जगदीश मंदिर का इतिहास और जानकारी | Jagdish Temple Udaipur History in Hindi

Jagdish Temple / जगदीश मंदिर, राजस्थान के उदयपुर में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1652 ई. में महाराणा जगतसिंह ने किया था। यह उदयपुर शहर के सबसे बड़े मंदिर के रूप में माना जाता है।

जगदीश मंदिर का इतिहास और जानकारी | Jagdish Temple Udaipur History in Hindi

जगदीश मंदिर की जानकारी – Jagdish Temple History in Hindi

जगदीश मंदिर में विष्णु तथा जगन्नाथ जी की मूर्तियाँ स्‍थापित हैं। यह उदयपुर में सिटी पैलेस का एक प्रमुख हिस्सा है। इंडो – आर्यन स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता यह मन्दिर प्रतिष्ठापित चार हाथ वाली विष्णु की छवि काले पत्थर से बनी है।

इतिहास के अनुसार जगदीश मंदिर के निर्माण के 28 साल बाद जनवरी 1680 में मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर उसकी सेना ने बदनीयती से मंदिर पर हमला किया था। हमलावार मंदिर को तोडऩा चाहते थे, लेकिन वीरों की धरा के सैनिकों ने मुगलों की सेना को मुहं तोड़ जवाब देकर उनका प्रयास विफल कर दिया था। तब महाराणा राज सिंह के शासनकाल में मंदिर के सम्मान और उसकी रक्षा में 20 सैनिक शहीद हो गए थे।

मान्यता हैं की इस मंदिर में स्पर्श मात्र से शरीर की सारी पीड़ाएँ एवं दर्द दूर हो जाते हैं। इस मंदिर में स्थित भगवान जगन्नाथ की यह मूर्ति डूंगरपुर के पास कुनबा गाँव में एक पेड़ के नीचे खुदाई से प्राप्त हुई थी। तब से लेकर मंदिर की निर्माण कार्य के पूरे होने तक भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को एक पत्थर पर रखकर उसकी पूजा-आराधना की गई थी। वो पत्थर आज भी मंदिर में मौजूद है।

यह मंदिर शानदार नक़्क़ाशीदार खंभों, चित्रित दीवारों और सजाये गये छत के साथ एक तीन मंजिला संरचना है। पहली और दूसरी मंजिल पर 50 खम्भे हैं। मंदिर के शीर्ष की ऊंचाई 79 फुट है जिसपर हाथियों और सवारों के साथ संगीतकारों और नर्तकियों की प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। गरुड़ की छवि (आधा आदमी और आधा चील) भगवान विष्णु के द्वार की रक्षा करता है।

हालाँकि औरंगजेब की चढ़ाई के समय गजथर के कई हाथी तथा बाहरी द्वार के पास का कुछ भाग आक्रमणकारियों ने तोड़ डाला था, जो फिर नया बनाया गया। मंदिर में खंडित हाथियों की पंक्ति में भी नये हाथियों को यथास्थान लगा दिया गया है।

यहाँ चार अन्य धार्मिक स्थल हैं जो जगदीश मंदिर निकटता में स्थित हैं, ये सूर्य भगवान, भगवान गणेश, भगवान शिव और देवी शक्ति को समर्पित हैं।


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