मदनमोहन मालवीय की जीवनी | Madan Mohan Malviya Biography in Hindi

Madan Mohan Malviya in Hindi/ मदनमोहन मालवीय महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे। हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक मदन मोहन मालवीय देश से जातिगत बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे। उन्होंने दलितों के मन्दिरों में प्रवेश निषेध की बुराई के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन चलाया। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जो भारत के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक है, की स्थापना की। 24 दिसम्बर, 2014 को भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पंडित मदनमोहन मालवीय को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न‘ से नवाजा।

मदनमोहन मालवीय की जीवनी | Madan Mohan Malviya Biography In Hindiमदनमोहन मालवीय – Madan mohan malviya ji ka jeevan parichay


अकसर मालवीय जी को हिंदू राष्ट्रवादी दिखाने की कोशिश की जाती है लेकिन उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काफी काम किए। उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द पर दो प्रसिद्ध भाषण दिए जिनमें से एक भाषण उन्होंने 1922 में लाहौर में दिया था और दूसरा 1931 में कानपुर में।
पं. मदनमोहन मालवीय सत्य, दया और न्याय पर आधारित जीवन जीने वाले लोगो में थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर 35 वर्ष तक कांग्रेस की सेवा की। वह सन 1909, 1918, 1930 और 1932 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। वह पूरे भारत में अकेले ऐसे शख्स हैं जिन्हें ‘महामना’ की उपाधि दी गई है।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Madan Mohan Malviya 

इलाहाबाद (प्रयाग) में 25 दिसम्बर, 1861 में जन्मे पंडित मदन मोहन मालवीय अपने महान कार्यों के चलते ‘महामना’ कहलाये। इनके पिता का नाम ब्रजनाथ और माता का नाम मुनादेवी था। वे अपने सात भाई-बहनों में 5वें पुत्र थे। चूँकि ये लोग मालवा के मूल निवासी थे, इसीलिए मालवीय कहलाए। मदनमोहन मालवीय की प्राथमिक शिक्षा इलाहाबाद के ही श्री धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला में हुई जहाँ सनातन धर्म की शिक्षा दी जाती थी।

इसके बाद मालवीयजी ने 1879 में इलाहाबाद ज़िला स्कूल से एंट्रेंस की परीक्षा उत्तीर्ण की और म्योर सेंट्रल कॉलेज से एफ.ए. की। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मदनमोहन को कभी-कभी फ़ीस के भी लाले पड़ जाते थे। इस आर्थिक विपन्नता के कारण बी.ए. करने के बाद ही मालवीयजी ने एक सरकारी विद्यालय में 40 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापकी शुरू कर दी।

अध्यापन के साथ जब कभी अवसर मिलता वे किसी पत्र इत्यादि के लिये लेखादि लिखते। 1885 ई. में वे एक स्कूल में अध्यापक हो गये, परन्तु शीघ्र ही वक़ालत का पेशा अपना कर 1893 ई. में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वक़ील के रूप में अपना नाम दर्ज करा लिया। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी प्रवेश किया और 1885 तथा 1907 ई. के बीच तीन पत्रों- हिन्दुस्तान, इंडियन यूनियन तथा अभ्युदय का सम्पादन किया।

राजनीतिक जीवन – Madan Mohan Malviya Biography 

शरुआती जीवन से ही मालवीय जी राजनीति में रुचि लेने लगे और 1886 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में सम्मिलित हुए। मालवीय जी दो बार 1909 तथा 1918 ई. में कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। 1902 ई. में मालवीय जी उत्तर प्रदेश ‘इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ के सदस्य और बाद में ‘सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली’ के सदस्य चुने गये।

मालवीय जी ब्रिटिश सरकार के निर्भीक आलोचक थे और उन्होंने पंजाब की दमन नीति की तीव्र आलोचना की, जिसकी चरम परिणति जलियांवाला बाग़ काण्ड में हुई। वे कट्टर हिन्दू थे, परन्तु शुद्धि (हिन्दू धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेने वालों को पुन: हिन्दू बना लेते) तथा अस्पृश्यता निवारण में विश्वास करते थे। वे तीन बार हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गये। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1915 ई. में ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ की स्थापना है। विश्वविद्यालय स्थापना के लिए उन्होंने सारे देश का दौरा करके देशी राजाओं तथा जनता से चंदा की भारी राशि एकत्रित की। अब तक यह भारत में शिक्षा का प्रमुख संस्थान बना हुआ है।

हालांकि शिक्षा और समाज कल्याण के लिए काम करने के लिए मदन मोहन मालवीय ने अपनी न्यायिक प्रेक्टिस सन 1911 में ही छोड़ दी थी लेकिन उन्होंने चौरी-चौरा कांड में दोषी बताए गए 177 लोगों को बचाने के लिए न्यायालय में केस लड़ा, इन सभी को फांसी की सजा सुनाई गई थी। 177 में 156 को कोर्ट ने दोष मुक्त घोषित किया। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा 1920 में शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई और भारतीय इतिहास की दिग्गज हस्तियों जैसे लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू समेत कई अन्य के साथ साइमन कमीशन का विरोध किया।

मदन मोहन मालवीय से गांधी से मिले, तब मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि ‘मालवीय जी मुझे गंगा की धारा जैसे निर्मल और पवित्र लगे, मैंने तय किया कि मैं गंगा की उसी निर्मल धारा में गोता लगाऊंगा’।

30 मई 1932 को मदन मोहन ने घोषणा पत्र जारी कर ‘‘भारतीय  खरीदो/ स्वदेशी खरीदो‘‘ आंदोलन पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश की। जब स्वतंत्रता लगभग मिलने ही वाली थी तब उन्होंने महात्मा गांधी को देश के विभाजन की कीमत पर स्वतंत्रता स्वीकार न करने की राय दी। वह ‘लखनऊ पैक्ट’ के तहत मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल के पक्ष में नहीं थे और 1920 के दशक में खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस की भागीदारी के भी विरोध में थे। वर्ष 1931 में उन्होंने पहले गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें ‘‘ सत्य की ही जीत होगी‘‘ नारे को प्रसिद्ध करने वाले के तौर पर भी जाना जाता है।

मदन मोहन मालवीय ने बी.एच.यू. के कुलपति का पद शिक्षाविद एस. राधाकृष्णन के लिए छोड़ दिया, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। इस दौर में ‘‘हिंदुस्तान टाइम्स‘‘ अपने बुरे दिनों से गुजर रहा था और बंद होने की कगार पर था, तभी मदन मोहन मालवीय इसके तारणहार बनकर सामने आए। उन्होंने दैनिक जीवन में एक समाचार पत्र के महत्व और इसकी भूमिका का अहसास कराया। लाला लाजपत राय और एम. आर. जयकर जैसे राष्ट्रीय नेताओं तथा उद्योगपति जी डी बिरला के आर्थिक सहयोग से उन्होंने समाचार पत्र को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। 1946 तक वह इसके अध्यक्ष पद पर रहे। 1936 में समाचार पत्र का हिंदी संस्करण शुरू हो गया, यह उनके ही प्रयास का परिणाम था। वर्तमान में इस समाचार पत्र का स्वामित्व बिरला परिवार के पास है।

निधन – Madan Mohan Malviya Death

मालवीय जी आजीवन देश सेवा में लगे रहे और 12 नवम्बर, 1946 ई. को 85 वर्ष की उम्र में बनारस में निधन हो गया।

हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान –

लोकमान्य तिलक, राजेन्द्र बाबू, और जवाहरलाल नेहरू के मौलिक या अनुदित साहित्य की तरह मालवीय जी की रचनाओं से हिन्दी की साहित्य निधि भरित नहीं हुई। इसलिए उनके सम्पूर्ण कृतित्व को आँकते हुए यह मानना होगा कि हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में मालवीय जी का योगदान क्रियात्मक अधिक है, रचनात्मक साहित्यकार के रूप में कम है। महामना मालवीय जी अपने युग के प्रधान नेताओं में थे। जिन्होंने हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान को सर्वोच्च स्थान पर प्रस्थापित कराया।

उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया । उनके नाम पर मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्टनोलॉजी, जयपुर और मदन मोहन इंजीनियर कॉलेज गोरखपुर, उत्तरप्रदेश का नामकरण किया गया।

महात्मा गांधी ने उन्हें अपना बड़ा भाई कहा और ‘‘भारत निर्माता‘‘ की संज्ञा दी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें एक ऐसी महान आत्मा कहा, जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता की नींव रखी।


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