पाइथागोरस की जीवनी, इतिहास, निबंध | Pythagoras Biography in Hindi

Pythagoras in hindi/ पाइथागोरस यूनान के प्राचीन गणितज्ञ, दार्शनिक और पाईथोगोरियनवाद नामक धार्मिक आन्दोलन के संस्थापक थे। गणित के क्षेत्र में इन्हें आज भी ‘पाइथागोरस का प्रमेय’ (Pythagoras Theorem) के लिए ख्याति प्राप्त है। पाइथागोरस का प्रमेय के अनुसार ‘किसी भी समकोण त्रिभुज में दो भुजाओं के वर्गों का योग तीसरी भुजा के वर्ग के बराबर होता है।’ 

पाइथागोरस का इतिहास, निबंध - About Pythagoras Biography & History In Hindiपाइथागोरस का इतिहास, निबंध – About Pythagoras Biography & History In Hindi

पाइथागोरस को गणित के आलावा एक संगीतकार, रहस्यवादी, वैज्ञानिक और धार्मिक आंदोलन के संस्थापक के तौर पर भी पश्चिम के इतिहास में सम्मान प्राप्त है। जब वे पैदा हुवे थे तब गणित तथा विज्ञानं अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी। उस समय न तो लिखे की कोई वयवस्था थी न ही पढाई को महत्व दिया जाता था। फिर भी उन्होंने ऐसे प्रमेय का अविष्कार किया जिसे लोग आज भी अपनी जुबान पर रखते हैं।

संगीत के बारे में पाइथागोरस का मानना था कि उनमें पर्याप्त सामंजस्य नहीं है। इसलिए उन्होंने संगीत के लय को गणितीय समीकरणों में अनुवाद करने की खोज की। हालाँकि पाइथागोरस ने संख्या के सिद्धांत को अपने आलेखों में विस्तारपूर्वक स्पष्ट किया है परन्तु इसकी व्याख्या को लेकर आज भी विद्वानों में मतभेद हैं।

उनके दार्शनिक विचारों के आधार पर जो विचार-प्रवाह चला उसे ‘पाइथागोरस’ मत कहा जाता है। इस मत संबंध दार्शनिकों के कार्मिक भाईचारे से है। उनका और उनके अनुयायियों का अंको की शक्ति में विश्वास था। जैसे दो का अंक रेखा, तीन सतह, चार घनत्व, छह आत्मा, सात स्वास्थ्य और प्रकाश तथा आठ प्रेम कें घोतक हैं। पाइथागोरस ने यह भी बताया कि धातु के तारों को खींचने से ध्वनि उत्पन्न होती है। गणित-संबंधी युक्लिड के सिध्दांत उन्होंने ही निर्धारित किए थे। वे परमाणु-सिध्दांत को भी स्वीकार करते थे और पुनर्जन्म को भी मानते थे।

प्रारंभिक जीवन 

दुनिया के इस महान दार्शनिक का जन्म आज से 580 ई.पू पहले यूनान के पास सामोस नामक जगह में हुआ था, जो एशिया माइनर (Asia Minor) के किनारे पर, पूर्वी ईजियन में एक यूनानी द्वीप है। उनकी माँ पायथायस और पिता मनेसार्चस थे जो रत्नो का व्यापर करते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि पाइथागोरस के दो या तीन भाई-बहन भी थे। हालाँकि उस समय साधनो के कमी के कारण आज पाइथोगोरस के बारे में बहुत कम जानकारी ज्ञात हैं। उनके संबंध में जो भी जानकारी हमें आज मिलती है। वह बाद के लेखकों द्वारा लिखी गई है। हालाँकि कुछ लेखक गणित और प्राकृतिक दर्शन में उनके योगदान की संभावनाओं पर सवाल उठाते हैं।

पाइथागोरस का बचपन सामोस में ही गुजरा था। जब वह बड़े हुए तो पिता के साथ व्यापारिक यात्रा पर जाने लगे। इसी दौरान पाइथागोरस के पिता उन्हें टायर लेकर गए और वहां उन्हें सीरिया के विद्वानों से शिक्षा दिलाने लगे। ऐसा माना जाता है कि पाइथागोरस ने इस दौरान इटली का भी दौरा किया था।

सीरिया के विद्वानों से शिक्षा ग्रहण करने के अलावा पाइथागोरस ने शल्डिया के विद्वानों को भी अपना गुरु बनाया था। सयरस के फेरेसायडेस पाइथागोरस के पहले शिक्षक थे जिनसे उन्होंने दर्शनशास्त्र की शिक्षा ली थी। 18 साल की उम्र में पाइथागोरस ने मिल्ट्स की यात्रा की जहाँ उनकी मुलाक़ात गणित और अंतरिक्ष विज्ञान के विद्वान थेल्स से हुई।

थेल्स के साथ ही पाईथागोरस ने अपनी विश्वविख्यात प्रमेय का आरम्भ किया और इस प्रमेय के प्रयोगात्मक प्रदर्शन भी किया। वास्तव में यदि कहा जाए तो पाईथागोरस ही वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ज्यामितीय की प्रमेयो के लिए उत्पति प्रणाली की नीव डाली। यह भी कहा जाता है कि पाईथागोरस ने यह भी सिद्ध करके दिखाया कि किसी भी त्रिभुज के तीनो अंत:कोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है।

लम्ब्लिकस के अनुसार थेल्स उनकी क्षमताओं से बहुत अधिक प्रभावित था, उसने पाइथोगोरस को इजिप्त में मेम्फिस को चलने और वहाँ के पुजारियों के साथ अध्ययन करने की सलाह दी जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे। वे फोनेशिया में टायर और बैब्लोस में शिष्य बन कर भी रहे। इजिप्ट में उन्होंने कुछ ज्यामितीय सिद्धांतों को सिखा जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अंततः प्रमेय दी जो अब उनके नाम से जानी जाती है।

इस प्रमेय के अनुसार किसी समकोण त्रिभुज में दो भुजाओं के वर्गो का योग तीसरी भुजाओं का योग तीसरी भुजा के वर्ग के बराबर होता है। किसी समकोण त्रिभुज में यदि एक भुजा की लम्बाई तीन सेमी हो और दुसरी भुजा की लम्बाई चार सेमी हो तो तीसरी भुजा अर्थात कर्ण की लम्बाई पांच सेमी होगी। अभिप्राय यह है कि तीन सेमी की भुजा में एक एक सेमी के नौ वर्ग होंगे और चार सेमी की भुजा में एक सेमी के सोलह वर्ग होंगे। अर्थात इन दोनों का योग 25 होता है। इस प्रकार सबसे लम्बी भुजा में 25 वर्ग होंगे अर्थात उस भुजा की लम्बाई पांच सेमी होगी।

उनकी मृत्यु के बाद कही जाकर ‘पाइथागोरियन’ सिध्दांतों का विकास हुआ जिन्होंने उन्हें ख्याति के उच्च शिखर पर पहुंचा दिया। वो पहले आदमी थे जो अपने आप को एक दार्शनिक, या बुद्धि का प्रेमी कहते थे, और पाइथोगोरस के विचारों ने प्लेटो पर एक बहुत गहरा प्रभाव डाला। पाइथोगोरस के नाम का इस प्रमेय से सम्बन्ध स्थापित करने का सबसे पहला उल्लेख उनकी मृत्यु के पाँच सदियों के बाद सिसरौ (Cicero) और प्लूटार्क (Plutarch) के लेखन में मिलता है।

पाइथागोरस के दृष्टिकोण से धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। धार्मिक तौर पर वे स्वयं मेटेम्पसाइकोसिस संप्रदाय के अनुयायी थे। वे आत्माओं के पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि आत्मा को तब तक मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह मानव, पशु या फिर पेड़-पौधों में बार-बार पृथ्वी पर जन्म लेती रहती है। पाइथागोरस के इस चिंतन से स्पष्ट है कि वह पुनर्जन्म के मुद्दे पर प्राचीन यूनानी धर्म से प्रभावित थे. वे कहते थे कि उन्हें अपना चार जीवन याद है।

पाइथागोरस को संगीत में भी रूचि थी, वे स्वयं एक बेहतर वीणा वादक भी थे। इसलिए वह संगीत में सुधार लाना चाहते थे। कहा जाता है कि संगीत की इसी कमी को दूर करने के लिए उन्होंने संगीत के नोट को गणितीय समीकरणों में अनुवाद करने की खोज की थी।

पाइथागोरस का विवाह थेनो (Theano) नामक एक महिला से हुआ था। थेनो एक ओर्फिक अनुयायी की बेटी थी और एक गणितज्ञ थीं। उन्होंने गणित, भौतिक और चिकित्सा विज्ञान सहित बाल मनोविज्ञान पर कई पुस्तकें भी लिखी थीं। हालाँकि आज उनके लेखन में से कुछ भी नहीं बचा है।

पाइथागोरस की मृत्यु –

80 वर्ष की आयु में ईसा से 500 वर्ष पूर्व करीब मेटापोंट्म इटली में उनका देहांत हो गया था। उनके मृत्यु के कारण बताये जाते हैं एक मान्यता के अनुसार उनकी मृत्यु के कारण अग्रिएन्तम और सिराकुसंस समूह के बीच संघर्ष में सिराकुसंस के लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी।

पाइथोगोरियन – 

यह संगठन कुछ मायनों में एक स्कूल, कुछ मायनों में एक भाईचारा और कुछ मायनों में एक मठ था। यह पाइथोगोरस के धार्मिक उपदेशों पर आधारित था और बहुत ही गुप्त था। सबसे पहले, स्कूल समाज की नैतिकता से बहुत अधिक सम्बंधित था। सदस्यों को नैतिकता के दृष्टिकोण के साथ जीना होता था, एक दूसरे से प्यार करना होता था, राजनीतिक मान्यताओं को बाँटना होता था, शांति का अनुसरण करना होता था और स्वयं को प्रकृति के गणित को समर्पित कर देना होता था।

उनके अनुयायियों का अंको की शक्ति में विश्वास था। जैसे दो का अंक रेखा, तीन सतह, चार घनत्व, छह आत्मा, सात स्वास्थ्य और प्रकाश तथा आठ प्रेम कें घोतक हैं।

पाइथोगोरस के अनुयायी सामान्यतः “पैथोगोरियन्स “कहलाते थे। उन्हें सामान्यतः दार्शनिक गणितज्ञ कहा जाता है, जिनका अक्षीय ज्यामिति की शुरुआत पर एक प्रभाव था, जो इसके विकास के २०० सालों के बाद यूक्लिड के द्वारा दी एलिमेंट्स में लिखा गया।


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