Kapaleeswarar Temple / कपालेश्वर मंदिर, भारत के चेन्नई शहर में स्थित महादेव शिव का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी के आसपास पल्लव राजाओं ने किया था। इस मंदिर की वास्तुशिल्पय बनावट द्रविड शैली से काफी मिलती जुलती है।
कपालेश्वर मंदिर का इतिहास – Kapaleeswarar Temple History in Hindi
Kapaleeswarar Mandir – कपालेश्वर महादेव मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों के बाद सबसे श्रेष्ठ मंदिर माना जाता है। प्राचीनकाल में इसकी टेकरी पर शिवजी की पिंडी थी। लेकिन अब यहां एक विशाल मंदिर है। पेशवाओं के काल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर की सीढ़ियां उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती नजर आती है। इसी में प्रसिद्ध रामकुंड है। पुराणों के मुताबिक, भगवान राम ने इसी कुंड में अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। इसके अलावा इस परिसर में काफी मंदिर है।
कपालेश्वर मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। ये मंदिर सातवीं सदी में पल्लव राजाओं द्वारा बनवाया हुआ बताया जाता है। मंदिर की वर्तमान संरचना विजय नगर के राजाओं द्वारा सोलहवीं सदी में बनवाई गई है। मंदिर का मुख्य भवन काले पत्थरों का बना है। मंदिर के दो मुख्य द्वार हैं जहां विशाल गोपुरम बने हैं। मंदिर का मुख्य गोपुरम 120 फीट ऊंचा है तो 1906 में बनवाया गया।
कपालेश्वर मंदिर से जुडी कथा – Kapaleeswarar Temple Story in Hindi
इस मंदिर का नाम कपलम और ईश्वरर पर पड़ा है। कपलम का अर्थ होता है सर, जबकि इश्वरर भगवान शिव का दूसरा नाम है। हिंदू पौराणिक कथाओं के जब भगवान ब्राह्मा और भगवान शिव माउंट कैलाश की चोटी पर मिले तो ब्राह्मा भगवान शिव की श्रेष्ठता को पहचान नहीं पाया। इससे कुपित होकर शिव ने ब्राह्मा का सर पकड़कर खींच दिया। उस वक्त ब्रह्मदेव के 5 मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पांचवां निंदा करता था। भगवान शिव को देख पांचवां मुख उनकी निंदा करने लगा। इससे नाराज शिवजी ने उस मुख को ही काट डाला। इसके बाद शिवजी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा।
उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में घूम रहे थे। इसी दौरान उन्हें एक गाय और उसका बछड़ा एक ब्राह्मण के घर के सामने नजर आया। वह ब्राह्मण बछड़े के नाक में रस्सी डालने वाला था। वह जैसे ही रस्सी डालने पहुंचा बछड़े ने उसे सिंग मार दी और वह मर गया। इसके बाद बछड़े पर भी ब्रह्म हत्या का पाप लगा और उसका शरीर काला पड़ गया।
इससे मुक्ति पाने के लिए अपनी मां के कहने पर बछड़ा नासिक के पास स्थित रामकुंड में नहाने पहुंचा और नहाते ही उसका पाप मिट गया। यह पूरी घटना शिवजी भी देख रहे थे। वे भी बछड़े की राह पर नासिक आये और रामकुंड में स्नान किया। इससे भोलेनाथ को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। इसके बाद भोलेनाथ ने बछड़ा (नंदी) को अपना गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया। तब से यहां भोलेनाथ के सामने नंदी की प्रतिमा नहीं है।
मान्यता है कि इसी क्षेत्र में पार्वती ने शिव को पाने के लिए लंबे समय तक आराधना की थी। इसलिए इसे इच्छा पूरी करने वाला शिव का मंदिर माना जाता है। मंदिर के परिसर में पार्वती का भी मंदिर है। तमिल में पार्वती को कारपागांबल कहते हैं। मान्यता के मुताबिक शक्ति (पार्वती) ने शिव को को पाने के लिए उनकी आराधना मयूर के रूप में की। मयूर को तमिल में माइल कहते हैं। इसी नाम पर इस इलाके का नाम माइलापुर पड़ा। मंदिर परिसर में वह स्थल वृक्ष है जिसके नीचे बैठ कर पार्वती ने लंबी आराधना की थी। मंदिर में शिव की पूजा कपालेश्वर के तौर पर होती है। यहाँ शिव का लिंगम स्थापित है। तमिल के शैव काव्य परंपरा तेवरम में कपालेश्वर मंदिर की चर्चा आती है। तमिल के भक्ति कवि नयनार शिव का स्तुति गान करते हैं।
मंदिर के दोनों तरफ विशाल हाल बने हैं। इनमें 63 नयनारों की स्तुति रत मूर्तियां बनी हैं। मंदिर परिसर में गौशाला भी है। मंदिर परिसर में भगवान का भोग लगाने के लिए फलों की सुंदर रंगोली सजाई जाती है।
कैसे पहुंचे –
गर्मी के समय में चेन्नई का मौसम काफी गर्म हो जाता है। हालांकि ठंड का मौसम काफी खुशगवार होता है। तमिलनाडु चेन्नई में एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन भी है और यहां सड़क मार्ग के जरिए भी पहुंचा जा सकता है।
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