Humayun / हुमायूँ एक मुगल शासक थे जिनका पूरा नाम नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ था। वे प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र व सम्राट अकबर के पिता थे। हुमायूँ दुसरे मुग़ल शासक थे जिन्होंने उस समय आज के अफगानिस्तान, पकिस्तान और उत्तरी भारत के कुछ भागो पर 1531-1540 तक और फिर दोबारा 1555-1556 तक शासन किया था।
हुमायूँ का परिचय – Humayun Biography in Hindi
पूरा नाम | नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ (Nasir-ud-Din Muḥammad) |
जन्म दिनांक | 6 मार्च, सन् 1508 ई. |
जन्म भूमि | क़ाबुल (अब अफगानिस्तान) |
मृत्यु | 27 जनवरी, सन् 1555 ई. |
पिता का नाम | बाबर |
माता का नाम | माहम बेगम |
पत्नी | हमीदा बानू बेगम, बेगा बेगम, बिगेह बेगम, चाँद बीबी, हाज़ी बेगम, माह-चूचक, मिवेह-जान, शहज़ादी ख़ानम |
संतान | पुत्र-अकबर, मिर्ज़ा मुहम्मद हाकिम पुत्री- अकीकेह बेगम, बख़्शी बानु बेगम, बख्तुन्निसा बेगम |
प्रसिद्धि | दुसरे मुग़ल शासक |
हुमायूँ का प्रारंभिक जीवन – Early Life Of Mughal King Humayun
हुमायूँ का जन्म 17 मार्च, 1508 ई. को काबुल में हुआ था। वे बाबर के 4 पुत्रों- हुमायूँ, कामरान, अस्करी और हिन्दाल में हुमायूँ सबसे बड़ा था। उनका माँ का नाम ‘माहम बेगम था। हुमायु बचपन से ही वीर, उदार और भला था लेकिन बाबर की तरह कुशल सेनानी और निपुण शासक नही बन पाया।
भारत में राज्याभिषेक के पूर्व 1520 ई. में 12 वर्ष की अल्पायु में उसे बदख्शाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया। बदख्शाँ के सूबेदार के रूप में हुमायूँ ने भारत के उन सभी अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था।
26 दिसम्बर, 1530 ई. को बाबर की मृत्यु के बाद 30 दिसम्बर, 1530 ई. को 23 वर्ष की आयु में हुमायूँ का राज्याभिषेक किया गया। बाबर ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही हुमायूँ को गद्दी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। हुमायूँ को उत्तराधिकार देने के साथ ही साथ बाबर ने विस्तृत साम्राज्य को अपने भाईयों में बाँटने का निर्देश भी दिया था, अतः उसने असकरी को सम्भल, हिन्दाल को मेवात तथा कामरान को पंजाब की सूबेदारी प्रदान की थी।
साम्राज्य का इस तरह से किया गया विभाजन हुमायूँ की भयंकर भूलों में से एक था, जिसके कारण उसे अनेक आन्तरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और कालान्तर में हुमायूँ के भाइयों ने उसका साथ नहीं दिया। वास्तव में अविवेकपूर्णढंग से किया गया साम्राज्य का यह विभाजन, कालान्तर में हुमायूँ के लिए घातक सिद्ध हुआ। यद्यपि उसके सबसे प्रबल शत्रु अफ़ग़ान थे।, किन्तु भाइयों का असहयोग और हुमायूँ की कुछ व्यैक्तिक कमज़ोरियाँ उसकी असफलता का कारण सिद्ध हुईं। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी बने।
शासन व युद्ध – Humayun Life History in Hindi
23 साल की उम्र में हुमायूँ उनके पिता के साम्राज्य पर शासन करने लगे, उस समय उनको ज्यादा अनुभव तो नही था लेकिन उनकी सैन्य शक्ति से सभी परिचित थे। इसके बाद अफ़ग़ान नायक शेरशाह और बहादुर शाह से इनकी कई लड़ाई हुईं जिसमे वे सफल रहे। लेकिन 26 जून, 1539 ई. को हुमायूँ एवं शेर ख़ाँ की सेनाओं के मध्य गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित ‘चौसा’ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ। यह युद्ध हुमायूँ अपनी कुछ ग़लतियों के कारण हार गया। संघर्ष में मुग़ल सेना की काफ़ी तबाही हुई।
हुमायूँ ने युद्ध क्षेत्र से भागकर एक भिश्ती का सहारा लेकर किसी तरह गंगा नदी पार कर अपने जान बचाई। जिस भिश्ती ने चौसा के युद्ध में उसकी जान बचाई थी, उसे हुमायूँ ने एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बना दिया था। चौसा के युद्ध में सफल होने के बाद शेर ख़ाँ ने अपने को ‘शेरशाह’ (राज्याभिषेक के समय) की उपाधि से सुसज्जित किया, साथ ही अपने नाम के खुतबे खुदवाये तथा सिक्के ढलवाने का आदेश दिया।
शेरशाह से परास्त होने के उपरान्त हुमायूँ सिंध चला गया, जहाँ उसने लगभग 15 वर्ष तक घुमक्कड़ों जैसे निर्वासित जीवन व्यतीत किया। इस निर्वासन के समय ही हुमायूँ ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु फ़ारसवासी शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ ‘मीर अली अकबरजामी’ की पुत्री हमीदा बेगम से 29 अगस्त, 1541 ई. को निकाह कर लिया, कालान्तर में हमीदा से ही अकबर जैसे महान सम्राट का जन्म हुआ।
हुमायूँ लगभग 14 वर्ष तक क़ाबुल में रहे। हुमायूँ ने पुनः 1545 ई. में कंधार एवं काबुल पर अधिकार कर लिया। शेरशाह के पुत्र इस्लामशाह की मुत्यु के बाद हुमायूँ को हिन्दुस्तान पर अधिकार का पुनः अवसर मिला। 5 सितम्बर, 1554 ई. में हुमायूँ अपनी सेना के साथ पेशावर पहुँचा। फ़रवरी, 1555 ई. को उसने ईरानी सेना की मदद से लाहौर पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस के साथ ही, मुग़ल दरबार की संस्कृति भी मध्य एशियन से इरानी होती चली गयी।
लुधियाना से लगभग 19 मील पूर्व में सतलुज नदी के किनारे स्थित ‘मच्छीवारा’ स्थान पर हुमायूँ एवं अफ़ग़ान सरदार नसीब ख़ाँ एवं तातार ख़ाँ के बीच संघर्ष हुआ। संघर्ष का परिणाम हुमायूँ के पक्ष में रहा। सम्पूर्ण पंजाब मुग़लों के अधिकार में आ गया।
सरहिन्द का युद्ध में अफ़ग़ान सेना का नेतृत्व सुल्तान सिकन्दर सूर एवं मुग़ल सेना का नेतृत्व बैरम ख़ाँ ने किया। इस संघर्ष में अफ़ग़ानों की पराजय हुई। 23 जुलाई, 1555 ई. के शुभ क्षणों में एक बार पुनः दिल्ली के तख्त पर हुमायूँ को बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
हुमायूँ का निधन – Humayun Died
दिल्ली के तख्त पर बैठने के बाद यह हुमायूँ का दुर्भाग्य ही था कि, वह अधिक दिनों तक सत्ताभोग नहीं कर सके। 4 मार्च, 1556 ई. में ‘दीनपनाह’ भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मुत्यु हो गयी। हुमायूँ के बारे में इतिहासकार ‘लेनपूल’ ने कहा है कि, “हुमायूं गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया, ठीक उसी तरह, जिस तरह तमाम-ज़िन्दगी वह गिरते-पड़ते चलता रहा था”। हुमायूँ को अबुल फ़ज़ल ने ‘इन्सान-ए-कामिल’ कहकर सम्बोधित किया है। हुमायूँ अफ़ीम खाने का शौक़ीन था।
चूँकि हुमायूँ ज्योतिष में विश्वास करता था, इसलिए उसने सप्ताह के सातों दिन सात रंग के कपड़े पहनने के नियम बनाये। वह मुख्यतः रविवार को पीला रंग, शनिवार को काला रंग एवं सोमवार को सफ़ेद रंग के कपड़े पहनते थे।
जिस समय हुमायूँ की मृत्यु हुई उस समय उसका पुत्र अकबर 13−14 वर्ष का बालक था। हुमायूँ के बाद उसके पुत्र अकबर को उत्तराधिकारी घोषित किया गया और उसका संरक्षक बैरम ख़ाँ को बनाया गया। तब हेमचंद्र सेना लेकर दिल्ली आया और उसने मु्ग़लों को वहाँ से भगा दिया। लेकिन हेमचंद्र की भी पराजय 6 नवंबर सन् 1556 में पानीपत के मैदान में हो गई। इसके बाद अकबर के नेतृत्व में महान मुग़ल साम्राज्य का गठन हुआ।
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