कार्तिक पूर्णिमा की जानकारी, इतिहास | Kartik Purnima History in Hindi

Kartik Purnima – कार्तिक पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्‍ठ मानी जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है।

कार्तिक पूर्णिमा की जानकारी, इतिहास | Kartik Purnima History in Hindiकार्तिक पूर्णिमा की जानकारी – Kartik Purnima Information in Hindi

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिर्फ हिन्दु ही नहीं सिख धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इसी दिन गुरु नानक जयंती भी होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक महीना होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं।

मान्‍यता है कि इस दिन भगवान शिव ने देवलोक पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था. उसके वध की खुशी में देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी। हर साल लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाते हैं।

सृष्टि के आरंभ से ही यह तिथि बड़ी ही खास रही है। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर सोलह हो जाती है। पुराणों में इस दिन स्नान,व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्‍णु ने मत्‍स्‍यावतार लिया था। इस दिन गंगा समेत अन्‍य पवित्र नदियों में स्‍नान करन पुण्‍यकारी माना जाता है।

इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों के लिए भी बहुत ज्यादा है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा,प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ।

शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी विशेष फलदायी होता है।

ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा कब आती हैं – Kartik Purnima Kab Aati hai

हिन्‍दू कैलेंडर में आठवें महीने का नाम कार्तिक है। कार्तिक महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस तरह से ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा हर साल नवंबर के महीने में आती है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा 12 नवंबर 2019 को है।

कार्तिक पूर्णिमा का कथा – Kartik Purnima Story in Hindi

कार्तिक पूर्णिमा से जुडी दो कथाएं हैं, जो इस प्रकार हैं –

1). कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। इससे ब्रह्मजी प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

इसके बाद इन्होने ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।

2). कथा के अनुसार एक बार त्रिपुर नामक राक्षस ने कठोर तपस्या की। त्रिपुर की इस घोर तपस्या के प्रभाव से सभी जड़-चेतन, जीव-जन्तु तथा देवता भयभीत होने लगे। तब देवताओं ने त्रिपुर की तपस्या को भंग करने के लिए खूबसूरत अप्सराएं भेजीं। परंतु त्रक्षिपुर की कठोर तपस्या में वह बाधा डालने में सफल न पाईं। अंत में ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रकट हुए तथा उससे वर मांगने के लिए कहा।

तब त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वरदान माँगा की ‘न मैं देवताओं के हाथ से मरु, न मनुष्यों के हाथ से।’ वरदान मिलते ही त्रिपुर निडर होकर लोगों पर अत्याचार करने लगा। जब उसका इन बातों से भी मन न भरा तो, उसने कैलाश पर्वत पर ही चढ़ाई कर दी। इसके परिणाम स्वरूप भगवान शिव और त्रिपुर के बीच घमासान युद्ध होने लगा। काफी समय तक युद्ध चलने के बाद अंत में भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से उसका वध कर दिया। इस दिन से ही क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य माना जाता है। यह मास कार्तिक था।

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि – Kartik Purnima Puja Vidhi

  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्‍नान करें। अगर पवित्र नदी में स्‍नान करना संभव नहीं तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्‍नान करें।
  • रात्रि के समय विधि-विधान से भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की पूजा करें।
  • सत्‍यनारायण की कथा पढ़ें, सुनें और सुनाएं।
  • भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की आरती उतारने के बाद चंद्रमा को अर्घ्‍य दें।
  • घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं।
  • घर के सभी सदस्‍यों में प्रसाद वितरण करें।
  • इस दिन दान करना अत्‍यंत शुभ माना जाता है। किसी ब्राह्मण या निर्धन व्‍यक्ति को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान और भेंट देकर विदा करें।
  • कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
  • इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीपदान, शय्यादि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है।

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