Shah jahan / शाह जहाँ मुग़ल वंश के पांचवे बादशाह थे। शाह जहाँ अपनी न्यायप्रियता और वैभवविलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय रहे। किन्तु इतिहास में उनका नाम केवल इस कारण नहीं लिया जाता। शाहजहाँ का नाम एक ऐसे आशिक के तौर पर लिया जाता है जिसने अपनी बेग़म मुमताज़ बेगम के लिये विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताज महल बनाने का यत्न किया। उनका शासनकाल सन 8 नवम्बर 1627 – 2 अगस्त 1658 ई. तक रहा।
शाहजहाँ का का संक्षिप्त परिचय – Mughal Empire Shah Jahan Biography In Hindi
नाम | शाहबउद्दीन मुहम्मद शाहजहाँ (ख़ुर्रम) (Shahabuddin Muhammad Khurram ) |
पिता का नाम | जहाँगीर |
माता का नाम | जगत गोसाई (जोधाबाई) |
जन्म दिनांक | 5 जनवरी, सन् 1592, लाहौर |
विवाह | आरज़ुमन्द बानो बेगम उर्फ मुमताज महल इनके साथ विवाह और भी कन्दाहरी बेग़म अकबराबादी महल, हसीना बेगम, मुति बेगम, कुदसियाँ बेगम, फतेहपुरी महल, सरहिंदी बेगम, श्रीमती मनभाविथी इनके साथ |
मृत्यु | 22 जनवरी, 1666 |
शाहजहाँ का नाम एक ऐसे आशिक के तौर पर लिया जाता है जिसने अपनी मोहब्बत की खातिर विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताज महल बनाने का यत्न किया। वे अपनी बेग़म मुमताज़ महल की याद मे ताज महल का निर्माण करवाए थे। उस जमाने मे ताज महाल बनाने मे 6 करोड़ की लागत आई थी। शाह जहाँ अपनी न्यायप्रियता और वैभवविलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय रहे। अपने पराक्रमो से आदिलशाह और निजामशाह के प्रस्थापित वर्चस्वो को मूह तोड़ जवाब देकर सफलता मिलाने वाला राजा के रूप में शाहजहाँ की पहचान होती है। शाहजहॉ को निर्माताओं का राजकुमार कहा जाता है शाहजहॉ द्वारा बनाई गई इमारतें – दिल्ली का लाल किला, दीवाने आम, दीवाने खास, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा मोती मस्जिद, ताजमहल आदि हैं।
सम्राट जहाँगीर के मौत के बाद, छोटी उम्र में ही उन्हें मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में चुन लिया गया था। 4 फरवरी 1627 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद वह गद्दी पर बैठे। वे मुगल साम्राज्य के 5वे सम्राट बने थे। उनके शासनकाल को मुग़ल शासन का स्वर्ण युग और भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल बुलाया गया है।
शाहजहाँ का जीवन इतिहास – Shah Jahan Biography In Hindi
शाहजहाँ का जन्म जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री ‘जगत गोसाई’ (जोधाबाई) (जो की बाद में ताज बीबी बिलक़िस मकानी के नाम से जानी गयी।) के गर्भ से 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। उनका बचपन का नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम जहाँगीर का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था। वे बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह थे। शाहजहाँ का विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की पुत्री ‘आरज़ुमन्द बानो’ से सन् 1611 में हुआ था। वही बाद में ‘मुमताज़ महल’ के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई।
शाहजहाँ ने सन् 1648 में आगरा की बजाय दिल्ली को राजधानी बनाया; किंतु उसने आगरा की कभी उपेक्षा नहीं की। उसके प्रसिद्ध निर्माण कार्य आगरा में भी थे। शाहजहाँ का दरबार सरदार सामंतों, प्रतिष्ठित व्यक्तियों तथा देश−विदेश के राजदूतों से भरा रहता था। उसमें सबके बैठने के स्थान निश्चित थे। जिन व्यक्तियों को दरबार में बैठने का सौभाग्य प्राप्त था, वे अपने को धन्य मानते थे और लोगों की दृष्टि में उन्हें गौरवान्वित समझा जाता था। जिन विदेशी सज्ज्नों को दरबार में जाने का सुयोग प्राप्त हुआ था, वे वहाँ के रंग−ढंग, शान−शौक़त और ठाट−बाट को देख कर आश्चर्य किया करते थे। तख्त-ए-ताऊस शाहजहाँ के बैठने का राजसिंहासन था।
सम्राट अकबर ने जिस उदार धार्मिक नीति के कारण अपने शासन काल में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी, वह शाहजहाँ के काल में नहीं थी। उसमें इस्लाम धर्म के प्रति कट्टरता और कुछ हद तक धर्मान्धता थी। वह मुसलमानों में सुन्नियों के प्रति पक्षपाती और शियाओं के लिए अनुदार था। हिन्दू जनता के प्रति सहिष्णुता एवं उदारता नहीं थी। शाहजहाँ ने खुले आम हिन्दू धर्म के प्रति विरोध भाव प्रकट नहीं किया, तथापि वह अपने अंत:करण में हिन्दुओं के प्रति असहिष्णु एवं अनुदार था।
शाहजहाँ बहुत पराक्रमी थे। आदिलशहा, कुतुबशहा ये दोनों भी उनके शरण आये, निजामशाह की तरफ से अकेले शहाजी भोसले ने शाहजहाँ से संघर्ष किया। शाहजहाँ ने उसके ऊपर तीन ओर से आक्रमण किया। बचाव का कोई भी मार्ग न पाकर आदिलशाह ने 1636 ई. में शाहजहाँ की शर्तों को स्वीकार करते हुए संधि कर ली। भारत के दुश्मन कम हो जाने के बाद शहाजहान की नजर मध्य एशिया के समरकंद के तरफ गयी। लेकिन 1639-48 इस समय में बहुत खर्चा करके भी वो समरकंद पर जीत हासिल कर नहीं सके।
विजापुर और गोवळ कोंडा इन दो राज्यों को काबू में लेकर उसमे सुन्नी पथो का प्रसार करने के लिये औरंगजेब को चुना गया। पर औरंगजेब ने खुद के भाई की हत्या कर के बिमार हुये शाहजहाँ को कैद खाने में डाल दिया और ख़ुद सन् 1658 में मुग़ल सम्राट बन बैठा। शाहजहाँ 8 वर्ष तक आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में क़ैद रहे। उनका अंतिम समय बड़े दु:ख और मानसिक क्लेश में बीता था। अंत में 5 जनवरी, सन् 1666 में उनका देहांत हो गया। उस समय उनकी आयु 74 वर्ष की थी। उसे उनकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था।
शाहजहाँ के कुछ कार्य –
- शाहजहाँ ने सिजदा और पायबोस प्रथा को समाप्त किया।
- इलाही संवत के स्थान पर हिजरी संवत का प्रयोग आरम्भ किया।
- गोहत्या पर से प्रतिबन्ध उठा लिया। हिन्दुओं को मुस्लिम दास रखने पर पाबन्दी लगा दी।
- अपने शासन के सातवें वर्ष तक आदेश जारी किया, जिसके अनुसार अगर कोई हिन्दू स्वेच्छा से मुसलमान बन जाय, तो उसे अपने पिता की सम्पत्ति से हिस्सा प्राप्त होगा।
- हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए एक पृथक् विभाग खोला।
- पुर्तग़ालियों से युद्ध का ख़तरा होने पर उसने आगरा के गिरिजाघर को तुड़वा दिया।
- मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला की दृष्टि से शाहजहाँ ने अनेकों भव्य इमारतों का निर्माण करवाया था, जिस कारण से उसका शासनकाल मध्यकालीन भारत के इतिहास का ‘स्वर्ण काल’ कहा जाता है।
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Very good
Shahajahan ki maa jodha bai kaise jodha bai toh shanshaha jajaaluddin akbar ki begam thi janhagir ki maa iski dadi maa huyi complicated history mat banao
इंटरनेट से की गई पढाई से लोगों का क्या होगा पता नहीं. भगवान ही मालिक है
Kuch history mai Taaj bibi dilkas makani naam bhi bataya gaya hai sahi mai usake maa ka naam kya tha
Hello,, Aap Jyada Confuse Nahi Honge, Actually Me Jodhabai Hi Taj Bibi Bilqis Makani Ke Nam Se Jani Jaati Hain, Ur Ye Jodhabai Raja Uday Singh Ki Bet Thi,, Aur Akbar Ki Wife Jodhabai Raja Bharmal Ki Bet Thi,,Agar Ab Bhi samjhane Me Problem Ho Rahi Hain To Aap Is Link Me Click Kar Achhe Se Samjhe >>
SAHAJANHA KE LOVE IS A GREAT VERY WONDERFUL I AM VERY HAPPYGREAT MAN IS INDIA SAHJANHA
But bhut log bolte hai ki sahjha ne tajmhal nai bnwaya
O ek shiv mandir hai
Raja bharmal ki beti thi ki raja uday singh ki beti thi
Noorjhaan thi inki mother …