विलियम हार्वे की जीवनी | William Harvey Biography in Hindi

Physician William Harvey – विलियम हार्वे एक अंग्रेजी चिकित्सक थे जो शरीर रचना विज्ञान और शरीर विज्ञान में मौलिक योगदान दिया था। उन्होंने  ह्रदय की कार्यप्रणाली सूक्ष्म में अध्ययन किया और रक्त संचार की सर्वप्रथम खोज की। उन्होंने गणना की कि एक मिनट में 72 बार स्पंदन करता है और इसके जरिए 1 मिनट में करीब 1 गैलन और पूरे दिन में करीब 1500 गैलेन रक्त शरीर में पंप करता है।  

विलियम हार्वे की जीवनी | William Harvey Biography In Hindi

विलियम हार्वे का परिचय – William Harvey Biography in Hindi

विलियम हार्वे का जन्म इंग्लैंड के फोकस्टोन शहर में 1 अप्रैल, 1578 ई को हुआ था। उनके पिता का नाम था थॉमस  हार्वे, जो की व्यापारी थे तथा अपने कस्बे का एल्डरमैन, और फिर मेयर भी रह चुके थे। 1588 में 10 साल की उम्र में विलियम कैंटरबेरी के किंग्ज स्कूल में दाखिल हुए।

जब विलियम 15 साल के हुए तो उन्होंने कैंब्रिज के कैन्स कॉलेज में प्रवेश मिल गया। कैम्ब्रिज से वह पैडुआ की प्रसिद्द संस्था में गए, जिसे गैलीलियो और वैसेलियस के संपर्क ने चिकित्साशास्त्रीय तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में जगत-प्रसिद्ध कर दिया था। दुर्भाग्य से वैसेलियस का प्रभाव और नष्टप्राय हो चुका था। शरीर-संसथान के संबंध में उनके अवेन्शनों की अपेक्षा करके गैलेन के वहीं सदियों पुराने विचार इन दिनों वहां पढ़ाए जा रहे थे।

हार्वे पैडुआ में विद्यार्थी बनकर प्रविष्ट हुए। स्वभावत: हार्वे इन सब से असंतुष्ट थे, किंतु उन्होंने अपने संदेशों को व्यक्तिगत रुप से तब तक नहीं प्रकट किया जब तक कि उन्हें मेडिकल डिग्री मिल नहीं गई। इधर, वह प्रैक्टिस के लिए लंदन लौट आए और उधर उसी समय कैंब्रिज विश्वविद्यालय के “कॉलेज ऑफ फिजिशियन” में उन्हें आगे पढ़ने की अनुमति भी मिल गई।

विलियम हार्वे का कैरियर – William Harvey Life History

उनकी प्रवृत्ति जीवित पशु पर शल्य-क्रिया (Operation) करने की थी। वह पशुओं के वक्ष स्थल खोलकर उसके स्पंदन-क्रिया (Flutter-action) का प्रतिपादन किया करते। उन्होंने देखा की हृदय गति करता है और अगले ही क्षण में गतिविहीन हो जाता है, और यह गति और आगति दोनों, इसी क्रम में निरंतर आवृति करती चलती है। उन्होंने जीवित प्राणी के हृदय को हाथ में थामा और अनुभव किया की हृदय एक क्षण कठोर हो जाता है दूसरे ही क्षण कोमलता ग्रहण कर लेता है। जब हृदय में यह कठोरता आती है तो वह आकृति में छोटा हो जाता हैं, और शिथिलता की दशा में उसकी आकृति कुछ बढ़ जाती है। दोनों अवस्था में उसका रंग एक सा नहीं रहता – जब वह सख्त और सुकुड़ा हुआ होता है, तब निस्बतन कुछ ज्यादा पीला होता है।

अनेक प्राणियों में अनेकानेक परीक्षण करके विलियम हार्वे इस परिणाम पर पहुंचे कि हमारा हृदय एक खोखली पेशी की शक्ल का है, और पेशी में जब सक्रियता आती है, कुछ बल आता है तब उसके अंदर का यह रिक्त-स्थान सिकुड़न शुरू कर देता है और खून को बाहर फेंकना शुरु कर देता है और, इसी कारण, उसने कुछ पीलापन आ जाता है। यही पेशी जब शिथिल होती है, उसमें वह तनाव नहीं होता उसकी आंतरिक रिक्तता में बाहर से खून भर जाता है और इसी कारण इसमें कुछ लाली भी आ जाती है। यह हमारा दिल इस प्रकार से एक पंप ही है।

इस मूल्य स्थापना को प्रतिष्ठित करके हार्वे ने अब शरीर में रक्त-संचार की प्रक्रिया का अध्ययन शुरू कर दिया। उसने देखा कि रक्त की धमनिया स्पंदित हो उठती है उस क्षण जब हृदय सिकुड़ रहा होता है। यदि एक सुई चुभो दी जाए तो उनसे खून का एक फवारा-सा छूटने और बंद होने लगेगा। यही नहीं, इन धमनियों को शरीर के विभिन्न स्थानों पर अवरुद्ध करते हुए, वे इस परिणाम पर पहुंचे की स्पंदन की यह प्रक्रिया उनकी कोई अपनी प्रक्रिया नहीं हैं, अपितु सर्वथा हृदय की गति पर ही निर्भर करती है।

अब उनकी रुचि इस प्रश्न के समाधान में जाग उठी की रक्त (Blood) का कितना परिणाम इन धमनियों के माध्यम से शरीर में पहुंचता है। यह अनुमान करके की प्रत्येक स्पंदन में हृदय से 2 औंस रक्त का गमनागमन होता है, और 1 मिनट में वह 72 स्पंदन करता है, बड़ी जल्दी ही उन्होंने यह गणना कर ली की हृदय एक मिनट में एक गैलेन से ज्यादा या शायद दिन में 1500 गैलेन से ज्यादा खून जिस्म में पम्प करता है।

हार्वे के मन में यह सवाल उठा कि यह हो कैसे सकता है, और अपने प्रश्न का उत्तर देते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ऐसा तभी संभव है जब कि रक्त का प्रवाह हृदय से ही आरंभ हो और, सारे शरीर से घुम कर फिर से हृदय में ही वापस लौट आए, अर्थात रक्त-संचार का एक ‘परिक्रमा का मार्ग’ होना चाहिए। हार्वे ने शरीर-रचना की पुन: परीक्षा की, और कुछ परिक्षण और भी किए। शिराओं और धमनियों का, नीली और लाल नसों का, बड़ी सूक्षमता के साथ अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि उनमें खून के बहने की दिशा हमेशा एक ही रहती है। दोनों में ही एक तरह का कुछ volvo कि-सी शक्ल का, एकाधिकार द्वारा, पर्दा-सा लगा होता हैं जो धमनियों में तो रक्त को हृदय से बाहर ही प्रवाहित होने देता है, और शिराओ में हृदय की ओर ही।

इन एकमुखी द्वारों की उपयोगिता भी उन्होंने पशुओं के हृदय पर परीक्षण करके प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दी। एक शिरा को खोलकर उसमें उन्होंने लंबी पतली-सी एक सलाख डाल दी। यह सलाख बड़े आराम के साथ दिल की ओर तो चलती गई किंतु विपरीत दिशा में उसकी यह गति एकदम अवरुद्ध हो गई, क्योंकि,-  बीच में volvo ने जैसे अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। फिर परिक्षण किए गए और फिर परीक्षण किए गए कि कहीं कुछ गलती रह गई हो। और तब कहीं जाकर, रक्त के संचार का सही चित्र उपस्थित हो सका की हृदय से निकलकर, धमनियों के मार्ग से प्रवृत्ति होता हुआ और शिराओं के मार्ग से प्रत्यावृत्त हुआ, खून फिर से दिल में ही वापस आ जाता है।

उन्होंने इस बात का पता लगाया की रक्त ह्रदय से फेफड़ों में जाता है, जहाँ यह शुद्ध होकर वापस ह्रदय में आता है। शरीर में रक्त-संचार का प्रथम अवशेषण 78 पृष्ट का एक निबंध के रूप में 1628 में प्रकाशित हुआ। शीर्षक था ‘On Motion of Heart and Blood in Animals’ इसके द्वारा यह विज्ञान के क्षेत्र के एक बड़े बद्धमूल अंधविश्वास को उखाड़ फेंकने में सफल रहे थे। इसके बाद से प्राणियों के शरीर कार्यों के संबंध में हमारा ज्ञान बहुत ही अधिक स्थिरता के साथ निरंतर आगे ही आगे बढ़ता आया है।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार एक अरब डाक्टर इब्न-अल-नफीस (Ibne-Al-Naffis , 1205-1288) ने भी यही खोज पहले ही कर ली थी। परन्तु इसका श्रेय विलियम हार्वे को ही जाता है। हार्वे 1628 में, राजा जेम्स प्रथम और उनके उत्तराधिकारी राजा चार्ल्स प्रथम के चिकित्सक नियुक्त हुए। हार्वे को गुस्सा बहुत जल्दी आता था और वह हमेशा एक खंजर रखते थे। 1628 में उन्हें नाइट की उपाधि मिली।

उनका विवाह सुश्री ब्राउन के साथ हुआ था, जो कि 1604 में रानी एलिजाबेथ के चिकित्सक की पुत्री थी। 3 जून 1657, को इंग्लैंड में इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।


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