मकर संक्रान्ति का इतिहास, जानकारी, पूजा विधि | Makar Sankranti History in Hindi

Makar Sankranti / मकर संक्रान्ति भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जो मुख्य रूप से हिन्दू धर्म में मनाया जाता हैं। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। हालाँकि मकर संक्रांति अलग-अलग राज्यों, शहरों और गांवों में वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है।

मकर संक्रान्ति इतिहास, जानकारी, पूजा विधि | Makar Sankranti History in Hindi

मकर संक्रांति क्या है? और क्यों मनाया जाता हैं? – Makar Sankranti Kyu Manate Hai 

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नानए दान और पुण्य के शुभ समय का विशेष महत्व है।

मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बाँटा जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीज़ें ही जीवन का आधार हैं।

प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है। यह एक अति महत्त्वपूर्ण धार्मिक कृत्य एवं उत्सव है।

14 जनवरी ऐसा दिन है, जब धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।

धर्म ग्रंथों में मकर संक्रान्ति का उल्लेख – Makar Sankranti History & Story in Hindi

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

मकर संक्रांति पूजा विधि – Makar Sankranti Puja Vidhi Hindi

Makar Sankranti – मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति में एक शुभ चरण की शुरुआत दर्शाता है। यह एक अशुभ चरण का अंत है और इस दिन से पवित्र हिंदू अनुष्ठानों को पवित्र किया जा सकता है। यह सूर्य भगवान का त्योहार है इस दिन पर सूर्य दक्षिण की यात्रा समाप्त करता है और उत्तर दिशा की और पलायन करता है। रात को पाप और झूठे का प्रतीक माना जाता है जबकि दिन को सच्चाई सद्गुण और धर्म का प्रतीक माना जाता है। तो जब भगवान का दिन है तो मकर संक्रांति पर सभी अनुष्ठानो को किया जाता है क्यूंकि मकर सक्रांति के बाद दिन लम्बे हो जाते है और रातें छोटी हो जाती हैं।

भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। इस व्रत में संक्रांति के पहले दिन एक बार भोजन करना चाहिए। संक्रांति के दिन तेल तथा तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव की स्तुति करनी चाहिए।

मान्यतानुसार इस दिन तीर्थों में या गंगा स्नान और दान करने से पुण्य प्राप्ति होती है। ऐसा करने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही संक्रांति के पुण्य अवसर पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण अवश्य प्रदान करना चाहिए।

अलग-अलग जगहों – Different Names of Makar Sankranti

भारत के साथ दक्ष‍िणी एशिया के कई अन्य देशों में भी मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। अलग-अलग प्रदेशों में इसे अलग-अलग विधियों के साथ मनाया जाता है। देश के अधिकतर हिस्सों में इसे मकर संक्रांति कहा जता है।

उत्तर प्रदेश – मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है. सूर्य की पूजा की जाती है. चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है.

महाराष्ट्र – लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं.

गुजरात और राजस्थान – उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है. पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है. इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।

आंध्रप्रदेश – संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।

केरल – केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।

तमिलनाडु – किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है. घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।

पंजाब – एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।

असम – भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।

पश्चिम बंगाल – हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।

बिहार – बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।

मकर संक्रान्ति – Makar Sankranti Facts in Hindi

यह इकलौता ऐसा त्योहार है जो हर साल एक ही तारीख पर आता है। दरअसल यह सोलर कैलंडर को फॉलो करता है। दूसरे त्योहारों की गणना चंद्र कैलेंडर (चन्द्रमा के स्थान) के आधार पर होती है। यह साइकल हर आठ साल में एक बार बदलती है और तब यह त्योहार एक दिन बाद मनाया जाता है। कई जगह यह भी गणना की गई है कि 2050 से यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा और फिर हर आठ साल में 16 जनवरी को।

वैज्ञानिक तरीके से देखें तो यह सर्दी के मौसम के बीतने का सूचक है और मकर संक्रांति पर दिन व रात बराबर अवधि के माने जाते हैं। इसके बाद से दिन लंबे और मौसम में गर्माहट होने लगती है। इसके बाद कटाई या बसंत के मौसम का आगमन मान लिया जाता है।


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