दोस्ती जब किसी से की जाये
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाएमौत का ज़हर हैं फिजाओं में
अब कहा जा के सांस ली जाएबस इसी सोच में हु डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाएमेरे माजी के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाएबोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाएराहत इन्दौरी
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Rahat Indori Gajal – Dosti jab kisi se ki jaye
Dosti jab kisi se ki jaye
Dushmanon ki bhi raye li jayeMaut ka zahar hai fizaon may
Ab kahan ja ke sans li jayeBas isi soch may hun duba hua
Ye nadi kaise par ki jayeMere mazi ke zakhm bharane lage
Aj phir koi bhul ki jayeBotalen khol ke to pi barason
Aj dil khol ke bhi pi jayeRahat Indori
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आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो – Aankh me Pani Rakho
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है – Roj Taron ko Numaish me Khalal Padta Hain
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
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