Rajgir Bihar / राजगीर बिहार के नालंदा ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध शहर हैं जो की अपने पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के लिए विश्वभर में मशहूर हैं। राजगीर की हरियाली जहां प्राकृतिक सौन्दर्य प्रेमियों को लुभाती है वहीं धर्म पर आस्था रखने वाले लोग राजगीर आकर अपने आराध्य का दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं। राजगीर हिन्दु, जैन और बौद्ध मतावलंबियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। राजगीर जिस समय मगध की राजधानी थी, उस समय इसे ‘राजगृह’ के नाम से जाना जाता था। पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन तीर्थंकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि रहा है। इसका ज़िक्र ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था।
राजगीर की जानकारी – Rajgir Bihar Information in Hindi
राजगृह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। राजगीर, आजतशत्रु के शासन काल में पाटलिपुत्र से पहले मगध की राजधानी हुआ करती थी। वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी प्रसिद्ध रहे राजगृह को आजकल राजगीर के नाम से जाना जाता है। मथुरा से लेकर राजगृह तक महाजनपद का सुन्दर वर्णन बौद्ध ग्रंथों में प्राप्त होता है। मथुरा से यह रास्ता वैरंजा, सोरेय्य, संकिस्सा, कान्यकुब्ज होते हुए प्रयाग प्रतिष्ठानपुर जाता था, जहाँ पर गंगा पार करके वाराणसी पहुँचा जाता था। माना जाता है कि भगवान महावीर स्वामी ने वर्षा ऋतु में राजगृह में सर्वाधिक समय व्यतीत किया था। यहाँ प्रथम विश्व बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था। यहाँ जैन व हिन्दुओं के अनेक पवित्र धार्मिक स्थल हैं।
राजगीर की पंच पहाड़ियों, विपुलगिरी, रत्नागिरी, उदयगिरी, सोनगिरी और वैभारगिरी न केवल प्राकृति सौन्दर्य से परिपूर्ण है, बल्कि मान्यता है कि जैन धर्म के 11 गंधर्वों का निर्वाण भी राजगीर में ही हुआ था। आज भी इन पांचों पहाड़ियों पर जैन धर्म के मंदिर हैं। इसी तरह भगवान महात्मा बुद्ध ने रत्नागिरी पर्वत के नजदीक गृद्धकूट पहाड़ी पर बैठकर लोगों को उपदेश दिया था।
पटना से 100 किमी उत्तर में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न केवल एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक सुन्दर हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय है। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी।
राजगीर की पहाड़ियाँ विश्व प्रसिद्ध है। पहाड़ी, 388 मीटर, मध्य बिहार राज्य, यह दक्षिण गंगा के मैदान के विस्तार को भंग करती है और जलोढ़ मिट्टी के समुद्र में द्वीप की तरह प्रकट होती है। स्फटिक, क्वार्टज शैल खंडों से बनी यह पहाड़ी दक्षिण-पश्चिमी दिशा में मगरमच्छ के मुँह की तरह और अलियानी घाटी उसकी जीभ की तरह निकली हुई है।
राजगीर का इतिहास – Rajgir Bihar History in Hindi
इतिहासकारों के अनुसार बुद्ध जब यहां धर्म के प्रचार कर रहे थे तब यहां र्हयक वंश सम्राज्य का शासन था। बुद्ध के समकालीन मगध नरेश बिंबिसार ने शिशुनाग अथवा हर्यक वंश के नरेशों की पुरानी राजधानी गिरिव्रज को छोड़कर नई राजधानी उसके निकट ही बसाई थी। पहले गिरिव्रज के पुराने नगर से बाहर उसने अपने प्रासाद बनवाए थे जो राजगृह के नाम से प्रसिद्ध हुए। पीछे अनेक धनिक नागरिकों के बस जाने से राजगृह के नाम से एक नवीन नगर ही बस गया। गिरिव्रज में महाभारत के समय में जरासंध की राजधानी भी रह चुकी थी। राजगृह के निकट वन में जरासंध की बैठक नामक एक बारादरी स्थित है जो महाभारत कालीन ही बताई जाती है। महाभारत वनपर्व में राजगृह का उल्लेख है जिससे महाभारत का यह प्रंसग बौद्धकालीन मालूम होता है।
महाभारत काल में राजगृह तीर्थस्थान के रूप में माना जाता था। आगे के प्रसंग से यह भी सूचित होता है कि मणिनाग तीर्थ राजगृह के अन्तर्गत था। यह संभव है कि उस समय राजगृह का बौद्ध जातकों में कई बार उल्लेख है। मंगल जातक में उल्लेख है कि राजगृह मगध देश में स्थित था। राजगृह के वे स्थान जो बुद्ध के समय में विद्यमान थे और जिनसे उनका संबद्ध रहा था। पांचवीं सदी में भारत की यात्रा पर आए चीनी तीर्थ यात्री फाहयान ने अपने यात्रा वृतांत में लिखा था कि राजगीर की पहाड़ियों के बाहरी हिस्से में राजगृह नगर का निर्माण बिम्बिसार के पुत्र आजातशत्रु ने ही करवाया था।
जैन ग्रंथ सूत्र कृतांग में राजगृह का संपन्न, धनवान और सुखी नर-नारियों के नगर के रूप में वर्णन है। एक अन्य जैन सूत्र, अंतकृत दशांग में राजगृह के पुष्पोद्यानों का उल्लेख है। साथ ही यक्ष मुदगरपानि के मंदिर की भी वहीं स्थिति बताई गई है। युवानच्वांग ने भी राजगृह में कई स्थानों का वर्णन किया है जिनसे गौतम बुद्ध का सम्बंध बताया गया है। वाल्मीकि रामायण में गिरिव्रज की पांच पहाड़ियों का तथा सुमागधी नामक नदी का उल्लेख है। जैन कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने राजगृह में 14 वर्षकाल बिताए थे।
बौद्धधर्म के मान्यताओं के मुताबिक पहला बौद्ध महासम्मेलन वैभारगिरी की पहाड़ी पर ही हुआ था। इसी सम्मेलन में पालि साहित्य का विशेष ग्रंथ ‘त्रिपिटक’ तैयार हुआ था। भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला उपदेश भी विपुलगिरी पर्वत पर दिया था।
पांच पहाड़ियाँ के मध्य स्थित है राजगीर – Rajgir in Hindi
राजगीर पांच पहाड़ियों से घिरा है। इसमें से हरेक पहाड़ी धार्मिक दृष्टिकोण से अपना महत्व हैं।
1. विपुलाचल –
विपुलाचल पहाड़ी जैन धर्म के विशेष महत्व रखता है। इस पहाड़ी पर भगवान महावीर की भव्य प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है की विपुलाचल पर ही भगवान महावीर स्वामी का सर्वप्रथम उपदेश हुआ था। इस पहाड़ी पर चढ़ने हेतु पर्यटक के के लिए 550 सीढ़ियाँ बनी निर्मित हैं। इसके अलावा इस स्थल पर भगवान महावीर के चरण चिन्ह, और दिगम्बर मंदिर भी दर्शिनीय हैं।
2. रत्नागिरि –
यह पर्वत भी जैन समुदाय के लिए बेहद खास हैं। रत्नागिरी पहाड़ी को भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी की तप एवं ज्ञान स्थली के रूप में जाना जाता है। यहाँ भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी की पद्मासन प्रतिमा स्थापित है। इस पर्वत शिखर पर जाने के लिए 1300 के करीब सीढ़ियाँ बनी हुयी है। इसके अलावा यह पहाड़ी दिगम्बर जैन मन्दिर और शिखरबंद मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है।
3. उदयगिरि –
उदयगिरि पर्वत जैन समुदाय के बेहद खास है। इस पहाड़ी पर एक मन्दिर में भगवान महावीर की खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इस पहाड़ी पर चढ़ाई के लिए 750 के करीब सीढ़ियाँ बनी हुयी है।
4. स्वर्णगिरि –
स्वर्णगिरि पहाड़ी के बारें में मान्यता है की यह लाखों जैन मुनियों की निर्वाण स्थल है। यहाँ पर भगवान शांतिनाथ, भगवान कुंथुनाथ, आदिनाथ, भगवान शांतिनाथ और भगवान अरहनाथ की प्रतिमा विराजमान है। इस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए 1000 से अधिक सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
5. वैभारगिरि –
वैभारगिरि पर्वत 24 में से 23 तीर्थंकरों के समवसरण स्थली मानी जाती है। इस पहाड़ी के ऊपर स्थित मंदिर में भगवान महावीर की पद्मासन रूप में प्रतिमा स्थापित है। इसके अलावा यहाँ श्वेताम्बर मन्दिरों, प्राचीन चौबीसी मन्दिर और जरासंध द्वारा पूजित भगवान महादेव का अति प्राचीन मन्दिर भी दर्शनीय है।
महोत्सव –
प्रतिवर्ष 24 से 26 अक्टूबर तक राजगीर में मलमास महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें मगध के इतिहास की झलक गीत, संगीत और नृत्य के माध्यम से प्रख्यात कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की जाती है, जिसे देश विदेश के हज़ारों पर्यटक पहुँचते हैं।
राजगीर के दर्शनीय स्थल – Rajgir Bihar Tourist Place
राजगीर में क्या क्या है
बिहार में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि का श्रेय राजगीर को दिया जाता है। राजगीर में पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्घि देखी जा रही है। देश के पश्चिम बंगाल से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। इसके अलावा राजस्थान, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के भी पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं। श्रीलंका, थाइलैंड, कोरिया, जापान, चीन, वर्मा, भूटान आदि देशों के बौद्ध श्रद्धालु तो यहां आते ही हैं, अमेरिका और इंगलैंड के भी पर्यटक भी यहां आना नहीं भूलते।
प्राचीन बौद्ध पर्यटक स्थल –
गृद्धकूट पर्वत
इस पर्वत पर बुद्ध ने कई महत्वपूर्ण उपदेश दिये थे। जापान के बुद्ध संघ ने इसकी चोटी पर एक विशाल “शान्ति स्तूप” का निर्माण करवाया है जो आजकल पर्यटकों के आकर्षण का मूख्य केन्द्र है। स्तूप के चारों कोणों पर बुद्ध की चार प्रतिमाएं स्थपित हैं। स्तूप तक पहुंचने के लिए पहले पैदल चढ़ाई करनी पड़ एक “रज्जू मार्ग” भी बनाया गया है जो यात्रा को और भी रोमांचक बना देता है।
वेणुवन
बाँसों के इस रमणीक वन में बसे “वेणुवन विहार” को बिम्बिसार ने भगवान बुद्ध के रहने के लिए बनवाया था।
गर्म जल के झरने
वैभव पर्वत की सीढ़ियों पर मंदिरों के बीच गर्म जल के कई झरने (सप्तधाराएं) हैं जहां सप्तकर्णी गुफाओं से जल आता है। इन झरनों के पानी में कई चिकित्सकीय गुण होने के प्रमाण मिले हैं। पुरुषों और महिलाओं के नहाने के लिए 22 कुन्ड बनाए गये हैं। इनमें “ब्रह्मकुन्ड” का पानी सबसे गर्म (45 डिग्री से.) होता है।
सोन भंडार गुफा
यह स्थान प्राचीन काल में जरासंध का सोने का खजाना था। कहा जाता है कि अब भी इस पर्वत की गुफ़ा के अन्दर अतुल मात्रा में सोना छुपा है और पत्थर के दरवाजे पर उसे खोलने का रहस्य भी किसी गुप्त भाषा में खुदा हुआ है।वह किसी और भाषा में नहीं बल्कि शंख लिपि है और वह लिपि बिंदुसार के शासन काल में चला करती थी।
जैन मंदिर –
पहाड़ों की कंदराओं के बीच बने २६ जैन मंदिरों को अप दूर से देख सकते हैं पर वहां पहुंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम है। लेकिन अगर कोई प्रशिक्षित गाइड साथ में हो तो यह एक यादगार और बहुत रोमांचक यात्रा साबित हो सकती है। जैन मतावलंबियो में विपुलाचल, सोनागिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, वैभारगिरि यह पांच पहाड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। जैन मान्यताओं के अनुसार इन पर 23 तीर्थंकरों का समवशरण आया था तथा कई मुनि मोक्ष भी गए हैं।
जीवकर्म –
बुद्ध के समय प्रसिद्ध वैध जीवक राजगीर से थे। उन्होंने बुद्ध के नाम एक आश्रम समर्पित किया जिसे कहा जाता है।
तपोधर्म –
तपोधर्म आश्रम गर्म चश्मों के स्थान पर स्थित है। आज वहाँ एक हिन्दू मन्दिर का निर्माण किया किया गया है जिसे लक्ष्मी नारायण मन्दिर का नाम दिया गया है। पूर्वकाल में तपोधर्म के स्थल पर एक बौध आश्रम और गर्म चश्मे थे। राजा बिम्बिसार यहाँ पर कभी-कभार स्नान किया करते थे।
सप्तपर्णी गुफा –
सप्तपर्णी गुफा के स्थल पर पहला बौध परिषत का गठन हुआ था जिसका नेतृत्व महा कस्साप ने किया था। बुद्ध भी कभी-कभार वहाँ रहे थे, और यह अतिथि संयासियों के ठहरने के काम में आता था।
बिम्बिसार कारागार –
घाटी के बीच एक गोलाईदार ढाँचे के खण्डहर हैं जिसके हर कोने में एक बुर्ज है। बिम्बिसार को उसके बेटे अजतशत्रु ने बन्दी बनाया था। इसके बावजूद वह गृधाकुट और बुद्ध को खिड़की से देख सकते थे।
राजगीर का ग्लास ब्रिज –
इसे चीन में बने कांच के ब्रिज के तर्ज पर ग्लास ब्रिज का निर्माण किया गया है।
हिन्दू स्थल –
जरासंध का अखाडा़ –
हिन्दू मान्यता के अनुसार महान परन्तु दुष्ट योद्धा जिसके बार-बार मथुरा पर हमले से श्री कृष्ण तंग आकर मथुरा-वासियों को द्वार्का भेजना पड़ा, इसी स्थान पर हर दिन सैन्य कलाओं का अभियास करता था।
लक्ष्मी नारायण मंदिर –
गुलाबी रंग वाली हिन्दू लक्ष्मी नारायण मन्दिर अपने दामन में प्रचीन गर्म चश्मे समाए हुए हैं। यह मन्दिर अपने नाम के अनुसार विष्णु भगवान और उनकी पत्नी लक्ष्मी को समर्पित है।
वास्तविक रूप में जल में एक डुपकी ही गर्म चश्मे को अनुभव करने का स्रोत था, परन्तु अब एक उच्च स्तरीय चश्मे को काम में लाया गया है जो कई आधूनिक पाइपों से होकर आता है जो एक हॉल की दीवारों से जुड़े हैं, जहाँ लोग बैठकर अपने ऊपर से जल के जाने का आनंद ले सकते हैं।
अन्य स्थान –
- कर्णदा टैंक जहा बुद्ध स्थान लेते थे।
- मनियार मठ जिसका इतिहास पहली शताब्दी का है।
- मराका कुक्षी जहाँ अजन्मित अजातशत्रु को पिता की मृत्यु का कारण बनने का श्राप मिला
- रणभूमि जहाँ भीम और जरासध महाभारत की एक युद्ध लड़े थे
- स्वर्णभण्डार गुफा
- विश्वशांति स्तूप
- एक पुराने दुर्ग के खण्डहर
- 2500 साल पुरानी दीवारें
राजगीर कब और कैसे पहुँचें – How to Reach Rajgir
यूं तो आप कभी भी राजगीर आ सकते हैं लेकिन दिसंबर व जनवरी का महीना राजगीर यात्रा के लिए सबसे बेस्ट समय है। रेल, सड़क और हवाई मार्ग से राजगीर अच्छी तरह से कनेक्टेड है। पटना निकटतम हवाई अड्डा है जो कि लगभग 90 कि.मी. दूर है। हालांकि रेलवे स्टेशन राजगीर में मौजूद है लेकिन सुविधाजनक यात्रा के लिए गया और पटना रेलवे स्टेशन आना बेहतर ऑप्शन है। वहाँ से राजगीर तक बस या टैक्सी से आसानी से पहुँचा जा सकता है। BSTDC की तरफ से नियमित रूप से पटना और बोधगया से राजगीर के लिए वातानुकूलित बसें चलाई जाती है।
राजगीर तस्वीरें – Rajgir Photos
FAQ
Q. राजगृह कहाँ स्थित है?
Ans : राजगीर, बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलो मीटर दूर है। यह बिहार के नालंदा ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध स्थान है।
Q. राजगृह का वर्तमान नाम?
Ans : राजगृह का वर्तमान नाम राजगीर हैं।
Q .राजगीर क्यों प्रसिद्ध है?
Ans : राजगीर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं।
Q. राजगृह किसकी राजधानी थी?
Ans : प्राचीनकाल में राजगृह, मगध साम्राज्य की राजधानी थी। जिसे राजगृह के नाम से भी जाना जाता है।
Q. राजगीर में कौन सा मंदिर है?
Ans : यहां पर सप्तपर्णि गुफा, विश्व शांति स्तूप, सोन भंडार गुफा, मणियार मठ, जरासंध का अखाड़ा, बिम्बिसार की जेल, नौलखा मंदिर, जापानी मंदिर, रोपवे, बाबा सिद्धनाथ का मंदिर, घोड़ाकटोरा डैम, तपोवन, जेठियन बुद्ध पथ, वेनुवन, वेनुवन विहार, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय है।