श्री कष्ण हिंदू धर्म के संपूर्ण अवतार कहे जाते हैं। उन्हें एक बेहतरीन राजनेता और 64 कलाओं का स्वामी भी माना गया है। वे भगवान् विष्णु के अवतार थे। जन्माष्टमी श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि Shri krishna ki mrityu kaisi hui? कैसे उनके यदुवंश का नाश हुआ? आइए आपको बताते हैं श्री कृष्ण की मृत्यु् और यदुवंश के विनाश के कारण।
भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हुई – Bhagwan Krishna ki Mrityu Kaise hui
महाभारत के युद्ध के बाद, जब दुर्याोधन का अंत हो गया, तो उसकी माता गांधारी बहुत दुःखी हो गई थी। वह अपने बेटे के शव पर शोक व्यक्त करने के लिए रणभूमि में गई थी। भगवान कृष्ण और पांडव भी उसके साथ गए थे। गांधारी अपने बेटों की मृत्यु से इतनी दुःखाी हुई कि उसने भगवान कृष्ण को 36 वर्षों के बाद मृत्यु का शाप दे दिया। उन्होंने कहा जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा। भगवान कृष्ण मुस्कुराए और स्वयं पर लगा अभिशाप स्वीकार कर लिया। और ठीक इसके 36 वर्षों के बाद उनका अंत एक शिकारी के हाथों हुआ।
महाभारत, कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध का वो रूप है जिसने कुरुक्षेत्र की मिट्टी तक लाल कर दी थी। कहा जाता है इस भयंकर युद्ध में इतने लोगों ने अपनी जान गंवाई थीं कि आज भी उनके लहू से कुरुक्षेत्र (जहां महाभारत का युद्ध लड़ा गया था) की मिट्टी का रंग लाल ही है। ईर्ष्या, लालच और घमंड, ये तीनों ही कारण चचेरे भाइयों के बीच संग्राम के कारण बने। एक तरफ 100 कौरव भाई और दूसरी तरफ 5 पांडव। कृष्ण से लेकर भीष्म पितामह, द्रोण, शिखंडी आदि सभी बड़े-बड़े धुरंधरों ने इस युद्ध में भाग लिया।
महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की कहानी को 18 खण्डों में संकलित किया था। कुरुक्षेत्र का युद्ध इस ग्रंथ का सबसे बड़ा भाग है लेकिन युद्ध के पश्चात भी बहुत कुछ ऐसा रह गया जिसके विषय में जानना बहुत जरूरी है। जिनमें श्रीकृष्ण की मृत्यु और द्वारका के नदी में समा जाने की घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मौसल पर्व, 18 पर्वों में से एक है जो 8 अध्यायों का संकलन है। इस पर्व में श्रीकृष्ण के मानव रूप को छोड़ना और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी नगरी द्वारका के साथ घटी घटना का वर्णन है। आइए जानते हैं क्या छिपा है मौसल पर्व की कहानी के भीतर।
यह घटना कुरुक्षेत्र के युद्ध के 35 साल बाद की है। कृष्ण की द्वारका नगरी बहुत शांत और खुशहाल थी जहां युवाओं के भीतर चंचलता बड़ी ही सामान्य थी और वे सभी भोग-विलास में लिप्त रहते थे।
एक बार कृष्ण के पुत्र सांब को एक शरारत सूझी। स्त्री का वेश लेकर वह अपने दोस्तों के साथ ऋषि विश्वामित्र, दुर्वासा, वशिष्ठ और नारद से मिलने गया। वे सभी श्रीकृष्ण के साथ एक औपचारिक बैठक में शामिल होने के लिए द्वारका आए थे। स्त्री के वेश में सांब ने ऋषियों से कहा कि वो गर्भवती है। वे उसे ये बताएं कि उसके गर्भ में बच्चे का लिंग क्या है। उनमें से एक ऋषि ने इस खेल को समझ लिया और क्रोधित होकर सांब को श्राप दिया कि वो लोहे के तीर को जन्म देगा, जिससे उनके कुल और साम्राज्य का विनाश होगा।
सांब ने ये सारी घटना उग्रसेन को बताई, उग्रसेन ने सांब से कहा कि वे तांबे के तीर का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दे, इस तरह उन्हें उस श्राप से छुटकारा मिल जाएगा। सांबा ने सब कुछ उग्रसेन के कहे अनुसार ही किया। साथ ही उग्रसेन ने ये भी आदेश पारित कर दिया कि यादव राज्य में किसी भी प्रकार की नशीली सामग्रियों का ना तो उत्पादन किया जाएगा और ना ही वितरण होगा। इस घटना के बाद द्वारका के लोगों ने विभिन्न अशुभ संकेतों का अनुभव किया। सुदर्शन चक्र कृष्ण के शंख, उनके रथ और बलराम के हल का अदृश्य हो जाना, अपराधों और पापों में बढ़ोत्तरी होना, लाज-शर्म जैसी चीजों का समाप्त हो जाना। स्त्रियों द्वारा अपने पतियों और पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों के साथ विश्वासघात करना, आदि बेहद सामान्य घटनाक्रम हो गया था।
चारों ओर अपराध, अमानवीयता और पाप का साया था। बुजुर्गों और गुरुओं का असम्मान, निंदा, द्वेष जैसी भावनाओं में उल्लेखनीय बढ़त आदि सब द्वारका के लोगों का जीवन बन गया था। ये सब देखकर भगवान कृष्ण परेशान हो गए और उन्होंने अपनी प्रजा से प्रभास नदी के तट पर जाकर तीर्थ यात्रा कर अपने पापों से मुक्ति पाने को कहा। सभी ने ऐसा ही किया। परंतु जब सभी यादव प्रभास नदी के किनारे पहुंचे तो वहां जाकर सभी मदिरा के नशे में चूर होकर, भोग-विलास में लिप्त हो गए। वे नाचते-गाते और मदिरा का सेवन करते।
मदिरा के नशे में चूर सात्याकि कृतवर्मा के पास पहुंचा और अश्वत्थामा को मारने की साजिश रचने और पांडव सेना के सोते हुए सिपाहियों की हत्या करने के लिए उसकी आलोचना करने लगा। वही कृतवर्मा ने भी सात्याकि पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिए। बहस बढ़ती गई और इसी दौरान सत्याकि के हाथ से कृतवर्मा की हत्या हो गई।
कृतवर्मा की हत्या करने के अपराध में अन्य यादवों ने मिलकर सात्यकि को मौत के घाट उतार दिया। जब कृष्ण को इस बात का पता चला तो वे वहां पर प्रकट हुए और एरका घास को हाथ में उठा लिया। ये घास एक छड़ में परिवर्तित हो गई जिससे श्रीकृष्ण ने दोषियों को सजा दी।
मदिरा के नशे में चूर सभी ने घास को अपने हाथ में उठा लिया और सभी के हाथ में मौजूद वो घास लोहे की छड़ बन गई। जिससे सभी लोग आपस में ही भिड़ गए और एक-दूसरे को मारने लगे। वभ्रु, दारुक और कृष्ण के अलावा अन्य सभी लोग मारे गए। बलराम इस उपद्रव का हिस्सा नहीं थे इसलिए वो भी बच गए। कुछ समय बाद वभ्रु और बलराम की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद कृष्ण ने दारुक को पांडवों के पास भेजा और कहा कि अर्जुन को सारी घटना बताकर उससे मदद लेकर आए।
दारुक इन्द्रप्रस्थ की ओर रवाना हो गया और पीछे से ही श्रीकृष्ण ने अपना देह त्याग दिया। कृष्ण की मृत्यु की घटना प्रभास नदी से ही जुड़ी है जिसमें लोहे की छड़ का चूर्ण बहाया गया था। लोहे की छड़ का चूर्ण एक मछली से निगल लिया और वह उसके पेट में जाकर धातु का एक टुकड़ा बन गया। जीरू नामक शिकारी ने उस मछली को पकड़ा और उसके शरीर से निकले धातु के टुकड़े को नुकीला कर तीर का निर्माण किया। कृष्ण वन में बैठे ध्यान में लीन थे। जीरू को लगा वह कोई हिरण है, उसने कृष्ण पर तीर चला दिया जिससे श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई।
कुछ समय बाद अर्जुन मदद लेकर द्वारका पहुंचे और कृष्ण की मृत्यु की खबर पाकर अत्यंत दुखी हो गए। कृष्ण के जाने के बाद द्वारका में उनकी 16000 रानियां, कुछ महिलाएं, वृद्ध और बालक की शेष रह गए। वे सभी इन्द्रप्रस्थ के लिए रवाना होने लगे।
परंतु जैसे ही लोग द्वारका छोड़ने के लिए तैयार हुए, जल का स्तर बढ़ने लगा। म्लेच्छ और डाकुओं ने द्वारका पर आक्रमण कर दिया और जब अर्जुन उनकी सहायता करने के लिए अस्त्र चलाने लगे तो वे सभी मंत्र भूल गए। द्वारका नगरी पानी के भीतर समा गई।
अर्जुन, श्रीकृष्ण की कुछ रानियों और शेष प्रजा को लेकर इन्द्रप्रस्थ आ गए और वापस आकर सारी घटना युधिष्ठिर को बताई। भगवान कृष्ण का पूरा यादव वंश धीरे-धीरे समाप्त हो गया और द्वारिका समुद्र में डूब गई जहां वह अभी भी हैं।
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