Kabir Ke Dohe in Hindi / कबीरदास (जन्म- सन् 1398 काशी – मृत्यु- सन् 1518 मगहर) मध्यकालीन भारत के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर कबीरपंथ नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। आइये जाने कबीरदास के लोकप्रिय दोहे – Kabir Ke Dohe..
कबीरदास के लोकप्रिय दोहे – Kabir Das Ke Dohe With Meaning in Hindi
दोहे : ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ।।
हिन्दी अर्थ : मन के अहंकार और घमंड को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो,
जिससे दुसरे लोग सुखी हों और खुद भी सुखी हो ।
दोहे : देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह ।
निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह ।।
हिन्दी अर्थ : जब तक यह देह है तब तक तू कुछ न कुछ देता रह।
जब देह धूल में मिल जायगी, तब कौन कहेगा कि ‘दो’।
दोहे : बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।
हिन्दी अर्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला.
पर जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
दोहे : तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।।
हिन्दी अर्थ : एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है.
अगर कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ कर गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है ।।
दोहे : कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय।
साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय ।।
हिन्दी अर्थ : फालतू बातें करने वालो को करने दो, तुम बस गुरु की ही शिक्षा धारण कर जो सही मार्ग पे ले जाए,
दुष्टों और कुत्तो को पलट के जवाब ना दो ।
दोहे : ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ।।
हिन्दी अर्थ : मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो,
जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।
दोहे : धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।।
हिन्दी अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है ।
अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा ।
दोहे : जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
हिन्दी अर्थ : किसी भी इंसान का जाती पूछने से बेहतर उसका ज्ञान को समझना चाहिए,
तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का ।।
दोहे : कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव ।
स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव ।।
हिन्दी अर्थ : अपने को सर्वज्ञानी मानने वाले अभिमानी सिध्दों के स्थान पर भी मत जाओ,
क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं कहेंगे, सिर्फ़ बार-बार नाम पूछते रहेंगे ।
दोहे : दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त ।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते है – यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है,
तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
दोहे : गारी मोटा ज्ञान, जो रंचक उर में जरै ।
कोटी सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परे ।
कोटि सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परै ।
गारी सो क्या हान, हिरदै जो यह ज्ञान धरै ।।
हिन्दी अर्थ : यदि अपने मन में थोड़ी भी सहन शक्ति हो, तो ओ मिली हुई गली भारी ज्ञान है,
सहन करने से लाखो कार्य सुधर जाते हैं, और शत्रु आकर पैरों में पड़ता है यदि ज्ञान ह्रदय में आ जाए,
तो मिली हुई गाली से अपनी क्या हानि है ?
दोहे : गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच ।
हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते है – गाली से झगड़ा कलह एवं मरने मारने तक की बात आ जाती है ।
इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है,
और (गाली गलौच एवं कलह में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है ।।
दोहे : जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ।।
हिन्दी अर्थ : जो प्रतीक्षा करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं।
जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.।
दोहे : बहते को मत बहन दो, कर गहि एचहु ठौर ।
कह्यो सुन्यो मानै नहीं, शब्द कहो दुइ और ।।
हिन्दी अर्थ : बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़ कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो.
यदि वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन (बात) और सुना दो ।
दोहे : धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर ।।
हिन्दी अर्थ : धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है,
परन्तु उसका जल घटना नहीं। धर्म करके स्वयं देख लो।
दोहे : बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि ।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते है – यदि कोई इंसान सही तरीके से बोलना जानता है।
तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है।
इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है ।
दोहे : अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।।
हिन्दी अर्थ : न तो ज़्यादा बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है.
जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है ।।
दोहे : निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ।।
हिन्दी अर्थ : जो व्यक्ति हमारी निंदा करता है, उसे अपने पास ही रखना चाहिए।
वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
और हमें आत्मविश्वास देता है ।
दोहे : हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना ।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ।।
हिन्दी अर्थ : हिंदू कहता है मैं राम का भक्त हू और मुस्लिम कहता है मैं रहमान का प्यारा हूँ।
इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे,
तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया ।
दोहे : कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस ।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते हैं कि हे इंसान ! तू क्या अपने मे गर्व करता है?
काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है।
मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले ।
दोहे : जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं ।।
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते है – यह संसार का नियम है की जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा।
जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा. जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा ।।
दोहे : कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय.
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय.
हिन्दी अर्थ : कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए.
मृत्यु के बाद सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा ।।
दोहे : जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश ।
तन – मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश ।।
हिन्दी अर्थ : इंसान जीवित रहते कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं,
और मर जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जाएगा
जिसे अपने तन मन की की ही सुधि – बूधी नहीं हैं, उसको क्या उपदेश किया?
दोहे : या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।।
हिन्दी अर्थ : इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो।
सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।
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