Ajanta Caves / अजंता की गुफाएं, महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। अजंता और एलोरा की गुफाओं में ज्यादा दूरी नहीं है व दोनों ही गुफाएं महत्वपूर्ण ऐतिहासिक केन्द्र है। अजंता की गुफाएं लगभग 200 साल ईसा पूर्व की बनी हुई है। चट्टानों को काटकर बनाए गए इन गुफाओं में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के चित्र, मूर्ति व अन्य कलाकृति लगी हुई है। अजंता की गुफाओं को सन 1983 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया है।
अजंता गुफा की जानकारी – Ajanta Caves Information in Hindi
अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व विख्यात अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं। लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और विहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।
अजंता गुफावो का इतिहास – Ajanta Caves History In Hindi
प्रथम शताब्दी में हुए बौद्ध विचारों में अंतर से, बुद्ध को देवता का दर्जा दिया जाने लगा और उनकी पूजा होने लगी और परिणामतः बुद्ध को पूजा-अर्चना का केन्द्र बनाया गया, जिससे महायन की उत्पत्ति हुई। पूर्व में, शिक्षाविदों ने गुफाओं को तीन समूहों में बांटा था, किन्तु साक्ष्यों को देखते हुए और शोधों के चलते उसे नकार दिया गया। उस सिद्धांत के अनुसार 200 ई.पू से 200 ई. तक एक समूह, द्वितीय समूह छठी शताब्दी का और तृतीय समूह सातवीं शताब्दी का माना जाता था।
बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्यात्म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्दी ए. डी. में जारी रखते हुएअजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक झुंड बौद्ध वास्तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्प चित्रकला के उत्कृष्तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता था।
गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं और विभिन्न बौद्ध देवत्व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्त थी। ये शिल्पकलाओं और तस्वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्त है। ये सुंदर छवियां और तस्वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।
गुफाये एक घने जंगल से घिरी, ये घुफाए अजंता गांव से 3½ कि॰मी॰ दूर बनीं हैं। इसका निकटतम शहर है जलगाँव, जो 60 कि॰मी॰ दूर है, और भुसावल भी है जो 70 कि॰मी॰ दूर है। इस घाटी की तलहटी में पहाड़ी धारा वाघूर बहती है। यहां कुल 29 गुफाये हैं, जो कि नदी द्वारा निर्मित एक प्रपात के दक्षिण में स्थित है. इनकी नदी से ऊंचाई 35 से 110 फीट तक की है।
सह्याद्रि की पहाडि़यों पर स्थित इन 29 गुफाओं में लगभग 4 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आए थे, तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाओं की एक शृंखला नज़र आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई।
अजंता की गुफाओं में दीवारों पर ख़ूबसूरत अप्सराओं व राजकुमारियों के विभिन्न मुद्राओं वाले सुंदर चित्र भी उकेरे गए है, जो यहाँ की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला के बेहद ही सुंदर नमूने है। अजंता की गुफाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे भाग में महायान संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्य और 4 विहार है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य और 11 विहार है। ये 19वीं शताब्दी की गुफाएँ है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और छैनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियाँ अपने आप में अप्रतिम सुंदरता को समेटे है।
अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है। इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं।
अजन्ता में ‘फ़्रेस्को’ तथा ‘टेम्पेरा’ दोनों ही विधियों से चित्र बनाये गए हैं। चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भली भांति रगड़कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था। अजन्ता की गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण ‘मरणासन्न राजकुमारी‘ का चित्र प्रशंसनीय है। गुफा संख्या 17 के चित्र को ‘चित्रशाला‘ कहा गया है। इसका निर्माण हरिषेण नामक एक सामन्त ने कराया था। इस चित्रशाला में बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबधित चित्र उकेरे गए हैं।
अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है। चावल के मांड, गोंद और अन्य कुछ पत्तियों तथा वस्तुओं का सम्मिश्रमण कर आविष्कृत किए गए रंगों से ये चित्र बनाए गए। लगभग हज़ार साल तक भूमि में दबे रहे और 1819 में पुन: उत्खनन कर इन्हें प्रकाश में लाया गया। हज़ार वर्ष बीतने पर भी इनका रंग हल्का नहीं हुआ, ख़राब नहीं हुआ, चमक यथावत बनी रही। कहीं कुछ सुधारने या आधुनिक रंग लगाने का प्रयत्न हुआ तो वह असफल ही हुआ। रंगों और रेखाओं की यह तकनीक आज भी गौरवशाली अतीत का याद दिलाती है।
पर्यटन स्थल – Ajanta Caves Tourist Place
यदि आप भी दुनिया घुमने के शौकीन हैं तथा कलाप्रेमी हैं तो अंजता-एलोरा आपके लिए एक अच्छा पर्यटनस्थल है। अंजता में मौसम पर्यटकों के घूमने और मस्ती करने में बाधा नहीं बनता है। साल के किसी भी मौसम में यहां आ सकते है। लेकिन अक्टूबर से फरवरी तक अच्छी जलवायु और ठंडा मौसम होने की वजह से यहां पर्यटकों की उपस्थिति पूरे साल की अपेक्षा काफी ज्यादा होती हैं।
अगर आप हवाई मार्ग जाना चाहते हैं तो इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद का है। यहां से अजंता की गुफाओं की दूरी 120 किलोमीटर है। अगर आप रेल से अजंता की गुफाओं के लिए जा रहे हैं तो निकटतम रेलवे स्टेशन जलगाँव शहर (60 किमी) उतरना होगा। इसके अलावा आपके पास दूसरा विकल्प औरंगाबाद रेलवे स्टेशन (120 किमी) है। अजंता की गुफाओं तक जाने के लिए औरंगाबाद और जलगाँव दोनों शहरों से अच्छी सड़क कनेक्टिविटी है।
अजंता की गुफाओ के बारे मे कुछ रोचक बाते – Interesting Facts About Ajanta Caves In Hindi
1). ब्रिटिश संशोधक मि. ग्रिफिथ कहते हैं ‘अजंता में जिन चितेरों ने चित्रकारी की है, वे सृजन के शिखर पुरुष थे। अजंता में दीवारों पर जो लंबरूप (खड़ी) लाइनें कूची से सहज ही खींची गयी हैं वे अचंभित करती हैं। वास्तव में यह आश्चर्यजनक कृतित्व है। परन्तु जब छत की सतह पर संवारी क्षितिज के समानान्तर लकीरें, उनमें संगत घुमाव, मेहराब की शक्ल में एकरूपता के दर्शन होते हैं और इसके सृजन की हज़ारों जटिलताओं पर ध्यान जाता है, तब लगता है वास्तव में यह विस्मयकारी आश्चर्य और कोई चमत्कार है।
2). अजंता की गुफा संख्या 9, 10, 12, 13 15ए (अंतिम गुफा को 1956 में ही खोजा गया और अभि तक संख्यित नहीं किया गया है।) को इस चरण में खोजा गया था। इन खुदाइयों में बुद्ध को स्तूप या मठ रूप में दर्शित किया गया है।
3). अजंता की गुफाये लगभग 2000 साल से भी ज्यादा पुरानी है और वहा स्थित बुद्धा का मूर्ति करीब 600 साल पुराना है।
4). गुफाओ की गौर से और उसकी जाँच पड़ताल के बाद पता चला की अजंता की गुफाओ में करीब 30 गुफ़ाये है और ये गुफाये दो भाग में थी जिसमे से कई सातवाहन दौर में हुई और कई वकाताका दौर में हुई।
5). अजंता की गुफा 2 के दरवाजे, छत और मंदिर की नक्काशी आश्चर्यजनक हैं। दीवारों पर भगवान बुद्ध के 1000 चित्र बनें हुए हैं। गलियारे में एक छोटी बच्ची बनी हुई है जिसे घुमती लड़की कहा जाता है, यह चित्र बुद्ध की शारीरिक ऊर्जा पर प्रकाश डालता है।
6). गुफा 26 में आकर्षण का केन्द्र, श्रावस्ती के चमत्कार, परिवार समूह, और घुंघराले बालों वाले बुद्ध भगवान के सिर का चित्र हैं। श्रावस्ती एक गांव था, जहां के रहने वाले लोग खुद को भाग्यशाली मानते थे क्योकि उन्होने महात्मा बुद्ध के दर्शन किए थे। इस गुफा में चित्रित परिवार समूह उस समय के आर्दश परिवार माने जाते थे और भगवान का मुखमंडल उनके आध्यात्मिक तेज को दर्शाता है।
7). घना जंगल में स्थित होने की वजह से हरीसेना का शासक में बनने वाली गुफाओ का बनना बंद हो गया था और लोगो ने इसे भुला दिया।
8). अजंता की जिन गुफाओं में नवीनतम फीचर्स हैं, वहां किनारे की दीवारों, द्वार मण्डपों पर और प्रांगण में गौण पवित्र स्थल भी बने दिखते हैं। कई विहारों के दीवारों के फलक नक्काशी से अलंकृत हैं, दीवारों और छतों पर भित्ति चित्रण किया हुआ है।
9). औरंगाबाद से 30 किमी दूर एलोरा की गुफाएँ हैं। एलोरा की गुफाओं में 34 गुफाएँ शामिल हैं। ये गुफाएँ बेसाल्टिक की पहाड़ी के किनारे-किनारे बनी हुई हैं। इन गुफाओं में हिंदू, जैन और बौद्ध तीन धर्मों के प्रति दर्शाई आस्था का त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। ये गुफाएँ 350 से 700 ईसा पश्चात के दौरान अस्तित्व में आईं।
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