त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर का इतिहास | Trimbakeshwar Temple History Hindi

Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple / त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक शहर से तीस किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित है। इसे त्रयम्बक ज्योतिर्लिंग, त्र्यम्बकेश्वर शिव मन्दिर भी कहते है। यह एक प्राचीन मंदिर हैं। गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। यह मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिन्हें भारत में सबसे अधिक पूजा जाता है। आइये जाने त्र्यम्बकेश्वर मंदिर का इतिहास और जानकारी (Trimbakeshwar Mandir ka Itihaas aur Information ..

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर का इतिहास | Trimbakeshwar Temple History

Contents

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग की जानकारी – Trimbakeshwar Jyotirling Mandir Information in Hindi

नाम त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर
देवता शिव
सम्बद्धता हिंदू धर्म
अवस्थिति त्रयंबक, नासिक, महाराष्ट्र
त्यौहार महाशिवरात्रि

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग हिन्दुओं के पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक हैं। इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था यानी इसे किसी ने स्थापित नहीं किया था। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिगों में 10वें नंबर पर आता है। यह मंदिर अपनी भव्यता और आर्कषण वजह से पूरे भारत में प्रसिद्ध है। ये मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर का इतिहास – Trimbakeshwar Temple History in Hindi

त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। एक कथा के अनुसार निर्माण से पहले पेशवा ने एक शर्त लगाई थी कि ज्योतिर्लिंग में लगा पत्थर अंदर से खोखला है या नहीं। पत्थर खोखला साबित हुआ और इस तरह शर्त हारने पर पेशवा ने वहां मंदिर पुनर्निर्माण कराया। इस मंदिर में भगवन शिव को विश्व प्रसिद्ध नासक डायमंड से बनाया गया। हालाँकि मंदिर को तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध में अंग्रेजों ने लूट लिया था। लूटा गया हीरा अभी भी ग्रीनविच, कनेक्टिकट, यूएसए के ट्रकिंग फर्म के कार्यकारी एडवर्ड जे हैंड के पास है।

इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।

यहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग का प्रत्यक्ष दर्शन स्त्रियों के लिए निषिद्ध है, अत: वे केवल भगवान के मुकुट का दर्शन करती हैं। त्र्यम्बकेश्वर-मन्दिर में सर्वसामान्य लोगों का भी प्रवेश न होकर, जो द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) हैं तथा भजन-पूजन करते हैं और पवित्रता रखते हैं, वे ही लोग मन्दिर के अन्दर प्रवेश कर पाते हैं। इनसे अतिरिक्त लोगों को बाहर से ही मन्दिर का दर्शन करना पड़ता है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर – Trimbakeshwar Temple Architecture

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर है और साथ ही भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जहाँ हिन्दुओ की वंशावली का पंजीकरण भी किया जाता है। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप असस्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवान की भी बड़ी महिमा हैं।

मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं इसमें आभूषित मुकुट चढ़ा हैं। कहा जाता है की यह मुकुट पांडवो के ज़माने से चढ़ाया हुआ है और इस मुकुट में हीरे, जवाहरात और बहुत से कीमती पत्थर भी जड़े हुए है। साथ ही त्र्यंबकेश्‍वर ज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

मंदिर के गर्भगृह के सामने एक हॉल है, जिसे मंडप कहा जाता है। उस हॉल में तीन प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के खंभों को फूलों, हिंदू देवताओं, मनुष्यों और जानवरों के डिजाइनों से उकेरा गया है। मगर त्र्यंबकेश्वर मंदिर की वास्तुकला काफी जटिल और अच्छी तरह से एक साथ रखी गई है।

शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद ‘रामकुण्ड’ और ‘लष्मणकुण्ड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के पास ही तीन और पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी यां गंगा का मंदिर है। मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि पास के एक कुंड में जमा होता है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है – Trimbakeshwar Temple Story in Hindi

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की।

उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- ‘प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।’ उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।

अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।

सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- ‘गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।’ अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।

तब उन्होंने कहा- ‘गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद ‘ब्रह्मगिरी’ की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- ‘भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।’ भगवान्‌ शिव ने कहा- ‘गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।’

इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।’ बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।

त्र्यम्बकेश्वर दर्शन और पूजा का समय – Trimbakeshwar Darshan And Puja Timing In Hindi

त्र्यम्बकेश्वर मंदिर सप्ताह के प्रत्येक दिन खुला होता है। मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए सुबह 5 बजे खुलता है और रात्रि में 9 बजे बंद हो जाता है। मंदिर में शिव लिंग के सामान्य दर्शन 5 मीटर दूरी से किए जाते हैं यदि कोई विशेष पूजा करना चाहता है तो उन्हें गर्भ गृह में जाने की अनुमति होती है तथा वह लिंग को स्पर्श भी कर सकते हैं।

Trimbakeshwar Temple Bhagwan Shiv

इस मंदिर में पूरे दिन विभिन्न तरह की पूजा और आरती होती रहती है।

  • मंगल आरती का समय प्रातः 5: 30 से 6: 00 तक का होता है।
  • अंतरालय अभिषेक ( मंदिर के अंदर) प्रतिदिन प्रातः 6: 00 बजे से प्रातः 7: 00 बजे तक होता है।
  • महामृत्युंजय पूजा सुबह 7 बजे से 9 बजे के बीच होती है। यह पूजा पुरानी बीमारियों से छुटकारा पाने और एक स्वस्थ जीवन के लिए की जाती है। इसके आलावा विशेष पूजा जैसे कि रुद्राभिषेक आदि
  • मध्यान्ह पूजा 1: 00 बजे दोपहर से 1: 30 बजे दोपहर तक होती है।
  • संध्या पूजा 7: 00 बजे से रात्रि 9: 00 बजे तक होती है।
  • यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर लोग काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए विशेष पूजा कराते हैं।
  • इस पूजा में मंदिर में ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का पाठ किया जाता है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर त्यौहार – Trimbakeshwar Temple Festival in Hindi

महाकुम्भ का आयोजन –

देश में लगने वाले विश्व के प्रसिद्ध चार महाकुम्भ मेलों में से एक महाकुम्भ का मेला यहीं लगता है। यहाँ प्रत्येक बारहवें वर्ष जब सिंह राशि पर बृहस्पति का पदार्पण होता है और सूर्य नारायण भी सिंह राशि पर ही स्थित होते हैं, तब महाकुम्भ पर्व का स्नान, मेला आदि धार्मिक कृत्यों का समारोह होता है। उन दिनों गोदावरी गंगा में स्नान का आध्यात्मिक पुण्य बताया गया है।

कुंभ मेला

कुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले में से एक है। भारत में 4 जगहों पर यह मेला लगता हैं, इनमे से एक जगह यह भी हैं। हर 12 साल में एक बार आयोजित यह त्यौहार, में लाखों तीर्थयात्रि आते है। उसमे गोदावरी में पवित्र डुबकी लगा आते हैं।

रथ पूर्णिमा

यहां जनवरी-फरवरी में आयोजित रथ पूर्णिमा एक ऐसा त्योहार है, जहां पूरे शहर में रथ में भगवान त्र्यंबकेश्वर की पांच मुखी मूर्ति या पंचमुखी मूर्ति की परेड की जाती है।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नाशिक जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Trimbakeshwar Jyotirlinga Nashik In Hindi

वैसे तो श्री त्रयंबकेश्वर (Trimbakeshwar Shiva Temple Visiting) में श्रद्धालुओं का आना-जाना साल के बारहों महीने लगा रहता। लेकिन, अगर आप यहां अपने परिवार के छोटे बच्चों और बड़े बुजुर्गों के साथ जाना चाहते हैं तो ध्यान रखना होगा कि गर्मियों के मौसम में यहां जाने से बचें। इसलिए विशेषकर अक्टूबर से मार्च के बीच यहां की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय हो सकता है। क्योंकि इन महीनों में सर्दियां हल्की होती हैं। हालाँकि यह यात्रियों के लिए पीक सीजन है। इस दौरान यहां सभी चीजें महंगी होती हैं और भीड़ भी बहुत ज्यादा होती है। हालांकि, यदि आपके पास कम बजट है, तो मानसून का मौसम आपके लिए उपयुक्त है। आप जुलाई से सितंबर के बीच यहां आ सकते हैं।

Tips For Visiting Trimbakeshwar Temple in Hindi

  • त्र्यम्बकेश्वर मंदिर में दर्शन करने से पहले मंदिर के सभी नियमो को वहाँ पूछ ले।
  • त्र्यंबकेश्वर मंदिर में ज्यादातर समय काफी भीड़ रहती है। इसलिए आपको कोई बीमारी हैं तो ऐसे टाइम विजिट करे, जब थोड़ा खाली हो।
  • मंदिर में जाने से पहले अपने सामान को सुरक्षित कर ले, क्यूंकि भीड़ के कारण कोई परेशानी न हो।
  • मंदिर प्रांगण में आपको कूड़ा नहीं फेकना चाहिए।

अगर आपकी ट्रेन, नासिक रोड रेलवे स्टेशन पर रात के समय पहुंचती है तो आप, यहां से आगे की यात्रा के लिए बाहर ना जाकर, बल्किस्टेशन पर ही रात को ठहरने का प्रयास करें और सुबह होने पर जाएँ। क्योंकि, नासिक शहर में खास तौर पर बाहर से आने वाले मुसाफिरों या फिर अन्य किसी भी व्यक्ति या किसी भी अनजान व्यक्तियों के साथ अक्सर लूटपाट की कुछ ज्यादा ही घटनाएं होती देखी गई हैं।

त्र्यंबकेश्वर कैसे पहुंचे – How To Reach Trimbakeshwar Temple 

त्र्यंबकेश्वर गाँव नासिक से काफी नजदीक है। नासिक पूरे देश से रेल, सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप नासिक पहुँचकर वहाँ से त्र्यंबक के लिए बस, ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं। टैक्सी या ऑटो लेते समय मोल-भाव का ध्यान रखें। 1866 ईस्वी में त्रिंबकेश्वर में नगर निगम की स्थापना की गयी। पिछले 120 सालो से नगर निगम यात्रियों और श्रद्धालुओ की देख-रेख कर रहा है। शहर के मुख्य रास्ते भी साफ़-सुथरे है।

ट्रेन से त्र्यंबकेश्वर कैसे पहुंचें – How To Reach Trimbakeshwar Temple By Train in Hindi

त्र्यंबकेश्वर में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। अगर आप ट्रेन के माध्यम से श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Shiva Temple) के दर्शन करने के लिए आते हैं तो आपको सबसे पहले नासिक के नासिक रोड रेलवे स्टेशन पर पहुंचना होगा। नासिक तक पहुंचने के लिए देश के किसी भी कोने से रेल द्वारा आने-जाने की अच्छी सुविधा उपलब्ध है। नासिक में स्थित नासिक रोड रेलवे स्टेशन से त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तक की दूरी करीब 30 किलोमीटर की रह जाती है। इसके बाद यहां से टैक्सी लेकर त्र्यंबकेश्वर जा सकते हैं।

हवाई जहाज से त्रिम्बकेश्वर कैसे पहुंचें – How To Reach Trimbakeshwar Temple By Flight In Hindi

त्र्यंबकेश्वर में अपना कोई हवाई अड्डा (Airport) नहीं है और निकटतम हवाई अड्डा नासिक है। गांधीनगर हवाई अड्डा मंदिर से 37 किमी दूर है। यह मुंबई से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। नासिक हवाई अड्डे से आप त्रयंबकेश्वर के लिए आप टैक्सी किराए पर लेकर यहां पहुंच सकते हैं। इसके आलावा मुंबई का छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा है, जो यहां से 175 किलोमीटर की दूरी पर है।

सड़क मार्ग से त्र्यंबकेश्वर कैसे पहुंचें – How To Reach Trimbakeshwar Temple By Road in Hindi

त्र्यंबकेश्वर मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह नासिक, नासिक रोड, पूणे और मुंबई से जुड़ा हुआ है। आप इन शहरों से राज्य परिवहन की बसों, लक्जरी बसों या फिर टैक्सी से त्रयंबकेश्वर पहुंच सकते हैं। अगर आप यहां मुंबई से आ रहे हैं तो यह 175 किलोमीटर की दूरी पर पड़ेगा।

मंदिर के पास घूमने की खास जगह – Places To Visit Near Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple

1). श्री निलंबिका/दत्तात्रय, माताम्बा मंदिर –

यह मंदिर नील पर्वत के शीर्ष पर बना हुआ है। कहा जाता है की परशुराम की तपस्या देखने के लिए सभी देवियाँ (माताम्बा, रेणुका और मनान्म्बा) यहाँ आयी थी। तपस्चर्या के बाद परशुराम ने तीनो देवियों से प्रार्थना की थी के वे वही रहे और देवियों के रहने के लिए ही मंदिर की स्थापना की गयी थी।

भगवान दत्तात्रय (श्रीपाद श्रीवल्लभ) यहाँ कुछ वर्षो तक रहे, साथ ही दत्तात्रय मंदिर के पीछे दायी तरफ नीलकंठेश्वर महादेव प्राचीन मंदिर और नील पर्वत के तल पर अन्नपूर्णा आश्रम, रेणूकादेवी, खंडोबा मंदिर भी बना हुआ है। शिव मंदिर से 1 किलोमीटर की दुरी पर अखिल भारतीय श्री स्वामी समर्थ गुरुपीठ, श्री स्वामी समर्थ महाराज का त्रिंबकेश्वर मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर वास्तु शास्त्र के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है।

2). कालाराम मंदिर

कालाराम मंदिर नाशिक जिले में पंचवटी पर्यटन स्थल के पास स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म से संबधित एक प्राचीन मंदिर हैं। मंदिर में स्थित भगवान राम की मूर्ती काले पाषाण की बनी हुई हैं इसलिए मंदिर का नाम काला राम मंदिर रखा गया हैं। कालाराम मंदिर नाशिक शहर के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक हैं जो भक्तो की आस्था का केंद्र बना हुआ हैं।

3). पांडवलेनी गुफाएं

पांडवलेनी गुफाएं, नासिक में स्थित है। यह वास्तुकला प्रेमियों के लिए पसंदीदा जगह हैं। त्रिवाष्मी हिल्स के पठार पर बसे, पांडवलेनी गुफाएं 20 से अधिक सदियों पुरानी है। गुफाओं की संख्या चौबीस है और जैन राजाओं द्वारा निर्मित मानी जाती है।

4). मुक्तिधाम मंदिर

मुक्तिधाम मंदिर नासिक शहर से 8 किमी दूर स्थित है। मंदिर खूबसूरती से शुद्ध सफेद रूप में बनाया गया है। यह श्री जयराम भाई बाईटको द्वारा निर्मित किया गया है। पवित्र मंदिर की वास्तुकला अलग और अपरंपरागत है। इसकी दीवारों पर भगवद गीता के 18 अध्याय है। यह मंदिर भारत में बारह ज्योतिर्लिंगों की सटीक प्रतिलिपि है।

5). इगतपुरी

इगतपुरी अपने बौद्ध ध्यान विपश्यना केन्द्र और वड़ापाव के लिए प्रसिद्ध है। इगतपुरी (Igatpuri) महाराष्ट्र के नाशिक ज़िले में स्थित है। यह एक पर्वतीय स्थल और नगर परिषद है। यह पश्चिमी घाट पर स्थित है।

6). दूधसागर झरना, नासिक

दूधसागर झरना महाराष्ट्र में सबसे अच्छे झरनों में से एक है। नासिक के पास सोमेश्वर में स्थित यह झरना 10 मीटर की गहराई से गिरता हुआ पनोर्मिक असली दृश्य देता है। एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट हैं।

FAQ

Q . त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है?

त्र्यंबकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है।

Q . त्रंबकेश्वर मंदिर कितने साल पुराना है?

यह मंदिर बहुत प्राचीन हैं, जिसका पुर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने लगभग (1740-1760) के आसपास पुराने मंदिर के स्थान पर कराया था।

Q . त्रिम्बकेश्वर शिव मंदिर को किसने बनवाया था?

त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर का पुनः र्निर्माण पेशवा बालाजी ने करवाया था।

Q . त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग की क्या विशेषता है?

त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग की विशेषता है की उसमे में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश विराजित हैं।

Q . नासिक में कौन कौन से मंदिर हैं?

रामकुंड, सोमेश्‍वर मंदिर, सीता गुफा, सप्‍तश्रृंगी देवी मंदिर

Q . नासिक में कितने ज्योतिर्लिंग है?

शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है नासिक में स्थित है।

Q . त्र्यंबकेश्वर क्यों प्रसिद्ध है?

त्र्यंबकेश्वर को भारत का सबसे पवित्र शहर और भगवान गणेश का जन्मस्थान है।

Q . क्या है त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पीछे की कहानी?

ज्यर्तिलिंग से गौतम ऋषि और गंगा नदी से प्रसिद्ध कथा जुड़ी हुई है।

Q . त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास कौन सी नदी है?

गौतमी नदी


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