Kushan Empire / कुषाण एक विदेशी राजवंश, जिसने अफगानिस्तान से वाराणसी तक (कुछ लोगों के मतानुसार गया तथा पटना तक) की भारत भूमि पर राज किया। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युएझ़ी लोगों के मूल का मानते है। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबातक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते है। यह साम्राज्य भारतीय इतिहास के 8 सबसे बड़े साम्राज्य में एक था।
कुषाण राजवंश का इतिहास – Kushan Empire History in Hindi – Kushan Samrajya in Hindi
सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वन्श को चीन से आया हुआ माना गया है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में युएझ़ी नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी। इसका सामना ह्युगनु कबीलों से हुआ जिसने इन्हें इनके क्षेत्र से खदेड़ दिया। ह्युगनु के राजा ने ह्यूची के राजा की हत्या कर दी। ह्यूची राजा की रानी के नेतृत्व में ह्यूची वहां से ये पश्चिम दिशा में नये चरागाहों की तलाश में चले। रास्ते में ईली नदी के तट पर इनका सामना व्ह्सुन नामक कबीलों से हुआ। व्ह्सुन इनके भारी संख्या के सामने टिक न सके और परास्त हुए। ह्यूची ने उनके चरागाहों पर अपना अधिकार कर लिया। यहां से ह्यूची दो भागों में बंट गये, ह्यूची का जो भाग यहां रुक गया वो लघु ह्यूची कहलाया और जो भाग यहां से और पश्चिम दिशा में बढा वो महान ह्यूची कहलाया।
महान ह्यूची का सामना शकों से भी हुआ। शकों को इन्होंने परास्त कर दिया और वे नये निवासों की तलाश में उत्तर के दर्रों से भारत आ गये। ह्यूची पश्चिम दिशा में चलते हुए अकसास नदी की घाटी में पहुँचे और वहां के शान्तिप्रिय निवासिओं पर अपना अधिकार कर लिया। सम्भवतः इनका अधिकार बैक्ट्रिया पर भी रहा होगा। इस क्ष्रेत्र में वे लगभग 10 वर्ष ईपू तक शान्ति से रहे। चीनी लेखक फान-ये ने लिखा है कि यहां पर महान ह्यूची 5 हिस्सों में विभक्त हो गये – स्यूमी, कुई-शुआंग, सुआग्म, ,। बाद में कुई-शुआंग ने क्यु-तिसी-क्यो के नेतृत्व में अन्य चार भागों पर विजय पा लिया और क्यु-तिसी-क्यो को राजा बना दिया गया। क्यु-तिसी-क्यो ने करीब 80 साल तक शासन किया। उसके बाद उसके पुत्र येन-काओ-ट्चेन ने शासन सम्भाला। उसने भारतीय प्रान्त तक्षशिला पर विजय प्राप्त किया। चीनी साहित्य में ऐसा विवरण मिलता है कि, येन-काओ-ट्चेन ने ह्येन-चाओ (चीनी भाषा में जिसका अभिप्राय है – बड़ी नदी के किनारे का प्रदेश जो सम्भवतः तक्षशिला ही रहा होगा)। यहां से कुई-शुआंग की क्षमता बहुत बढ़ गयी और कालान्तर में उन्हें कुषाण कहा गया।
भारतीय सिक्कों तथा लेखों से ज्ञात होता है कि कुषाणों के दो अथवा तीन वंशों ने भारत में राज किया। प्रथम वंश के सम्राटों में कुजुल कथफिस तथा उसके पुत्र विमकथफिस थे जिनकी पहचान चीनी क्षेत्र के क्यू-तिस्यू- किओ तथा येन-काओ-चेन से क्रमश: की जाती है। दूसरे कुषाण वंश के राजा कनिष्क, हुविष्क तथा वासुदेव थे। इनके अतिरिक्त कनिष्क और वासुदेव नामक परवर्ती राजाओं के सिक्के मिले हैं जिनसे ज्ञात होता हे कि इस नाम के एक से अधिक राजा हुए। पंजतार से प्राप्त एक लेख में महाराज घुषण और तक्षशिला से प्राप्त एक दूसरे लेख में महाराजस राजातिराजस देवपुत्र खुषाणस का उल्लेख है।
इन दोनों में सम्राट् का नाम नहीं मिलता। इनकी तिथि के विषय में विद्वानों में विभिन्न मत हैं, पर प्राय: इनपर अंकित तिथि को विक्रम अथवा अयस् द्वारा चलाए 58 ई. पू. वाला संवत् मानकर इनकी तिथि क्रमश: 44 और 78 ई. मानी जाती है। इन दोनों लेखों का संबंध प्रथम कुषाण वंश के कुजुल कथफिस से जान पड़ता है।
खलात्से (लेह) से प्राप्त एक लेख में उविम-कथफिस का उल्लेख है। यदि यह मत मान लिया जाए तो इस लेख में अंकित संवत् 187 के अनुसार विम-कथफिस की तिथि (187-57 58) 139 -30 ई. होगी। इसलिए तक्षशिला के संवत् 136 के लेख के कुषाण सम्राट् को कुजुल कथफिस अनुमान करना होगा, अन्यथा वित-कथफिस का शासनकाल लगभग 60 वर्ष रखना होगा। किंतु चीनी कथन के अनुसार उसका पिता 80 वर्ष की आयु तक जीवित रहा। इसको ध्यान में रखते हुए यह मानना संभव नहीं है। कुछ विद्वान कुजुल तथा विम-कथफिस को शासनकाल 44-78 ई. के बीच रखते हैं और 78 ई. में कनिष्क का अभिषेक तथा उसके द्वारा चलाए हुए शक संवत का आरंभ मानते हैं, किंतु यह विषय विवादास्पद है।
तक्षशिला से प्राप्त सं. 191 के लेख में जिहोणिक का उल्लेख है जिसकी समानता जियोनिसस से, जिसके सिक्के भी मिले हैं, की गई है। इसके लेख के आधार पर (191-57) 134 ई. में तक्षशिला में जिहोणिक अथवा जियोनिसस राज्य कर रहा था। यदि कनिष्क को शक-संवत्-निर्माता मानें तो मानना पड़ेगा कि उसके पुत्र हुविष्क का राज्य, वरधाक के सं. 54 के लेख के अनुसार (78+54) 132 ई. में अफगानिस्तान तक फैला था और उसने संवत् 60 तक राज किया। इस प्रकार एक ही समय में दो राजाओं का एक ही क्षेत्र पर अधिकार असंभव है। अत: न तो यही कहा जा सकता है कि 44-78 ई. के मध्यकाल में प्रथम कुषाण वंश के दोनों राजाओं ने राज किया और न इस बात से ही सहमत हुआ जा सकता है। कि इनके और कनिष्क के बीच में कोई अंतर न था और कनिष्क ने 78 ई. से राज्य करना आरंभ किया और अपना संवत् चलाया। संभवत: कनिष्क का कथफिस वंश से कोई संबंध न था, यद्यपि दोनों कुषाण थे।
कनिष्क के वंश में उसके बाद वाशिष्क, हुविष्क तथा वासुदेव ने क्रमश: 24-28, 28-60, 87-99 वर्ष तक राज किया। आरा (अफगानिस्तान) से प्राप्त लेख में महाराज राजाधिराज देवपुत्र कैंसर कनिष्क का उल्लेख है जो वजिष्क का पुत्र था और सं. 41 में राज कर रहा था। स्टेन कोनो के मतानुसार कनिष्क के बाद साम्राजय के दो भाग हो गए। उत्तरपश्चिम में वाशिष्क अथवा वाजिष्क और उसके पुत्र कनिष्क (आरा लेख) ने राज किया और मध्यपूर्वीय भाग हुविष्क को मिला। कनिष्क के बाद दोनों पर हुविष्क का अधिकार हो गया। राखालदास बनर्जी तथा कुछ अन्य विद्वान आरा के लेख के कनिष्क को सम्राट कनिष्क प्रथम कहते रहे हैं। इधर अफगानिस्तान से कनिष्क के सं. 31 का यूनानी भाषा में एक लेख मिला है जिसने कुषाण शासक और उनकी तिथि की समस्या को उलझा दिया है। अत: कनिष्क के वंश ने कब से कब तक शासन किया निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। उनका समय प्रथम से तृतीय शती के बीच अनुमान ही किया जा सकता है।
कनिष्क के वंश के बाद एक अन्य कुषाण वंश के राजाओं ने राज किया जिन्हें कनिष्ठ कुषाण कहा गया है। इनके सिक्कों में केवल कनिष्क और वसु अथवा वासुदेव का उल्लेख है। मथुरा में मिले एक लेख में कुषाणपुत्र का उल्लेख है और इसकी लिखावट के बहुत से अक्षर गुप्तकालीन आरंभिक लेखों से मिलते-जुलते हैं। सम्राट, समुद्रगुप्त की इलाहाबाद प्रशस्ति में भी देवपुत्रषाहि षाहानुषाहि राजाओं का उल्लेख है जिनसे कुषाणों का संकेत मिलता है। कुषाणों के वंशज गुप्त साम्राज्य की स्थापना तक कहीं-कहीं अपना अस्तित्व बनाए हुए थे।
कुषाण वंश के जो शासक थे उनके नाम इस प्रकार है-
- कुजुल कडफ़ाइसिस: शासन काल (30 ई. से 80 ई तक लगभग)
- विम तक्षम: शासन काल (80 ई. से 95 ई तक लगभग)
- विम कडफ़ाइसिस: शासन काल (95 ई. से 127 ई तक लगभग)
- कनिष्क प्रथम: शासन काल(127 ई. से 140-50 ई. लगभग)
- वासिष्क प्रथम: शासन काल (140-50 ई. से 160 ई तक लगभग)
- हुविष्क: शासन काल (160 ई. से 190 ई तक लगभग)
- वासुदेव प्रथम
- कनिष्क द्वितीय
- वशिष्क
- कनिष्क तृतीय
- वासुदेव द्वितीय
कनिष्क – Kanishka Empire in Hindi
कनिष्क कुषाण वंश का प्रमुख सम्राट कनिष्क भारतीय इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। कुमारलात की कल्पनामंड टीका के अनुसार इसने भारतविजय के पश्चात् मध्य एशिया में खोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा। इसके लेख पेशावर, माणिक्याल (रावलपिंडी), सुयीविहार (बहावलपुर), जेदा (रावलपिंडी), मथुरा, कौशांबी तथा सारनाथ में मिले हैं, और इसके सिक्के सिंध से लेकर बंगाल तक पाए गए हैं। कल्हण ने भी अपनी ‘राजतरंगिणी’ में कनिष्क, झुष्क और हुष्क द्वारा कश्मीर पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है। इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से उत्तरी सिंध तथा पेशावर से सारनाथ के आगे तक फैला था।