उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित टपकेश्वर मंदिर एक लोकप्रिय गुफा मंदिर हैं जो भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में एक शिवलिंग है और गुफा की छत से पानी स्वाभाविक रूप से टपकता रहता है। कहा जाता है कि यहाँ पर बड़ी से बड़ी बिमारियों का ईलाज शिव की कृपा से हो जाता है। शिव जिसे हम जीवन लेने वाला समझते हैं वही शिव जीवन देता भी है। यहाँ पर शिव आपको साक्षात् दर्शन दे सकते हैं।
टपकेश्वर मंदिर की जानकारी – Information About Tapkeshwar Temple in Hindi
टपकेश्वर मंदिर (Tapkeshwar Temple) देहरादून शहर से 5.5 किमी दूर स्थित एक प्रवासी नदी के तट पर स्थित है। महर्षि द्रोण और अश्वत्थामा की तपस्या और शिव की पाठशाला की गवाह रही यह नदी भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस मंदिर की जिक्र महाभारत में भी है। इस शिवलिंग की सबसे रोचक बात यह है कि द्वापर युग में शिवलिंग पर दूध की धाराएं गिरती थी। टपक एक हिन्दी शब्द है, जिसका मतलब है बूंद-बूंद गिरना। नाम के अनुरूप कहा जाता है कि मंदिर में एक शिवलिंग है और गुफा की छत से पानी स्वाभाविक रूप से टपकता रहता है।
शिवरात्रि के पर्व पर आयोजित मेले में लोग बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं और यहां स्थित शिव मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। मंदिर के कई रहस्य हैं और मंदिर के निर्माण के ऊपर भी कई तरह की बातें होती रहती हैं। कोई कहता है कि यहाँ मौजूद शिवलिंग स्वयं से प्रकट हुआ है तो कई लोग बताते हैं कि पूरा मंदिर ही स्वर्ग से उतरा है। मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया इसके सिद्ध प्रमाण नहीं है।
मंदिर में शिवलिंग के ऊपर चट्टान से पानी बूंद-बूंद कर खुद गिरता रहता है। पहले यह शिवलिंग काफी बड़ी गुफा के अन्दर था लेकिन समय के साथ-साथ गुफा खत्म हो रही है। मंदिर की शक्ति के बारें में आज भी लोग बताते हैं कि यहाँ अगर कोई घंटा-आधा घंटा बैठकर शिव भगवान से प्रार्थना करता है तो उसकी हर जायज इच्छा पूरी हो जाती है।
इस मंदिर में इष्टदेव भीटपकेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते है, जो भगवान शिव है। यहां दोशिवलिंग हैं। दोनों ही स्वयं प्रकट हुए हैं। आस-पास में संतोषी माँ और श्री हनुमान के लिए मंदिर हैं। मंदिर के पूरे क्षेत्र में एक वन है और आगंतुकों को मंदिर तक पहुंचने के लिए अंतिम 1 किलोमीटर चलना पड़ता है। मुख्य शिवलिंग एक गुफा के अंदर स्थित है।
मंदिर से जुड़े पौराणिक कथा और इतिहास – Tapkeshwar Temple History & Story in Hindi
एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस गुफा मंदिर के माध्यम से भगवान शिव दूध का निर्माण किया था, जो गुरु द्रोर्णाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को दिया था। यह कथा महाकाव्य महाभारत में लिखी है।
द्रोणनगरी में स्थित टपकेश्वर स्वयंभू शिवलिंग महर्षि द्रोणाचार्य की सिर्फ तपस्थली नहीं रही, बल्कि यहीं पर गुरु द्रोण ने भगवान शिव से शिक्षा भी ग्रहण की थी। द्वापर युग में टपकेश्वर को तपेश्वर और दूधेश्वर के नाम से भी जाना जाता था।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, यह स्थल गुरु द्रोणाचार्य की साधना स्थली बोला जाता है। ऐसा बोला जाता है कि द्रोणाचार्य ने ही यहाँ शिवलिंग को सबसे पहले खोजा था।
भारत भ्रमण के दौरान गुरु द्रोणाचार्य इस जगह पर आए थे और उनकी मुलाकात एक महर्षि से हुई थी। द्रोणाचार्य ने महर्षि से भगवान शिव के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की। इस अभिलाषा को पूरा करने के लिए महर्षि ने द्रोणाचार्य को ऋषिकेश जाने के लिए कहा था। जब वह यहाँ पहुंचे तो इनको यहाँ शिवलिंग दिखा था।
कहा जाता है कि पहाड़ी गुफा में स्थित शिवलिंग स्थापित नहीं किया गया बल्कि स्वयं प्रकट हुआ है। इसलिए इसे स्वयंभू कहा जाता है। यहां देव से लेकर गंधर्व तक भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। पास ही कलकल बहती टोंस नदी जो द्वापर युग में तमसा नदी के नाम से प्रसिद्ध था, में जल क्रीडा करते थे।
कैसे पहुंचे
यह मंदिर शहर के केंद्र से ख़रीद 5 किमी पर है और हरिद्वार-देहरादून रोड पर एक एक घंटे की दूरी पर है। यह देहरादून मसूरी राजमार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। कनॉट प्लेस से शेयर ऑटो लेकर भी इस मंदिर तक जा सकते हैं। निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून है। अन्य प्रमुख रेल स्थानक ज्वालापुर और हरिद्वार हैं।