Raskhan / रसखान हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त मुस्लिम कवी थे। उन्हें रीतिकालीन कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। रसखान को ‘रस की खान’ कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं।
रसखान का परिचय – Raskhan Biography in Hindi
सैय्यद इब्राहीम ‘रसखान’ एक मुस्लिम कवि थे परन्तु कृष्ण भक्ति में उनका अनन्य अनुराग था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, “इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए” उनमें रसखान का नाम सर्वोपरि है।
रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है।
प्रारंभिक जीवन – Early Life Raskhan in Hindi
रसखान की प्रारंभिक जीवनी को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। अनेक विद्वानों इनका जन्म सन् 1533 से 1558 माना हैं और कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म सन् 1590 ई में हुआ था। चूँकि अकबर का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। इनका जन्म स्थान पिहानी जो कुछ लोगों के मतानुसार दिल्ली के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह पिहानी उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले में है
इनके पिताजी का नाम गंनेखां था जो अपने समय के मशहूर कवि और जागीरदार थे, जिन्हें खान उपाधि प्राप्त थी। इनकी माता का नाम मिश्री देवी था जो एक समाज सेविका थी। रसखान का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न और धनि होने के कारण बचपन बहुत सुख और ऐश्वर्य में बीता। इनका परिवार शुरू से भगवत प्रेमी था। जिसके कारण इन्हे बाल्यकाल से ही भक्ति के संस्कार थे।
रसखान अर्थात् रस के खान, परंतु उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था और उन्होंने अपना नाम केवल इस कारण रखा ताकि वे इसका प्रयोग अपनी रचनाओं पर कर सकें। हालाँकि रसखान के नाम को लेकर भी अलग-अलग मत प्रचलित हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में रसखान के दो नाम सैय्यद इब्राहिम और सुजान रसखान लिखे हैं। प्रमुख कृष्णभक्त कवि रसखान की अनुरक्ति न केवल कृष्ण के प्रति प्रकट हुई है बल्कि कृष्ण-भूमि के प्रति भी उनका अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है।
रसखान की रचनाएँ – Raskhan History in Hindi
उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधुरी, ब्रज-महिमा, राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का मनोहर वर्णन मिलता है। वे अपनी प्रेम की तन्मयता, भाव-विह्नलता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं उतने ही अपनी भाषा की मार्मिकता, शब्द-चयन तथा व्यंजक शैली के लिए। उनके यहाँ ब्रजभाषा का अत्यंत सरस और मनोरम प्रयोग मिलता है, जिसमें ज़रा भी शब्दाडंबर नहीं है।
रसखान को फ़ारसी, हिंदी एवं संस्कृति का अच्छा ज्ञान था। फ़ारसी में उन्होंने “श्रीमद्भागवत’ का अनुवाद करके यह साबित कर दिया था। इसको देख कर इस बात का अभास होता है कि वह फ़ारसी और हिंदी भाषाओं का अच्छा वक्ता होंगे।
रसखान की कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं- ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’। ‘सुजान रसखान’ में 139 सवैये और कवित्त है। ‘प्रेमवाटिका’ में 52 दोहे हैं, जिनमें प्रेम का बड़ा अनूठा निरूपण किया गया है।
रसखान के काव्य के आधार भगवान श्रीकृष्ण हैं। रसखान ने उनकी ही लीलाओं का गान किया है। उनके पूरे काव्य- रचना में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की गई है। इससे भी आगे बढ़ते हुए रसखान ने सुफिज्म (तसव्वुफ) को भी भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से ही प्रकट किया है। इससे यह कहा जा सकता है कि वे सामाजिक एवं आपसी सौहार्द के कितने हिमायती थे।
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