Osho Rajneesh – रजनीश चन्द्र मोहन संभवत: ओशो /Osho के नाम से प्रख्यात हैं। जो अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए। ओशो रजनीश को 70 व् 80 के दशक से “भगवान श्री रजनीश” के नाम से जाना जाता हैं। इसके बाद उन्होंने अपना नाम “ओशो” रखा था ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। रजनीश ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की तथा प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य माना।
ओशो रजनीश जीवन परिचय – Bhagwan Shree Rajneesh Biography in Hindi
पूरा नाम | चन्द्र मोहन जैन (Chandra Mohan Jain) |
अन्य नाम | आचार्य रजनीश, भगवान् श्री रजनीश (Acharya Osho Rajneesh) |
जन्म दिनांक | 11 दिसम्बर, 1931 |
जन्म भूमि | जबलपुर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 19 जनवरी 1990, पुणे, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | बाबूलाल जैन |
माता का नाम | सरस्वती जैन |
कर्म-क्षेत्र | आध्यात्मिक गुरु |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | स्नातकोत्तर |
प्रसिद्धि के कारण | अध्यात्मिक जगत मे क्रांति |
ओशो रजनीश 20वीं सदी के महान विचारक तथा आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होने वर्तमान के सभी प्रचलित धर्मों के पाखंड को उजागर कर दुनियाभर के लोगों से दुश्मनी मोल ली थी। दुनिया को एकदम नए विचारों से हिला देने वाले, बौद्धिक जगत में तहलका मचा देने वाले भारतीय गुरु ओशो से पश्चिम की जनता इस कदर प्रभावित हुई कि भय से अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करवाकर जेल में डाल दिया था और बाद में अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत उनको जहर देकर छोड़ दिया गया।
प्रारंभिक जीवन – Early Life Osho Rajneesh
ओशो रजनीश का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में 11 दिसम्बर 1931 को हुआ था। उनका बचपन में नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनके पिता का नाम बाबूलाल जैन और माता का नाम सरस्वती जैन था जो तेरापंथी जैन थे। ओशो का बचपन कुछ समय अपने नाना के साथ बिता, परंतु नाना के मृत्यु के पश्चात वे अपने माता-पिता के पास आ गये। स्कूल के समय मे ही ओशो ने परम बौधिक का परिचय दिया। वे दो राष्ट्रीय संघटनों इंडियन नेशनल आर्मी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे लेकिन कुछ दिनों में ही उन्होंने इनकी सदस्यता त्याग दी।
आध्यात्मिक जीवन – Osho Rajneesh Career
1953 में 21 वर्ष की आयु में ओशो को मौलश्री वृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्त हुआ। उस समय वे डी. एन कॉलेज के छात्र थे। इसके बाद उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शन में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि ली। बाद मे रामपुर संस्कृत कॉलेज और जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र पढ़ाने लगे। इसी दौरान उन्होंने पुरे देश का भ्रमण किया और गांधी व् समाजवाद पर भाषण दिया। 1962 में उनका पहला ध्यान शिविर आयोजित हुआ, दो वर्ष बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ध्यान के मार्ग पर निकल पड़े।
जून 1964 में रणकपुर शिविर में पहली बार ओशो के प्रवचनों को रिकॉर्ड किया गया और किताब में भी छापा गया। इसके बाद ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिए। उनके प्रवचन पुस्तकों, ऑडियो कैसेट तथा वीडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों से दुनियाभर के वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों, और साहित्यकारों को प्रभावित किया। 1969 में ओशो के अनुयायियो ने उनके नाम पर एक फाउंडेशन बनाया जिसका मुख्यालय मुंबई था। बाद में उसे पुणे के कोरेगांव पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया। वह स्थान “ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसोर्ट ” के नाम से जाना जाता है। 1980 में ओशो “अमेरिका” चले गए और वहां सन्यासियों ने “रजनीशपुरम” की स्थापना की।
1980-86 तक के काल में वे ‘विश्व-सितारे’ बन गये। बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनुकुबेर, फ़िल्म अभिनेता इनके शिष्य रहे हैं। रजनीश स्वयं को 20वीं सदी के सबसे बड़े तमाशेबाज़ों में से एक मानते हैं। अपने बुद्धि कौशल से उन्होंने विश्वभर में अपने अनुययियों को जिस सूत्र में बांधा वह काफ़ी हंगामेदार साबित हुआ।
ओशो ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, सूफी, जैन जैसे कई धर्मो पर प्रवचन दिया था और वो अक्सर येशु, मीरा नानक, कबीर, गौतम बुद्ध, दादू, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे कई महापुरुषों के रहस्यों के बारे में प्रवचन देते थे। 1960 के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से एवं 1970 -80 के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और ओशो 1989 के समय से जाने गये।
वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्मं पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे काम के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में “सेक्स गुरु ‘के नाम से भी संबोधित किया गया।
रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रहीं हैं, इनमें ‘सम्भोग से समाधि तक’, ‘मृत्यु है द्वार अमृत का’, संम्भावनाओं की आहट’, ‘प्रेमदर्शन’ के नाम प्रमुख हैं। अपना निज़ी अध्यात्म गढ़कर उसका ‘काम’ के साथ समन्वय करके रजनीश ने एक अदभुत मायालोक की सृष्टि की है।
दर्शन >> जब वाणी मौन होती है, तब मन बोलता है… जब मन मौन होता है, तब बुद्धि बोलती है… जब बुद्धि मौन होती है, तब आत्मा बोलती है… जब आत्मा मौन होती है, तब परमात्मा से साक्षात्कार होता है।
उनके मृत्यु के पश्चात उनके समाधि मे अंकित हैं :- जिनका न कभी जन्म हुआ और न ही मृत्यु, 11 दिसंबर 1931 और 19 जनवरी 1990 के बीच जो इस पृथ्वी ग्रह पर केवल विचरण करने आएँ।
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