Mumtaz Mahal in Hindi/ मुमताज़ महल जिनका वास्तविक नाम ‘अर्जुमंद बानो बेगम’ (Arjumand Banu Begum) था मुग़ल महारानी और मुग़ल शासक शाहजहाँ की पसंदीदा बेगम थी। मुमताज की ही याद में उनके पति शाहजहाँ ने आगरा में ‘ताजमहल’ का निर्माण किया था।
मुमताज़ महल का संक्षिप्त परिचय – Mumtaz Mahal Biography in Hindi
वास्तविक नाम | अर्जुमंद बानो |
जन्म दिनांक | अप्रैल 1593 में आगरा |
मृत्यु | 17 जून, 1631, बुरहानपुर |
पिता | अबुल हसन आसफ़ ख़ान |
माता | दीवानजी बेगम |
पति | शाहजहां |
समाधि | ताज महल, आगरा |
मुमताज़ महल का इतिहास – Mumtaz Mahal History In Hindi
मुमताज़, नूरजहाँ के भाई आसफ़ खाँ की पुत्री जिसका निकाह मुग़ल सम्राट जहाँगीर के पुत्र ख़ुर्रम (शाहजहाँ) से हुआ। 19 वर्ष की उम्र में मुमताज़ का निकाह शाहजहाँ से 10 मई, 1612 को हुआ। मुमताज़, शाहजहाँ की तीसरी पत्नी थी लेकिन शीघ्र ही वह उनकी सबसे पसंदीदा पत्नी बन गई। शादी से पहले मुमताज महल का नाम अर्जुमंद बानो बेगम था और इनका जन्म अप्रैल, 1593 में आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। शाहजहाँ और मुमताज़ के 14 संतानें हुईं, जिनमें दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगज़ेब और मुराद बख़्श नामक चार पुत्र थे। मुमताज़ का निधन बुरहानपुर में 17 जून, 1631 को 14वीं संतान, बेटी गौहारा बेगम को जन्म देते वक्त हुआ। बाद में उसका शव आगरा लाया गया जहाँ शाहजहाँ ने उसकी क़ब्र पर विश्वविख्यात स्मारक ताजमहल बनवाया।
शाहजहाँ और मुमताज की मुलाकात – Shah Jahan and Mumtaz Love Story in Hindi
मुमताज महल, प्रसिद्ध मीना बाजार जो हरम से जुड़ा हुआ निजी बाजार था, में अपनी दुकान पर रेशम और कांच के मोती बेचा करती थीं, जहां सम्राट के सबसे बड़े बेटे राजकुमार खुर्रम (शाहजहां) से 1607 में उनकी मुलाकात हुई और तब से वह उनसे प्यार करने लगीं। कहा जाता हैं शाहजहां को मुमताज से इस कदर प्यार हुआ था, की वे उन्ही की यादो में खोये रहते थे। बाद में अपने पिता की मंजूरी लेने के बाद, उनकी शाही शादी मई 1612 में बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ हुई। 19 साल की उम्र में शादी करके मुमताज महल अपने पति की दूसरी और सबसे प्रिय पत्नी बन गईं। मुमताज के लिए उनका प्यार इतना था कि उन्होंने अर्जुमंद बानो को मुमताज महल का नाम दे दिया, जिसका अर्थ है (‘महल का प्यारा आभूषण’)।
मुमताज़ महल की मृत्यु और ताजमहल का निर्माण – Mumtaz Mahal History in Hindi
आज से 400 वर्ष पूर्व जब मुगलिया सल्तनत की बेगम मुमताज की मौत बुलारा महल में हुई थी, तब शाहजहाँ बुरहानपुर में ही ताजमहल का निर्माण कराने वाले थे। परंतु किसी कारणवश यह संभव न हो सका और जब आगरा में ताजमहल बनकर तैयार हुआ तो वहाँ मुमताज की देह को ले जाकर दफनाया गया। यहाँ के रहवासियों का मानना है कि मुमताज की देह तो यहाँ से निकाल ली गई पर आत्मा आज भी इसी महल में भटकती रहती है। परंतु आज तक यहाँ आने वाले किसी भी शख्स को मुमताज की आत्मा ने परेशान नहीं किया और न ही नुकसान पहुँचाया है।
मुमताज महल ने अपनी मोहब्बत के चलते शाहजहाँ से निकाह किया था। मुमताज की सुंदरता को उनके जीवनभर में कई कवियों, लेखको ने अपनी कविताओ और लेख में निखारा है। शाहजहाँ अपने पुरे मुग़ल साम्राज्य की भ्रमण मुमताज़ के साथ ही किया करते थे।
बादशाह शाहजहाँ को मुमताज़ पर इतना भरोसा हो गया था की उन्होंने मुमताज़ को शाही सील, मुहर उजाह के अधिकार भी दे रखे थे। मुमताज़ ने बाद में बताया भी था की उन्हें कभी किसी प्रकार के राजनैतिक ताकत की कोई चाह थी ही नही, लेकिन फिर भी मुमताज़ पर महारानी नूर जहाँ का काफी प्रभाव पड़ा, मुमताज़ को हमेशा से ही मैदान में होने वाले हाथियों की लड़ाई बहोत पसंद थी। मुमताज़ को अपने साम्राज्य की साधारण महिलाओ से मिलना, उनके साथ खेलना और बाते करना भी काफी पसंद था इसीलिए कई बार भी आगरा के बाग़ में भी टहलने जाया करती थी।
मुमताज़ महल की जब मृत्यु हुई थी उस समय शाहजहाँ के चाचा दानियाल द्वारा तापी नदी के तट पर जैनाबाद गार्डन में दफनाया गया था। शाहजहाँ को इस बात से काफी दुःख पहुंचा था। परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु के बाद शाहजहाँ एक वर्ष के लिये शोक मानते हुए एकांत में रहने के लिए चले गये।
दिस्मबर 1631 में उनके शव को निकला गया और सोने से बनी शवपेटी में आगरा के पीछे दफनाया गया। आगरा के ही पीछे यमुना नदी के तट पर एक छोटे घर में उनके शव को रखा गया था, और शाहजहाँ बुरहानपुर के पीछे ही अपने सैन्य दल के साथ रहने लगे थे। कुछ दिन बाद शाहजहां ने मुमताज़ की याद में एक विशाल महल बनाने की योजना बनाई। और इसी के साथ महल की निर्माण शुरू हुई जिसे पुरे होने में 22 साल लगे, मुमताज़ की याद में बने उस महल को “ताजमहल” के नाम से जाना जाता है।
ताजमहल के निर्माण में एशिया के अलग-अलग स्थानों से पत्थर लाकर प्रयोग किए गए। मुख्य पत्थर संगमरमर को राजस्थान से मंगवाया गया था, पंजाब से जैस्पर, तिब्बत से फिरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, चीन से हरिताश्म और क्रिस्टल, श्रीलंका से नीलम और अरब से इंद्रगोप पत्थर लाए गए थे। पत्थरों की आवाजाही को 1,000 हाथियों ने अंजाम दिया था।
“शाहजहां काला ताजमहल भी बनवाना चाहता था, लेकिन इससे पहले ही उसे उसके पुत्र औरंगजेब ने कैद कर लिया”, यह कहना था उस पहले शख्स का जो ताजमहल घूमने आया था। यूरोपीय पर्यटक जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर पहला इंसान था जो ताजमहल घूमने आया था और उसी ने इस बात को पुख्ता किया था कि शाहजहां ताजमहल के पास एक काले रंग का ताजमहल भी बनवाना चाहता था।
ताजमहल में जो कब्र पर्यटकों के लिए खोली गई है वह मुमताज और शाहजहां की असली कब्र नहीं है। तहखाने में इन दोनों प्रेमियों की असली कब्रें मौजूद हैं, जिनकी नक्काशी अविस्मरणीय और अतुलनीय है। तहखाने में मुमताज महल की कब्र पर अल्लाह के 99 नाम खुदे हुए हैं। जबकि शाहजहां की कब्र पर “उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की” लिखा हुआ है।
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