त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा | Tripura Sundari Temple History in Hindi

Tripura Sundari Temple / त्रिपुर सुंदरी मंदिर’ त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 55 किमी दूर उदयपुर में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। माँ त्रिपुर सुंदरी (माँ काली) को समर्पित इस मंदिर को ‘माताबाड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर माँ शक्ति के पावन 51 शक्तिपीठों में से एक हैं।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा | Tripura Sundari Temple History in Hindi

त्रिपुर सुंदरी मंदिर की जानकारी – Tripura Sundari Temple, Tripura in Hindi 

माना जाता है कि सती का दाहिना पैर कटकर यहां गिरा। हिंदू पौराणिक कथा अनुसार सती की मृत्यु से दुखी भगवान शिव ने उनके मृतक शरीर को अपने कंधो पर उठया और इतनी उग्रता से तांडव नृत्य करने लगे कि सारे देवता भयभीत हो गए। भगवान शिव को रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने सती के शरीर को टुकडों में काटा जो भारत, पाकिस्तान, बर्मा और नेपाल में गिर गएँ।

पौराणिक कथा के अनुसार, इस स्थान पर माता सती के सीधे पैर के अंगुलियों के निशान आज भी मौजूद है। यह मंदिर राज्य के प्रमुख पयर्टन स्थलों में से एक है। हजारों की संख्या में भक्त प्रतिदिन मंदिर में माता के दर्शनों के लिए आते हैं। इस मंदिर में माँ काली के “सोरोशी” रुप की पूजा की जाती है। मंदिर का स्वरुप कछुआ या कुर्मा के आकार जैसा दिखता है और इसलिए इसे “कुर्मा पीठ” कहते हैं।

दिवाली के दौरान माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर (Tripura Sundari Mandir) में भव्‍य स्तर पर दीवाली मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या लोग इस मेले में सम्मिलित होते हैं। राजमाला के अनुसार, मंदिर का निर्माण करने के पश्चात् मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित की गई थी। लेकिन एक रात महाराजा धन्य माणिक्य के सपने में महा माया आई और उससे कहा कि वह उनकी मूर्ति को चित्तौंग से इस स्थान पर रख दें। इसके बाद माता त्रिपुरा सुंदरी की स्थापना इस मंदिर में कर दी गई।

मंदिर का इतिहास – Tripura Sundari Temple History in Hindi

इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य देबबर्मा ने सन् 1501 में करवाया था। मंदिर परिसर की आकृति कूर्म (कछुआ) के समान होने के कारण इस मंदिर को ‘कूर्म पीठ’ भी कहा जाता है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के शंक्वाकार शिखर वाले चौकोर झोपड़ीनुमा गर्भगृह में माँ काली की ‘षोडशी’ के रूप में एक ही जैसी दिखने वाली दो मूर्तियाँ स्थापित हैं – एक 5 फ़ीट ऊँची और दूसरी 3 फ़ीट ऊँची। इनमें से बड़ी प्रतिमा को ‘त्रिपुर सुंदरी’ और छोटी प्रतिमा को ‘छोटी माँ’ के नाम से पूजा जाता है। कहा जाता है कि ‘छोटी माँ’ की प्रतिमा को महाराज अपने साथ रणभूमि में भी लेकर जाते थे।

झोपडे के आकार की बनावट और शंक्वाकार की छत के कारण मंदिर की निर्माण शैली बंगाली वास्तुकला से मिलती है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की पूर्वी दिशा में कल्याण सागर झील स्थित है।


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