Sher Shah Suri / शेरशाह सूरी का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। शेरशाह, सूर साम्राज्य का संस्थापक था। इतिहासकारों का कहना है कि अपने समय में अत्यंत दूरदर्शी और विशिष्ट सूझबूझ का आदमी था। इसकी विशेषता इसलिए अधिक उल्लेखनीय है कि वह एक साधारण जागीदार का उपेक्षित बालक था। उसने अपनी वीरता, अदम्य साहस और परिश्रम के बल पर मुगलो को खदेड़ कर दिल्ली के सिंहासन पर क़ब्ज़ा किया था।
शेर शाह सूरी का प्रारम्भिक जीवन – Sher Shah Suri ka Jeevan Parichay
शेरशाह सूरी के जन्म तिथि और जन्म स्थान के विषय में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों ने इसका जन्म सन् 1485-86, हिसार, फ़िरोजा हरियाणा में और कुछ सन् 1472, सासाराम बिहार में बतलाया है। शेर शाह सूरी का वास्तविक नाम ‘फ़रीद ख़ाँ’ था। इसके पिता का नाम हसन खाँ था। शेरशाह को शेर ख़ाँ के नाम से भी जाना जाता है। हसन ख़ाँ के आठ लड़के थे। फ़रीद ख़ाँ और निज़ाम ख़ाँ एक ही अफ़ग़ान माता से पैदा हुए थे। फ़रीद की माँ बड़ी सीधी-सादी, सहनशील और बुद्धिमान थी। फ़रीद के पिता ने इस विवाहिता पत्नी के अतिरिक्त अन्य तीन दासियों को हरम में रख लिया था। बाद में इन्हें पत्नी का स्थान प्राप्त हुआ।
फ़रीद ख़ाँ बचपन से ही बड़े हौसले वाला इंसान था। उनका उपनाम सूरी उनके प्राचीन ग्राम सुर से लिया गया था। जब वे युवावस्था में थे तभी उन्होंने एक शेर का शिकार किया था और तबसे उनका नाम शेरशाह रखा गया। उनके दादा इब्राहीम खान सूरी नारनौल के प्रसिद्ध जागीरदार थे और कुछ समय के लिए उन्होंने दिल्ली के शासक का भी प्रतिनिधित्व भी किया था। आज भी नारनौल में इब्राहीम खान सूरी का स्मारक बना हुआ है। तारीख-खान जहाँ लोदी ने भी इस बात को स्पष्ट किया था। शेरशाह पश्तून सुर समुदाय से संबंध रखते थे (इतिहास में पश्तून अफगानी के नाम से भी जाने जाते थे)। उनके दादा इब्राहीम खान सूरी एक साहसी योद्धा थे।
शेर शाह सूरी का इतिहास – Sher Shah Suri History in Hindi
शेर शाह सूरी अभी बच्चे ही थे की उन्होंने अपने पिता से आग्रह किया कि मुझे अपने मसनदेआली उमर खान के पास ले चलिये और प्रार्थना कीजिये कि वह मुझे मेरे योग्य कोई काम दें। पिता ने पुत्र की बात यह कहकर टाल दी कि अभी तुम बच्चे हो। बड़े होने पर तुम्हें ले चलूंगा। किंतु फ़रीद ने अपनी मां से आग्रह किया और अपने पिता को इस बात के लिए राजी किया। हसन, फ़रीद को उमर खान के पास ले गया। उमर खान ने कहा कि बड़ा होने पर इसे मैं कोई न कोई काम दूंगा किंतु अभी इसे महाबली (इसका दूसरा नाम हनी है) ग्राम का बलहू नामक भाग जागीर के रूप में देता हूँ। फ़रीद ने बड़ी प्रसन्नता से अपनी माँ को इसकी सूचना दी।
बाद में 1522 में ज़माल खान की सेवा में चले गए। पर उनकी माँ को ये पसंद नहीं आया। इसलिये उन्होंने ज़माल खान की सेवा छोड़ दी और बिहार के स्वघोषित स्वतंत्र शासक बहार खान नुहानी के दरबार में चले गए। अपने पिता की मृत्यु के बाद फ़रीद ने अपने पैतृक ज़ागीर पर कब्ज़ा कर लिया। कालान्तर में इसी जागीर के लिए शेरखां तथा उसके सौतेले भाई सुलेमान के मध्य विवाद हुआ।
बहार खान के दरबार मे वो जल्द ही उनके सहायक नियुक्त हो गए और बहार खान के नाबालिग बेटे का शिक्षक और गुरू बन गए। लेकिन कुछ वर्षों में शेरशाह ने बहार खान का समर्थन खो दिया। इसलिये वो 1527-28 में बाबर के शिविर में शामिल हो गए। बहार खान की मौत पर, शेरशाह नाबालिग राजकुमार के संरक्षक और बिहार के राज्यपाल के रूप में लौट आया। बिहार का राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने प्रशासन का पुनर्गठन शुरू किया और बिहार के मान्यता प्राप्त शासक बन गया। 1537 में बंगाल पर एक अचानक हमले में शेरशाह ने उसके बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया हालांकि वो हुमायूँ के बलों के साथ सीधे टकराव से बचता रहा।
अभी तक शेरशाह अपने आप को मुगल सम्राटों का प्रतिनिधि ही बताता था पर उनकी चाहत अब अपना साम्राज्य स्थापित करने की थी। शेरशाह की बढ़ती हुई ताकत को देख आखिरकार मुगल और अफ़ग़ान सेनाओं की जून 1539 में बक्सर के मैदानों पर भिड़ंत हुई। मुगल सेनाओं को भारी हार का सामना करना पड़ा। इस जीत ने शेरशाह का सम्राज्य पूर्व में असम की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में कन्नौज तक बढ़ा दिया। अब अपने साम्राज्य को वैध बनाने के लिये उन्होंने अपने नाम के सिक्कों को चलाने का आदेश दिया। यह मुगल सम्राट हुमायूँ को खुली चुनौती थी।
अगले साल हुमायूँ ने खोये हुये क्षेत्रो पर कब्ज़ा वापिस पाने के लिये शेरशाह की सेना पर फिर हमला किया, इस बार कन्नौज पर। हतोत्साहित और बुरी तरह से प्रशिक्षित हुमायूँ की सेना 17 मई 1540 शेरशाह की सेना से हार गयी। इस हार ने बाबर द्वारा बनाये गये मुगल साम्राज्य का अंत कर दिया और उत्तर भारत पर सूरी साम्राज्य की शुरुआत की जो भारत में दूसरा पठान साम्राज्य था लोधी साम्राज्य के बाद।
जिस समय शेरशाह दिल्ली के सिंहासन पर बैठा, उसके साम्राज्य की सीमायें पश्चिम में कन्नौज से लेकर पूरब में असम की पहाड़ियों एवं चटगाँव तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में झारखण्ड की पहाड़ियों एवं बंगाल की खाड़ी तक फैली हुई थी।
शेरशाह सूरी एक ऐसा व्यक्ति था, जो ज़मीनी स्तर से उठ कर शंहशाह बना। ज़मीनी स्तर का यह शंहशाह अपने अल्प शासनकाल के दौरान ही जनता से जुड़े अधिकांश मुद्दो को हल करने का प्रयास किया। हालांकि शेरशाह सूरी का यह दुर्भाग्य रहा कि उसे भारतवर्ष पर काफ़ी कम समय शासन करने का अवसर मिला। इसके बावजूद उसने राजस्व, प्रशासन, कृषि, परिवहन, संचार व्यवस्था के लिए जो काम किया, जिसका अनुसरण आज का शासक वर्ग भी करता है। शेरशाह सूरी एक शानदार रणनीतिकार, आधुनिक भारतवर्ष के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला महान शासक के रुप में नजर आएगा। जिसने अपने संक्षिप्त शासनकाल में शानदार शासन व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत किया। शेरशाह सूरी ने भारतवर्ष में ऐसे समय में सुढृढ नागरिक एवं सैन्य व्यवस्था स्थापित की जब गुप्त काल के बाद से ही एक मज़बूत राजनीतिक व्यवस्था एवं शासक का अभाव-सा हो गया था। शेरशाह सूरी ने ही सर्वप्रथम अपने शासन काल में आज के भारतीय मुद्रा रुपया को जारी किया। इसीलिए इतिहासकार शेरशाह सूरी को आधुनिक रुपया व्यवस्था का अग्रदूत भी मानते है। मौर्यों के पतन के बाद पटना पुनः प्रान्तीय राजधानी बनी, अतः आधुनिक पटना को शेरशाह द्वारा बसाया माना जाता है।
शेर शाह सूरी के निर्माण कार्य – Sher Shah Suri Hindi me
शेरशाह सूरी ने अपने जीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किए और कई प्रकार के निर्माण कार्य भी करवाए। उसके निर्माण कार्यों में सड़कों, सरायों एवं मस्जिदों आदि का बनाया जाना प्रसिद्ध है। वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने यातायात की उत्तम व्यवस्था की और यात्रियों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का संतोषजनक प्रबंध किया। उसने बंगाल के सोनागाँव से लेकर पंजाब में सिंधु नदी तक, आगरा से राजस्थान और मालवा तक पक्की सड़कें बनवाई थीं। सड़कों के किनारे छायादार एवं फल वाले वृक्ष लगाये गये थे, और जगह-जगह पर सराय, मस्जिद और कुओं का निर्माण कराया गया था। ब्रजमंडल के चौमुहाँ गाँव की सराय और छाता गाँव की सराय का भीतरी भाग उसी के द्वारा निर्मित हैं। दिल्ली में उसने ‘शहर पनाह’ बनवाया था, जो आज वहाँ का ‘लाल दरवाज़ा’ है। दिल्ली का ‘पुराना क़िला’ भी उसी के द्वारा बनवाया माना जाता है।
हिन्दू मित्रता की नीति – Sher shah suri ki prashasnik vyavastha
दिल्ली के सुल्तानों की हिन्दू विरोधी नीति के ख़िलाफ़ उसने हिन्दुओं से मित्रता की नीति अपनायी। जिससे उसे अपनी शासन व्यवस्था सृदृढ़ करने में सहायता मिली। उसका दीवान और सेनापति एक हिन्दू सरदार था, जिसका नाम हेमू (हेमचंद्र) था। उसकी सेना में हिन्दू वीरों की संख्या बहुत थी। उसने अपने राज्य में शांति स्थापित कर जनता को सुखी और समृद्ध बनाने के प्रयास किये। उसने यात्रियों और व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया। लगान और मालगुज़ारी वसूल करने की संतोषजनक व्यवस्था की। शेरशाह सूरी के फ़रमान फ़ारसी भाषा के साथ नागरी अक्षरों में भी होते थे। यहाँ एक बिन्दु स्मरणीय यह है कि शेरशाह ने अफ़ग़ानों के दबाब के कारण हिन्दुओं से जज़िया कर को समाप्त नहीं किया था।
शेर शाह सूरी का निधन – Sher shah suri ki mrityu kaise hui
यह अभियान शेरशाह का अन्तिम सैन्य अभियान था। कालिंजर का शासक कीरत सिंह था। उसने शेरशाह के आदेश के विपरीत ‘रीवा’ के महाराजा वीरभान सिंह बघेला को शरण दे रखी थी। इस कारण से नवम्बर, 1544 ई. में शेरशाह ने कालिंजर क़िले का घेरा डाल दिया। लगभग 6 महीने तक क़िले को घेरे रखने के बाद भी सफलता के आसार न देख कर शेरशाह ने क़िले पर गोला, बारुद के प्रयोग का आदेश दिया। ऐसा माना जाता है कि, क़िले की दीवार से टकराकर लौटे एक गोले के विस्फोट से शेरशाह की 22 मई, 1545 ई. को मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय वह ‘उक्का’ नाम का एक अग्नेयास्त्र चला रहा था। उसके मरने से पूर्व क़िले को जीत चुका था। उसकी मृत्यु पर इतिहासकार क़ानूनगो ने कहा, “इस प्रकार एक महान राजनीतिज्ञ एवं सैनिक का अन्त अपने जीवन की विजयों एक लोकहितकारी कार्यों के मध्य में ही हो गया।”
हालांकि उन्होंने पांच साल की छोटी अवधि के लिए ही भारत पर राज्य किया था लेकिन उनके द्वारा किए गए परिवर्तनों ने लोगों के जीवन पर चिरस्थायी प्रभाव डाला। उन्हें मध्यकालीन भारत के सबसे सफल शासक के रूप में देखा जाता है। एस ऐ राशिद के अनुसार एक सक्षम जनरल, घाघ सैनिक, और एक प्रतिबद्ध शासक के तौर पर शेरशाह अन्य शासकों के ऊपर ही रहे।
इतना महान था उनका व्यक्तित्व की उनके सबसे बड़े शत्रु हुमायूं ने उनकी मौत पर उन्हें उस्ताद-ऐ-बादशाह, राजाओं के शिक्षक के नाम से संबोधित किया था। शेरशाह सूरी के बाद उनके पुत्र जलाल खान ने गद्दी संभाली जिसने बाद में इस्लाम शाह के नाम को अपनाया था। उसने सासाराम, बिहार में अपने पिता शेरशाह सूरी के एक शानदार मकबरे का निर्माण किया। उनका गढ़नगर सासाराम स्थित उनका मकबरा (Sher Shah Suri Tomb) एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है।
Sher Shah Suri Questions in Hindi
1). शेरशाह का जन्म में कब हुआ था? (sher shah suri ka janm kab hua)
ans : 1472 ई. (बजवाड़ा (होशियारपुर))
2). शेर शाह सूरी के सिक्के (sher shah suri ke sikke)
ans : शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में जो रुपया चलाया था, वह एक चांदी का सिक्का था। इस सिक्के का वजन 178 ग्रेन (करीबन 11.534 ग्राम) था। – शेरशाह सूरी ने तांबे और सोने का सिक्का भी चलाया। तांबे के सिक्के को उस समय दाम और सोने के सिक्के को मोहर कहा जाता था।
3). शेरशाह के बचपन का नाम क्या था?
ans : फरीद खाँ
4). शेरशाह सूरी ने कहाँ से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी?
ans : जौनपुर
5). 1540 ई. में शेरशाह ने किस मुगल सम्राट को हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य का स्थापना किया था।
ans : हुमायूँ
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