सोमनाथ ज्योतिर्लिंगों मंदिर का इतिहास, जानकारी | Somnath Temple

Somnath Temple / सोमनाथ मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। यह मंदिर गुजरात (सौराष्ट्र) के काठियावाड़ क्षेत्र के अन्तर्गत प्रभास में विराजमान हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है। सोमनाथ का अर्थ “सोम के भगवान” से है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंगों मंदिर का इतिहास, जानकारी | Somnath Templeसोमनाथ ज्योतिर्लिंगों मंदिर की जानकारी – Somnath Jyotirlinga Temple Information in Hindi

सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। यह मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरो में एक हैं। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को बींध डाला था।

सोमनाथ में पाये जाने वाले शिवलिंग को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, यह शिवजी का मुख्य स्थान भी है। इस शिवलिंग के यहाँ स्थापित होने की बहोत सी पौराणिक कथाएँ है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वही की गयी है जहाँ भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए थे। वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंग को माना जाता है लेकिन इनमे से 12 ज्योतिर्लिंग को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।

यहां भूमि के नीचे सोमनाथ लिंग की स्थापना की गई है। भू-गर्भ में होने के कारण यहाँ प्रकाश का अभाव रहता है। इस मन्दिर में पार्वती, सरस्वती देवी, लक्ष्मी, गंगा और नन्दी की भी मूर्तियाँ स्थापित हैं। भूमि के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर मूर्ति है। मन्दिर के परिसर में गणेशजी का मन्दिर है और उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति स्थापित की गई है। प्रभावनगर में अहल्याबाई मन्दिर के पास ही महाकाली का मन्दिर है। इसी प्रकार गणेशजी, भद्रकाली तथा भगवान विष्णु का मन्दिर नगर में विद्यमान है। नगर के द्वार के पास गौरीकुण्ड नामक सरोवर है। सरोवर के पास ही एक प्राचीन शिवलिंग है।

प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आये है। कहा जाता है की चंद्र भगवान सोम ने यहाँ अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यही सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था। परिणामस्वरूप चन्द्रमा का वर्धन होता गया और वो घटता गया। इसके शहर प्रभास का अर्थ रौनक से है और साथ ही प्राचीन परम्पराओ के अनुसार इसे सोमेश्वर और सोमनाथ नाम से भी जाना जाता है।

सोमनाथ भगवान की पूजा और उपासना करने से उपासक भक्त के क्षय तथा कोढ़ आदि रोग सर्वथा नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है। यशस्वी चन्द्रमा के कारण ही सोमेश्वर भगवान शिव इस भूतल को परम पवित्र करते हुए प्रभास क्षेत्र में विराजते हैं। उस प्रभास क्षेत्र में सभी देवताओं ने मिलकर एक सोमकुण्ड की भी स्थापना की है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड में शिव तथा ब्रह्मा का सदा निवास रहते हैं। इस पृथ्वी पर यह चन्द्रकुण्ड मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में प्रसिद्ध है। इसे ‘पापनाशक-तीर्थ’ भी कहते हैं। जो मनुष्य इस चन्द्रकुण्ड में स्नान करता है, वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। इस कुण्ड में बिना नागा किये छः माह तक स्नान करने से क्षय आदि दुःसाध्य और असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं। मुनष्य जिस किसी भी भावना या इच्छा से इस परम पवित्र और उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, तो वह बिना संशय ही उसे प्राप्त कर लेता है।

सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple History in Hindi

सोमनाथ मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

सर्वप्रथम एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्व में था जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया।

सन् 1024 में महमूद ग़ज़नवी ने मंदिर नष्ट कर दिया था। मूर्ति भंजक होने के कारण तथा सोने-चाँदी को लूटने के लिए उसने मन्दिर में तोड़-फोड़ की थी। मन्दिर के हीरे-जवाहरातों को लूट कर वह अपने देश ग़ज़नी लेकर चला गया। उक्त सोमनाथ मन्दिर का भग्नावशेष आज भी समुद्र के किनारे विद्यमान है। इतिहास के अनुसार बताया जाता है कि जब महमूद ग़ज़नवी उस शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया, तब उसने उसके अगल-बगल में भीषण आग लगवा दी। सोमनाथ मन्दिर में नीलमणि के छप्पन खम्भे लगे हुए थे। उन खम्भों में हीरे-मोती तथा विविध प्रकार के रत्न जड़े हुए थे। उन बहुमूल्य रत्नों को लुटेरों ने लूट लिया और मन्दिर को भी नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।

इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

इसके बाद सोमनाथ मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है।

शिव पुराण के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा – Somnath Temple Story

कथा के अनुसार सोम अर्थात् चंद्र ने, दक्षप्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था। चन्द्रमा की उन सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी उन्हें अतिशय प्रिय थी, जिसको वे विशेष आदर तथा प्रेम करते थे। अन्याय को देखकर क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज (काँति, चमक) क्षीण होता रहेगा। फलस्वरूप हर दूसरे दिन चंद्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दु:खी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। अंततः शिव प्रसन्न हुए और सोम-चंद्र के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव का स्थापन यहाँ करवाकर उनका नामकरण हुआ “सोमनाथ”।

कैसे पहुँचें –

सोमनाथ का मन्दिर जिस स्थान पर स्थित है, उसे वेरावल, सोमनाथपाटण, प्रभास और प्रभासपाटण आदि नामों से जाना जाता है। सौराष्ट्र के पश्चिमी रेलवे स्टेशन की राजकोट-वेरीवल तथा खिजडिया वेरावल लाइनें हैं। इन दोनों ओर से वेरावल पहुँचा जाता है। वेरावल रेलवे स्टेशन से प्रभासपाटण पाँच किलोमीटर की दूरी पर है। स्टेशन से बस, टैक्सी आदि के द्वारा प्रभासपाटण पहुँचा जा सकता है। यह मंदिर रोज़ सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहाँ रोज़ तीन आरतियाँ होती है, सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और श्याम 7 बजे।

तीर्थ स्थान और मंदिर –

मंदिर नं .1 के प्रांगण में हनुमानजी का मंदिर, पेडी विनायक, नवदुर्ग खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्ललिग, अहिलीेश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर नं 6 के समीप भैरवेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमी महादेव मंदिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर नं 12 की नजदीक और नं 15 के समीप राममंदिर स्थित है नागरिकों की इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत कुल 42 मंदिर नगर लगभग दस किलोमीटर मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं।


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