Alfred Park / अल्फ़्रेड पार्क, जिसे अब भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम पर ‘चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क’ के नाम से जाना जाता है, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा पार्क है। यह पार्क 133 एकड़ में फैला हुआ है। अल्फ़्रेड पार्क ‘भारतीय इतिहास’ की कई युगांतरकारी घटनाओं का गवाह रहा है। इसी पार्क में महान् क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। अमर शहीद के सम्मान मे पार्क में उनकी मूर्ति स्थापित है। पार्क में उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी और बड़ी जीवन्त गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी भी है, जहाँ पर ब्रिटिश युग के महत्त्वपूर्ण संसदीय कागज़ात रखे हुए हैं।
चन्द्रशेखर आजाद पार्क (अल्फ़्रेड पार्क) – Chandra Shekhar Azad Park Allahabad in Hindi
अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद का सबसे बड़ा पार्क है। इस पार्क को अंग्रेजी शासनकाल में राजकुमार अल्फ्रेड की भारत यात्रा के मद्देनजर बनया गया था। पार्क के अंदर राजा जार्ज पंचम और महारानी विक्टोरिया की विशाल प्रतिमा भी लगाई गई है। पार्क में महारानी विक्टोरिया को समर्पित सफेद मार्बल की छतरी बनी हुई है।
यह छतरी ब्रिटिश काल के विशिष्ट वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना है। खूबसूरत अल्फ्रेड पार्क शहर की भीड़-भाड़ से काफी दूर है। औपनिवेशिक दौर का यह पार्क बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
खासकर उन्हें, जो शहर की भागमभाग वाली जिंदगी से इतर शांति और सुकून के कुछ पल बिताना चाहते हैं। बाद में स्वतंत्रता सैनानी चंन्द्रशेखर आजाद के नाम पर इस पार्क का नाम बदल कर चंन्द्रशेखर आजाद पार्क कर दिया गया।
चन्द्रशेखर आज़ाद की शहादत – Alfred Park Information in Hindi
चन्द्रशेखर आज़ाद ने सॉण्डर्स हत्या कांड के लिए मृत्यु दण्ड पाये गए तीन प्रमुख क्रान्तिकारियों (भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव) की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू जी ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा।
नेहरू द्वारा उनकी बात न मानने पर आजाद काफी दुखी हुए। वे नेहरूर के घर से निकलकर अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गये। अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी हुई, हालांकि इस गोलीबारी में आजाद ने सुखदेव राज को तो वहां से भगा दिया लेकिन अकेले ही पुलिस से सामना किया। आखिर में जब उनके पास सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने खुद को अंग्रेजों के सुपुर्द करने के बजाए स्वंय को गोली मार ली और वीरगति को प्राप्त हुए।
पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। हालांकि वह वृक्ष आज भी इलाहाबाद में स्थित है और अब उस पार्क को अलफ्रेड नहीं बल्िक चंद्रशेखर आजाद पार्क बोला जाता है।
अल्फ़्रेड पार्क में बड़ी जीवन्त गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी भी है, जहाँ पर ब्रिटिश युग के महत्त्वपूर्ण संसदीय कागज़ात रखे हुए हैं। पार्क के अंदर ही 1931 में इलाहाबाद महापालिका द्वारा स्थापित संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में अपनी काफ़ी वस्तुयें भेंट की थीं।