक व्यापार प्रतिष्ठानों के विपरीत उन्होंने सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन तथा इंजीनियरिंग स्कूलों के स्नातकों को नौकरी पर रखा। बाद में उन्होंने नहाने के साबुन, बिजली के उपकरण, शिशु उत्पाद तथा वित्त के क्षेत्रों में भी क़दम रखा।
भारत सरकार द्वारा अमेरिकी कम्पनी ‘इन्टरनेशनल बिज़नेस मशीन्स कॉर्पोरेशन’ (आई.बी.एम.) को भारत में अपनी गतिविधियाँ जारी रखने की अनुमति न दिए जाने पर दूरदर्शी प्रेमजी ने 1979 ई. में कम्प्यूटर के क्षेत्र में पहल की।
सन 1980 के दशक में युवा व्यवसायी अजीम प्रेमजी ने उभरते हुए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के महत्त्व और अवसर को पहचाना और कंपनी का नाम बदलकर विप्रो कर दिया। उन्होंने अमेरिका के सेंटिनल कंप्यूटर कारपोरेशन के साथ मिलकर मिनी-कंप्यूटर बनाना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने साबुन के स्थान पर आई.टी. क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित किया और इस क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित कंपनी बनकर उभरे।
जल्द ही विप्रो ने स्वयं को सबसे बड़ी कम्प्यूटर निर्माता कम्पनियों में स्थापित कर लिया। बाद में प्रेमजी सॉफ़्टवेयर विकास की ओर मुड़े और इस उद्यम ने वित्त वर्ष 1998-99 ई. में विप्रो की 41.99 करोड़ डॉलर की वार्षिक बिक्री में 34 प्रतिशत का योगदान दिया।
निजी जीवन –
अजीम प्रेमजी के परिवार में पत्नी यास्मिन और दो बच्चे रिषाद और तारिक हैं। रिषाद विप्रो में ही कार्यरत हैं। अजीम प्रेम जी शिया मुस्लिम हैं। प्रेम जी सामाजिक कार्यो में भी अहम् योगदान हैं। सन 2001 में उन्होंने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की। यह एक गैर लाभकारी संगठन है जिसका लक्ष्य है गुणवत्तायुक्त सार्वभौमिक शिक्षा जो एक न्यायसंगत, निष्पक्ष, मानवीय और संवहनीय समाज की स्थापना में मददगार हो। यह फाउंडेशन भारत के लगभग 13 लाख सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए काम करता है।
सन 2010 में, अजीम प्रेमजी ने देश में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए लगभग 2 अरब डॉलर दान करने का वचन दिया। भारत में यह अपनी तरह का सबसे बड़ा दान है। कर्नाटक विधान सभा के अधिनियम के तहत अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय भी स्थापित किया गया।
प्रेमजी का मानना है कि गुणवत्ता, लागत और डिलीवरी में अंतरराष्ट्रीय मानकों की उत्कृष्टता के बारे में सोचना चाहिए और जब तक हम उन मानकों से ऊपर ना चले जाएं, विश्राम न करें।
वर्तमान में प्रेमजी तीसरे सबसे धनी भारतीय हैं जबकि दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में वो 41वें नंबर पर हैं। लेकिन प्रेमजी लग्जरी होटलों की जगह अगर कंपनी गेस्ट हाउस उपलब्ध हो तो उसी में ठहरना पसंद करते हैं। विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी से जुड़ी एक खास बात है कि वो हवाई जहाज की इकोनॉमी क्लास में सफर करना पसंद करते हैं।
वॉरेन बफेट और बिल गेट्स द्वारा प्रारंभ किया गया ‘द गिविंग प्लेज’ एक ऐसा अभियान है जो दुनिया के सबसे धनि व्यक्तियों को अपनी अकूत संपत्ति का ज्यादातर भाग समाज के हित और परोपकार के लिए दान करने के लिए प्रोत्साहित करता है। अजीम प्रेमजी इसमें शामिल होने वाले पहले भारतीय हैं। रिचर्ड ब्रैनसन और डेविड सैन्सबरी के बाद वे तीसरे गैर अमेरिकी व्यक्ति हैं। सन 2013 में उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि उन्होंने अपनी कुल संपत्ति का लगभग 25 प्रतिशत दान में दे दिया है और 25 प्रतिशत अगले पांच सालों में करेंगे।
सम्मान और पुरूस्कार –
⇒ अज़ीम प्रेमजी को भारत सरकार द्वारा उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में योगदान के लिए सन् 2005 में पद्म भूषण और सन् 2011 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
⇒ प्रेमजी को उनकी दूरदृष्टि, उत्तम नेतृत्व, असाधारण उपलब्धियों तथा दृढ़ निश्चय के लिए ‘गोल्डन पीकॉक बिज़नेस लीडरशिप अवॉर्ड’ दिया गया।
⇒ विप्रो इनफ़ोटेक को कम्प्यूटर निर्माण में बेहतरीन गुणवत्ता के लिए 1999 ई. का ‘गोल्डन पीकॉक नेशनल क्वालिटी अवॉर्ड’ दिया गया।
⇒ सन 2000 में मणिपाल अकादमी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
⇒ 2009 में उन्हें कनेक्टिकट स्थित मिडलटाउन के वेस्लेयान विश्वविद्यलाय द्वारा उनके उत्कृष्ट लोकोपकारी कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
⇒ 2006 में ‘राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान, मुंबई, द्वारा उन्हें लक्ष्य बिज़नेस विजनरी से सम्मानित किया गया।
⇒ सन 2013 में उन्हें ‘इकनोमिक टाइम्स अचीवमेंट अवार्ड’ दिया गया।
⇒ सन 2015 में मैसोर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
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