गोलकोण्डा किले का इतिहास और जानकारी | Golkonda Fort History in Hindi

Golkonda Fort in Hindi/ गोलकुंडा एक क़िला व भग्नशेष नगर है। यह आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) का एक ऐतिहासिक नगर है। जिसे मुख्यत: गोलकोंडा और गोल्ला कोंडा के नाम से जाना जाता हैं। हैदराबाद से 9 किलोमीटर पश्चिम की ओर बहमनी वंश के सुल्तानों की राजधानी गोलकुंडा के विस्तृत खंडहर स्थित हैं। गोलकुंडा का प्राचीन दुर्ग वारंगल के हिन्दू राजाओं ने बनवाया था। यह साम्राज्य बेसकीमती मिलनेवाले हीरे-जवाहरातों के लिये प्रसिद्ध था। जैसे – कोहिनूर हिरा।

गोलकोण्डा किले का इतिहास और जानकारी | Golkonda Fort History In Hindiगोलकोण्डा किला – Golkonda Fort History In Hindi

गोलकोंडा कुतब शाही साम्राज्य (1518-1687) के मध्यकालीन सल्तनत की राजधानी थी। यहां देवगिरी के यादव तथा वारंगल के ककातीय नरेशों के अधिकार में रहा था। इन राज्यवंशों के शासन के चिह्न तथा कई खंडित अभिलेख दुर्ग की दीवारों तथा द्वारों पर अंकित मिलते हैं। 1364 ई. में वारंगल नरेश ने इस क़िले को बहमनी सुल्तान महमूद शाह के हवाले कर दिया था।

यह ग्रैनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है। यहाँ के महलों तथा मस्जिदों के खंडहर अपने प्राचीन गौरव गरिमा की कहानी सुनाते हैं। मूसी नदी दुर्ग के दक्षिण में बहती है। दुर्ग से लगभग आधा मील उत्तर कुतबशाही राजाओं के ग्रैनाइट पत्थर के मकबरे हैं जो टूटी फूटी अवस्था में अब भी विद्यमान हैं।

इस शहर और किले का निर्माण ग्रेनाइट हिल से 120 मीटर (480) ऊंचाई पर बना हुआ है और विशाल चहारदीवारी से घिरा हुआ है। ककाटिया के प्रताप रूद्र ने उसकी मरम्मत करवाई थी। लेकिन बाद में किले पर मुसुनुरी नायक ने हासिल कर लिया था, उन्होंने तुगलकी सेना को वरंगल में हराया था। इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14 वी शताब्दी के कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओ के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। 1512 ई. में यह कुतुबशाही राजाओ के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा। फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया।

28 जनवरी, 1627 ई. को औरंगज़ेब ने गोलकुंडा के क़िले पर आक्रमण किया और तभी मुग़ल सेना के एक नायक के रूप में किलिच ख़ाँ ने भी इस आक्रमण में भाग लिया था। युद्ध में इसका एक हाथ तोप के गोले से उड़ गया था जो मक़्बरे से आधा मील दूर क़िस्मतपुर में गड़ा हुआ है। इसी घाव से इसका कुछ दिन बाद निधन हो गया। कहा जाता है कि मरते वक़्त भी किलिच ख़ाँ जरा भी विचलित नहीं हुआ था और औरंगज़ेब के प्रधानमंत्री जमदातुल मुल्क असद ने, जो उससे मिलने आया था, उसे चुपचाप काफ़ी पीते देखा था। शिवाजी ने बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों को बहुत संत्रस्त किया था तथा उनके अनेक क़िलों को जीत लिया था।

इतिहासकार फ़रिश्ता लिखते है कि बहमनी वंश की अवनति के पश्चात 1511 ई. में गोलकुंडा के प्रथम सुल्तान ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। किंतु क़िले के अन्दर स्थित जामा मस्जिद के एक फ़ारसी अभिलेख से ज्ञात होता है कि, 1518 ई. में भी गोलकुंडा का संस्थापक कुली कुतुबशाह, महमूद शाह बहमनी का सामन्त और एक तुर्की अधिकारी था। गोलकुंडा क़िला, हैदराबाद उसने 1543 तक गोलकुंडा पर शासन किया।

यह ऐतिहासिक शहर बहमनी साम्राज्य के ‘तिलंग’ या वर्तमान तेलंगाना प्रान्त की राजधानी था। गोलकुंडा के आख़िरी सुल्तान का दरबारी और सिपहसलार अब्दुर्रज्जाक लारी था। कुतुबशाह के बाद उसका पुत्र ‘जमशेद’ सिंहासन पर बैठा। जमशेद के बाद गोलकुंडा का शासक ‘इब्राहिम’ बना, जिसने विजयनगर से संघर्ष किया।

1580 ई. में इब्राहिम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र ‘मुहम्मद कुली’ (1580-1612 ई.) उसका उत्तराधिकारी हुआ। वह हैदराबाद नगर का संस्थापक और दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्य संग्रह या ‘दीवान’ का लेखक था। गोलकुंडा का ही प्रसिद्ध अमीर ‘मीरजुमला’ मुग़लों से मिल गया था।

कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी गोलकुंडा हीरों के विश्व प्रसिद्ध बाज़ार के रूप में प्रसिद्ध थी, जबकि मुसलीपत्तन कुतुबशाही साम्राज्य का विश्व प्रसिद्ध बन्दरगाह था। इस काल के प्रारम्भिक भवनों में सुल्तान कुतुबशाह द्वारा गोलकुंडा में निर्मित ‘जामी मस्जिद’ उल्लेखनीय है।

हैदराबाद के संस्थापक ‘मुहम्मद कुली’ द्वारा हैदराबाद में निर्मित चारमीनार की गणना भव्य इमारतों में होती है। सुल्तान मुहम्मद कुली को आदि उर्दू काव्य का जन्मदाता माना जाता है। सुल्तान ‘अब्दुल्ला’ महान् कवि एवं कवियो का संरक्षक था। उसके द्वारा संरक्षित महानतम् कवि ‘मलिक-उस-शोरा’ था, जिसने तीन मसनवियो की रचना की। अयोग्य शासक के कारण, अंततः 1637 ई. में औरंगजेब ने गोलकुंडा को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। बहमनी साम्राज्य से स्वतंत्र होने वाले राज्य क्रमश बरार, बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा तथा बीदर हैं।

गोलकोंडा किले को 17 वी शताब्दी तक हीरे का एक प्रसिद्ध बाजार माना जाता था। इससे दुनिया को कुछ सर्वोत्तम हीरे मिले, जिसमे कोहिनूर शामिल है। इसकी वास्तुकला के बारीक़ विवरण और धुंधले होते उद्यान, जो एक समय हरे भरे लॉन और पानी के सुन्दर फव्वारों से सज्जित थे, यह उस समय की भव्यता में वापिस ले जाते है।

गोलकोण्डा किले की जानकारी – Golkonda Fort (Kila) Information in Hindi

गोलकुंडा का क़िला के तीन परकोटे हैं और इसका परिमाप सात मील के लगभग है। इस पर 87 बुर्ज बने हैं। दुर्ग के अन्दर क़ुतुबशाही बेगमों के भवन उल्लेखनीय है। क़िले के अन्दर नौमहल्ला नामक अन्य इमारतें हैं। जिन्हें हैदराबाद के निजामों ने बनवाया था। क़िले से तीन फलांग पर इब्राहिम बाग़ में सात क़ुतुबशाही सुल्तानों के मक़्बरे हैं।

असल में गोलकोंडा में 4 अलग-अलग किलो का समावेश है जिसकी 10 किलोमीटर लंबी बाहरी दीवार है, 8 प्रवेश द्वार है और 4 उठाऊ पुल है। इसके साथ ही गोलकोंडा में कई सारे शाही अपार्टमेंट और हॉल, मंदिर, मस्जिद, पत्रिका, अस्तबल इत्यादि है। इसके सबसे न इच्ले भाग में एक फ़तेह दरवाजा भी है (इसे विजयी द्वार भी कहा जाता है), इस दरवाजे के दक्षिणी-पूर्वी किनारे पर अनमोल लोहे की किले जड़ी हुई है। फ़तेह दरवाजे में आप ध्वनिक आभास का अनुभव भी कर सकते हो, यह गोलकोंडा के मार्बल की मुख्य विशेषता है।

गोलकोंडा में आज भी 400 साल पुराणी बाग स्थित हैं। गोलकोंडा परीसर में हम प्राचीन भारतीय काला, शिल्पकला और वास्तुकला का सुन्दर दृश्य देख सकते है यहाँ बहोत से प्राचीन रंगमंच, प्रवेश द्वार और विशाल हॉल है। गोलकोंडा किला चमत्कारिक ध्वनिक सिस्टम के लिये प्रसिद्ध है। किले का सबसे उपरी भाग “बाला हिसार” है, जो किले से कई किलोमीटर दूर है। इसके साथ ही किले का वाटर सिस्टम “रहबान” आकर्षण का मुख्य केंद्र है।

गोलकोंडा में फ्रीकन बाओबाब वृक्ष हैं जिसे स्थानिक लोग हथियाँ का झाड़ भी कहते थे। यह पेड़ नया किला परीसर मे आता है। यह झाड़ 425 साल पुराना है। कहा जाता है की अरबियन व्यापारियों ने इसे सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह को उपहार स्वरुप दिया था। किले के सबसे उपरी भाग पर श्री जगदम्बा महाकाली मंदिर बनाया गया था। राजा इब्राहीम कुली कुतुब शाह हिन्दुओ में काफी प्रसिद्ध थे, हिन्दू लोग उन्हें मल्कभिराम के नाम से भी पुकारते थे।

अकॉस्टिक इस किले की सबसे बड़ी खासियत है। अगर आप महल के आंगन में खड़े होकर ताली बजाएंगे तो इसे महल के सबसे ऊपरी जगह से भी सुना जा सकेगा, जो कि मुख्य द्वार से 91 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि एक गुप्त सुरंग गोलकुंडा किले को चारमीनार से जोड़ती है। हलांकि इस संबंध में कोई प्रमाण नहीं मिला है।

कैसे जाएँ – How To Reach Golkonda Fort in Hindi

गोलकोण्डा आप हवाई/रेल /सड़क मार्गों के जरिये आसानी से पहुंच सकते हैं। हवाई मार्ग के लिए आपको हैदराबाद हवाईअड्डे का सहारा लेना पडे़गा। रेल मार्ग के लिए आप हैदराबाद या सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं, जहां से आपको गोलकोण्डा के लिए बस आसानी से मिल जाएगी।

यह किले का वो भाग है, जहां कभी फिरयादी अपनी फरयाद लेकर राजा के पास आते थे। किले का यह भाग किसी रहस्य से कम नहीं है। कई आक्रमणों का दंश झेल चुका यह किला अपने अतीत को अभी भी संभाले हुए है। अगर आप हैदरबाद आएं तो इस किले की सैर जरूर करें।


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